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दसवीं कक्षा में 10 बार हुए फेल, फिर भी नहीं मानी हार, 11वें प्रयास में परीक्षा पास करके पूरा किया पिता का सपना

अगर कोई बच्चा किसी क्लास में दो या तीन बार फेल हो जाए तो माता-पिता या तो कोई जुगाड़ करके उसे पास कराने में लग जाते हैं या उसके करियर के लिए कोई दूसरी राह चुन लेते हैं. पर आज हम आपको बता रहे हैं ऐसे लड़के की कहानी जिसने 10 बार फेल होने के बाद भी हार नहीं मानी और 11वीं बार में सफलता हासिल की.

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कहते हैं कि कोशिश करने वालों की हार नहीं होती. लेकिन बहुत बार हम किसी काम में असफल होने पर सिर्फ दो-चार बार कोशिश करते हैं और फिर सफलता न मिलने पर दूसरी राह चुन लेते हैं. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे इंसान की कहानी बता रहे हैं जिन्होंने 10 बार फेल होने के बाद भी हार नहीं मानी और फिर 11वीं बार में सफलता हासिल कर ही ली. यह कहानी है महाराष्ट्र के बीड जिले के एक गांव के रहने वाले कृष्णा मुंडे की, जिन्होंने 10वीं कक्षा में 10 बार फेल होने के बाद 11वीं बार में परीक्षा पास कर ली है. 

पिता ने कहा कोशिश करते रहो 
बीड में परली तालुका के डाबी गांव के रहने वाले साइनस उर्फ ​​नामदेव मुंडे का बेटा कृष्णा 10 बार से लगातार 10वीं कक्षा में फेल हो रहा था. नामदेव मुंडे बहुत ही साधारण आदमी हैं. वह कंस्ट्रक्शन मजदूर हैं और बड़ी मुश्किल से अपना परिवार पाल रहे हैं. लेकिन उनकी एक ही इच्छा रही कि चाहे जो हो पर उनका बेटा 10वीं कक्षा पास कर ले. इसलिए जब उनका बेटा कृष्णा दसवीं कक्षा में कई बार फेल हो गया तब भी उन्होंने यही कहा कि जब तक पास नहीं हो जाओ तब तक परीक्षा देते रहो. 

दस बार असफल होने के बाद, कृष्णा आखिरकार ग्यारहवें प्रयास में सफल हो गए. इस सफलता से उनके पिता इतना खुश हैं कि उनकी आंखों केआंसू रूकने का नाम नहीं ले रहे थे. और सिर्फ कृष्णा का परिवार ही नहीं बल्कि पूरा गांव उनकी इस सफलता से बहुत ज्यादा खुश है. आज पूरा गांव कृष्णा को बधाई दे रहा है. भले ही यह बात दूसरे लोगों को अजीब लगे लेकिन जिन्होंने नामदेव और कृष्णा की मेहनत को देखा है, उन्हें पता है कि यह सफलता इन बाप-बेटे के लिए क्या मायने रखती है. 

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गांव में मनाया गया जश्न  
ग्यारहवें प्रयास में 10वीं कक्षा पास करने वाले कृष्णा को गांववालों ने अपने सिर-आंखों पर बिठा लिया है. क्योंकि वह चाहते तो हार मानकर परीक्षा देना छोड़ सकते थे. लेकिन उन्होंने अपने पिता की इच्छा का मान रखा और 11 साल तक मेहनत करते रहे. इसलिए उनके गांव में उनकी सफलता का जश्न मनाया गया. लोग ढोल-बाजे के साथ उन्हें कंधों पर बिठाकर गांव के मंदिर ले गए और बाद में प्रसाद भी बांटा गया. कृष्णा से हम सबको यही सीख मिलती है कि असफलता से डरो नहीं बल्कि हर बार फिर से खड़े होकर मेहनत करो. 

(रोहिदास हातागले की रिपोर्ट)