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बच्चों की मेंटल हेल्थ का रखा जाएगा ध्यान! NCERT ने स्कूलों के लिए जारी की गाइडलाइन, शिक्षकों को छात्रों का ख्याल रखने की दी सलाह

NCERT ने स्कूलों के लिए जो गाइडलाइन जारी की है उसमें कहा है कि शिक्षक छात्रों की मेंटल हेल्थ का ख्याल रखें. इसके लिए हर स्कूल में एक एडवाइजरी पैनल बनाया जाए. इसके अलावा स्कूल प्रबंधन, प्रिंसिपल, शिक्षक, अन्य कर्मचारी, और छात्र सभी के लिए मेंटल हेल्थ प्रोग्राम होते रहने चाहिए.

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हाइलाइट्स
  • मेंटल हेल्थ सर्वे के बाद ये दिशानिर्देश जारी किए गए हैं

  • NCERT ने इन्हें जारी किया है

स्कूलों में अक्सर बच्चे मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से जूझते रहते हैं और उन्हें इस बात का अंदाजा भी नहीं होता है कि यह क्या है. इसी के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए अब राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने कदम उठाया है. बच्चों की मेंटल हेल्थ को ध्यान में रखते हुए NCERT ने कुछ दिशा-निर्देश जारी किए हैं. स्कूली बच्चों के बीच एक मेंटल हेल्थ सर्वे के बाद ये दिशानिर्देश जारी किए गए हैं. 

स्कूलों के लिए एनसीईआरटी ने जो दिशा-निर्देशों जारी किए हैं उनमें मानसिक स्वास्थ्य सलाहकार पैनल की स्थापना, स्कूल आधारित मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम और छात्रों की मेंटल वेलबींग के लिए शैक्षणिक सहायता और अभिभावकों को शामिल करना शामिल है.

इसके लिए किया गया था सर्वे  

बताते चलें, एनसीईआरटी की सर्वे रिपोर्ट में स्कूली छात्रों में तनाव और चिंता के प्रमुख कारकों में परीक्षा, परिणाम और साथियों के दबाव का हवाला दिया गया है. मैनुअल के अनुसार, हर स्कूल या स्कूलों के ग्रुप में एक मेंटल हेल्थ एडवाइजरी पैनल जरूर होना होना चाहिए.  

गाइडलाइन में कहा गया है, "स्कूलों को आम तौर पर ऐसे स्थान के रूप में देखा जाता है जहां बच्चों को एक सुरक्षित वातावरण में विकसित होने की उम्मीद की जाती है. स्कूल प्रबंधन, प्रिंसिपल, शिक्षक, अन्य कर्मचारी, और छात्र सभी एक दिन का लगभग 1/3 हिस्सा और लगभग 220 दिन साथ में बिताते हैं. रेजिडेंशियल स्कूलों में बच्चे और भी  ज्यादा समय बिताते हैं. इसलिए, यह स्कूल की जिम्मेदारी है कि वह बच्चों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण सुनिश्चित करें.”

क्या कहा गया है गाइडलाइंस में? 

-इस एडवाइजरी पैनल की अध्यक्षता प्राचार्य द्वारा की जानी चाहिए और इसमें शिक्षक, माता-पिता, छात्र और पूर्व छात्र सदस्य होंगे. इसकी मदद से जागरूकता पैदा की जाएगी. इसके साथ उम्र और जेंडर के हिसाब से मेंटल हेल्थ प्रोग्राम भी करवाने चाहिए. 

-स्कूलों में बच्चों के व्यवहार, मादक द्रव्यों के सेवन और खुद को नुकसान पहुंचाने, डिप्रेशन और विकास संबंधी चिंताओं की पहचान करने, फर्स्ट एड प्रदान करने और उचित रेफरल करने का प्रावधान होना चाहिए. 

-यह देखते हुए कि ज्यादातर मेंटल हेल्थ से जुड़े मुद्दे जीवन के शुरुआती चरण में सामने आते हैं, क्योंकि सभी मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों में से आधी 14 साल की उम्र तक और 25 साल की उम्र तक तीन-चौथाई हो जाते हैं. ऐसे में एनसीईआरटी ने सिफारिश की है कि परिवारों और माता-पिता के अलावा, शिक्षकों को भी इसके बारे में पता होना चाहिए.

-शिक्षकों को कुछ चीजों को लेकर ट्रेनिंग देने की जरूरत है. जिससे वे छात्रों की समस्याओं जैसे अटैचमेंट इशू, एंग्जायटी, कम्युनिकेशन इशू, एंग्जायटी पैटर्न, इंटरनेट का ज्यादा इस्तेमाल, हाइपरएक्टिविटी, आदि के बारे में शुरुआती संकेतों की पहचान कर सकें. 

-इतना ही नहीं बल्कि गाइडलाइन में ये भी कहा गया कि शिक्षकों को कक्षा में बदमाशी के मामलों के बारे में बात करनी चाहिए और छात्रों को डराने-धमकाने के बारे में शिक्षित करके उन्हें सशक्त बनाना चाहिए. अगर छात्र के साथ कुछ ऐसा घटा है जिसे वे सबके सामने नहीं बता सकते हैं, ऐसे में शिक्षकों को उन्हें एक गोपनीय तरीका प्रदान करना चाहिए.