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16 किमी दूर बसे गांव में जाकर छात्रों को पढ़ा रही है यह शिक्षिका, ग्रामीण इलाकों में बस न आने से रूक गया था बच्चों का स्कूल जाना

चंद्रपुर के ग्रामीण इलाकों में स्टेट ट्रांसपोर्ट के कर्मचारियों की हड़ताल के कारण बस नहीं जा रही हैं. जिससे बच्चे स्कूल नहीं आ पा रहे थे. ऐसे में, एक स्कूल टीचर छात्रों को गांव में जाकर पढ़ा रही हैं.

Teacher Nisha Teacher Nisha
हाइलाइट्स
  • दो साल बाद खुले स्कूल तो बस हो गईं बंद 

  • छात्रों के पढ़ाने गांव पहुंच रही टीचर

महाराष्ट्र के चंद्रपुर में एक शिक्षिका समाज के सामने मिसाल कायम कर रही है. स्टेट ट्रांसपोर्ट के कर्मचारियों की हड़ताल के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में बस सेवाएं बंद रहीं. ऐसे में, ग्रामीण इलाके के छात्र स्कूल नहीं जा पा रहे थे. छात्रों की पढाई का नुकसान न हो इसीलिए शिक्षिका निशा दड़मल ने गांव जाकर ही छात्रों को पढ़ाने की ठानी. 

निशा हर रोज भीषण गर्मी में घने जंगलो के बीच से अपने दोपहिया वाहन पर 16 किलोमीटर का रास्ता तय करके छात्रों के पास पहुंचती हैं. इस तरह गांव में जाकर बच्चों को पढ़ाने का काम वह पिछले दो महीनों से लगातार कर रही हैं. बच्चों का कहना है कि निशा टीचर की वजह से उनका सिलेबस पूरा हो रहा है. 

दो साल बाद खुले स्कूल तो बस हो गईं बंद 

कोरोना के कारण बंद स्कूल करीब 2 साल बाद खुले हैं. चंद्रपुर में भी 2 महीने से स्कूल शुरू हुए हैं लेकिन, चंद्रपुर के जंगलव्याप्त ग्रामीण इलाकों के बच्चे पढ़ाई से वंचित हो रहे थे. गांव में स्कूल तो है लेकिन चौथी कक्षा तक. इससे बाद की पढ़ाई के लिए छात्रों को शहर जाना पड़ता है. 

पिछले कई महीनों से महाराष्ट्र में स्टेट ट्रांसपोर्ट के कर्मचारियों की हड़ताल के कारण ग्रामीण इलाके में बस नहीं जा रही हैं. ऐसे में ग्रामीण इलाके के छात्र शहर में स्कूल तक नहीं जा पा रहे थे. चंद्रपुर के भवानजी भाई चौहान स्कूल में पढ़ाने वाली निशा ने कुछ करने की ठानी.

अब सुबह सात बजे से 11 बजे तक स्कूल में छात्रों को पढ़ाने के बाद, निशा घने जंगलो से होते हुए ताडोबा टाइगर रिजर्व के बफर झोन में आने वाले मामला गांव जाकर दूसरे बच्चों को पढ़ाती हैं.  वह 25 छात्रों को दोपहर 12 बजे से 4 बजे तक पढ़ाती हैं. और यहां पांचवी कक्षा से लेकर आठवीं कक्षा के बच्चे पढ़ते हैं. 

अपनी जान पर खेलकर पहुंचती हैं गांव 

चंद्रपुर से 16 किलोमीटर दूर मामला गांव ताडोबा टाइगर रिजर्व के बफर झोन में आता है. चारो और घना जंगल, सुनसान रास्ता और जंगली जानवरों का खतरा. ऐसे में दोपहिया वाहन पर अकेले गांव पहुंचना हिम्मत का काम है. वन विभाग ने भी रास्ते पर जगह-जगह जंगली जानवरों से सावधानी के बोर्ड लगाए हैं. 

इस मार्ग पर बाघ और तेंदुए का खतरा हमेशा बना रहता है और भी जंगली जानवर अक्सर सड़क पर दिखाई देते हैं. ऐसे में उनका अकेले जाना खतरे से खाली नहीं है, फिर भी निशा टीचर ने हार नहीं मानी. छात्रों को शिक्षित करने के लिए वह निकल पड़ीं. 

स्कूल में छात्रों को निशा से बहुत ही स्नेह है. निशा ने देखा कि स्कूल में सभी बच्चे आ रहे हैं लेकिन ग्रामीण इलाके के बच्चे स्कूल नहीं आ रहे हैं. तो उन्होंने गांव जाकर बच्चों के माता-पिता से बात की. उन्हें पता चला कि बस बंद होने से छात्र स्कूल नहीं आ पा रहे हैं. और उन्होंने इस समस्या का हल निकाला. 

(विकास राजुरकर की रिपोर्ट)