भारत का संविधान दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान माना जाता है. संविधान की मूल कॉपी केवल एक डॉक्यूमेंट नहीं है; यह एक ऐसे राष्ट्र की उम्मीदों और आकांक्षाओं का प्रतीक है जो औपनिवेशिक शासन से आजाद हुआ. और बचाना आने वाली सभी पीढ़ियों की जिम्मेदारी है. इसे बचाने के लिए ही भारत के संविधान की हाथों से लिखी कॉपी नई दिल्ली में पार्लियामेंट लाइब्रेरी में रखी है. संविधान की मूल प्रति एक हीलियम-भरे कक्ष में सावधानीपूर्वक रखी गई है. लेकिन इसे सहेजने के लिए इतनी एडवांस टेक्नोलॉजी का उपयोग क्यों किया गया?
संविधान की मूल प्रति है सबसे जरूरी
1947 में आजादी मिलने के बाद, भारत के लिए सबसे बड़ा काम उसका संविधान तैयार करना था. खासकर एक ऐसे देश के लिए जहां अलग-अलग सांस्कृतिक और आर्थिक ताने-बाने का मेल था. इस प्रक्रिया में लगभग तीन साल (9 दिसंबर 1946 से 26 जनवरी 1950 तक) लगे, जिसमें संविधान सभा ने इस पर बहस की, इसे लिखा और अंतिम रूप दिया.
संविधान की मूल प्रति को हिंदी और अंग्रेज़ी में हाथ से लिखा गया था. यह काम प्रेम बिहारी नारायण रायजादा के नेतृत्व में किया गया. इन प्रतियों को शांतिनिकेतन के नंदलाल बोस और उनकी टीम द्वारा बनाए गए चित्रों से सजाया गया.
परिणामस्वरूप, यह दस्तावेज न केवल एक कानूनी दस्तावेज, बल्कि भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और लोकतांत्रिक भावना का प्रतीक भी बना.
24 जनवरी 1950 को संविधान सभा के 284 सदस्यों ने इस पर हस्ताक्षर किए. आज, ये मूल प्रतियां न केवल देश चलाती हैं बल्कि भारत के संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य बनने की यात्रा के ऐतिहासिक विरासत को भी दिखाती है.
कैसे सहेजा गया है?
हालांकि, चूंकि यह प्रति कागज पर लिखी है तो इसके खराब होने का डर है. कागज चाहे वह कितनी भी हाई क्वालिटी का क्यों न हो या चाहे आर्काइव पेपर ही क्यों न हो, समय के साथ खराब हो जाता है. लाइट, तापमान, हमीदित्य और ऑक्सीजन जैसे पर्यावरणीय कारक इसे खराब करने का कारण बन सकते हैं. ऐसे में भारत जैसे राष्ट्र के लिए इसे सहजना बहुत जरूरी है.
हीलियम गैस में क्यों संविधान?
कागज को सहेजने के लिए हीलियम गैस का इस्तेमाल किया गया है. संविधान की मूल प्रति को एक विशेष रूप से डिजाइन किए गए एयरटाइट कंटेनर में रखा गया है. इसे हीलियम से भरा गया है.
इसके पीछे कई कारण हैं:
-हीलियम एक "नॉबल गैस" है, जिसका मतलब है कि यह केमिकल रूप से नॉन-रिएक्टिव है. ऑक्सीजन के विपरीत, यह कागज या स्याही के साथ रिएक्शन नहीं करती है, जिससे ऑक्सीडेशन की संभावना खत्म हो जाती है. ऑक्सीडेशन डॉक्यूमेंट के पीले पड़ने और खराब होने का सबसे बड़ा कारण होता है.
-हीलियम-से भरा कंटेनर आसपास की ह्यूमिडिटी लेवल को कंट्रोल रखता है. इससे कागज में नमी अब्सॉर्ब नहीं होती है.
-इस चैंबर को एक स्थिर तापमान बनाए रखने के लिए डिजाइन किया गया है, जिससे फिजिकल और केमिकल डैमेज का जोखिम कम हो जाता है. तापमान में अचानक बदलाव होने से कागज फैल सकता है या सिकुड़ सकता है. इससे उसमें दरारें पड़ सकती हैं.
-ये हीलियम चैंबर यूवी रेडिएशन से बचाता बचाता है. इससे स्याही फीकी पड़ सकती है और कागज के रेशे कमजोर हो सकते हैं. कांच को यूवी किरणों को रोकने वाले फिल्टर से लैस किया गया है, जिससे डॉक्यूमेंट बाहर से देखा जा सकता है लेकिन इसको कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकेगा.
हालांकि, भारत ऐसा पहला देश नहीं है जो इस तरह की तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है. अमेरिका ने बहुत समय पहले ही संविधान और बिल ऑफ राइट्स को वाशिंगटन, डी.सी. के नेशनल आर्काइव में हीलियम-भरे चैंबर में रख दिया था. इसी प्रकार, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देश भी अपने ऐतिहासिक दस्तावेजों की सुरक्षा के लिए एडवांस तरीकों का उपयोग करते हैं.
हीलियम ही क्यों?
नाइट्रोजन या आर्गन जैसी दूसरी नॉन-रिएक्टिव गैसों के बजाय हीलियम का उपयोग इसके कुछ गुणों के कारण किया जाता है. हीलियम हवा से कम भारी होती है, जिससे यह चैंबर को समान रूप से भर देती है और बची हुई ऑक्सीजन को हटा देती है. इसके अलावा, हीलियम लंबे समय तक प्रभावी रहती है, जिससे बार-बार इसे बदलने की जरूरत नहीं होती.