scorecardresearch

40 से ज्यादा की उम्र में 10वीं की परीक्षा दे रही हैं ये महिलाएं, किसी को बहू तो किसी को पढ़ा रही है नवासी

औरंगाबाद के समर्थ नगर में एक प्रौढ़ महिला विद्यालय है जो 1998 में शुरू हुआ था. इस महिला विद्यालय में चार कक्षा हैं जिनमें चौथी, सातवीं, नौवीं और दसवीं शामिल है. इस स्कूल में 181 महिला विद्यार्थी हैं और दसवीं कक्षा में 61 महिला विद्यार्थी हैं. जिनमें से 35 महिलाएं दसवीं बोर्ड की परीक्षा दे रही हैं.

Representational Image (Photo: Reuters) Representational Image (Photo: Reuters)
हाइलाइट्स
  • समर्थ नगर में है प्रौढ़ महिला विद्यालय

  • महिलाएं नाती-नवासों के साथ दे रही हैं परीक्षा

कहते हैं पढ़ाई करने की कोई उम्र नहीं होती है. इसका उदाहरण महाराष्ट्र के औरंगाबाद में देखने को मिला. जहां पर दसवीं बोर्ड की परीक्षा देने के लिए 35 प्रौढ़ महिलाएं परीक्षा सेंटर पर पहुंची. ये सभी महिलाएं किसी न किसी कारण से दसवीं कक्षा पूरी नहीं कर पायीं. 

आज ये महिलाएं अपनी पढ़ाई पूरी कर रही हैं. वे न सिर्फ दसवीं कक्षा की परीक्षा दे रही हैं बल्कि आगे पढ़ाई जारी रखना चाहती हैं. और एक स्कूल इन महिलाओं को अपनी पढ़ाई पूरी करने का मौका दे रहा है.  

नाती-नवासों के साथ दे रही हैं परीक्षा:

औरंगाबाद के समर्थ नगर में एक प्रौढ़ महिला विद्यालय है जो 1998 में शुरू हुआ था. इस महिला विद्यालय में चार कक्षा हैं जिनमें चौथी, सातवीं, नौवीं और दसवीं शामिल है. इस स्कूल में 181 महिला विद्यार्थी हैं और दसवीं कक्षा में 61 महिला विद्यार्थी हैं. जिनमें से 35 महिलाएं दसवीं बोर्ड की परीक्षा दे रही हैं. 

10वीं बोर्ड की परीक्षा देने वाली महिलाओं में कुछ ऐसी भी महिलाएं हैं जिनके बच्चों के बच्चे आज दसवीं में हैं. और वह अपने नाती-नवासों के साथ दसवीं की परीक्षा दे रही हैं.

यहां की प्रिंसिपल विमल रंधे का कहना है कि बहुत सी ऐसी महिलाएं भी हैं जिन्होंने अपनी शादी के बाद पढ़ना-लिखना छोड़ दिया. कारण था कि शादी के बाद ससुराल वाले उन्हें परेशान कर रहे थे तो कुछ महिलाओं के पास पढ़ने के लिए पैसा नहीं था. इन सभी बातों को देखते हुए प्रिंसिपल ने कई महिलाओं का दाखिला अपने स्कूल में करवाया और आज कई सारी महिलाएं टीचर, प्रोफेसर, वकील और इंजीनियर बन चुकी हैं. 

सबके लिए मिसाल हैं ये महिलाएं:

प्रौढ़ महिला विद्यालय में दसवीं की परीक्षा देने वाली महिला, हाजरा बी तकरीबन 54 साल की हैं. इनका कहना है कि शादी कम उम्र में हो गई थी और पिता के पास इतना पैसा नहीं था कि वह स्कूल में पढ़ा सकें. शादी होने के बाद इनके पति ने इन्हें पढ़ने में मदद की और हाजरा भी अब दसवीं बोर्ड की परीक्षा दे रही हैं. 

हाजरा बी का कहना है कि वह सुबह उठकर खेत में काम करती हैं और 12 बजे स्कूल के लिए जाती हैं. रात के समय वह अपनी नवासी के साथ घर में परीक्षा की तैयारी भी करती हैं. उनकी नवासी का कहना है कि वह भी दसवीं बोर्ड की परीक्षा दे रही है और वह अपने नानी के साथ अक्सर पढ़ाई करती है.

वहीं 55 साल की रामको सुंदरलाल सोनावने का कहना है कि उनकी अगर दसवीं बोर्ड परीक्षा पास हो जाती है तो वह कॉलेज में एडमिशन लेंगी. उनका कहना है कि उन्होंने अपनी जिंदगी अपने बच्चों के पीछे लगा दी और आज उनके बच्चे अच्छा पढ़-लिख कर नौकरी कर रहे हैं. रामको का कहना है कि बहुत से लोग कहते हैं कि अब इस उमर में क्यों पढ़ना. 

पर रामको उनकी बातों पर ध्यान नहीं देतीं. उनका कहना है कि पढ़ाई के लिए कोई उम्र नहीं होती है. उन्हें स्कूल में अच्छे से पढ़ाया जा रहा है. घर में भी रामको को उनकी बहू और बेटी 10वीं परीक्षा की तैयारी करवा रही है.

नौकरी करने के हैं ख्वाब:

इसी स्कूल में पढ़ने वाली एक महिला राधा खोदकर का कहना है कि पति से डिवोर्स हो गया था लेकिन उन्हें दसवीं पढ़ने की इच्छा थी. इसीलिए उन्होंने 35 साल के बाद दोबारा दसवीं कक्षा में एडमिशन लिया. इनकी आर्थिक तंगी इतनी थी कि इन्हें स्कूल आने-जाने के लिए पैसों की परेशानी रहती थी. 

जिसके बाद स्कूल की प्रिंसिपल ने इन्हें घर से स्कूल आने-जाने के लिए पैसे दिए. उनका कहना है कि अगर वह दसवीं पास हो जाती हैं तो महिला कॉलेज में एडमिशन लेंगे और उसके बाद कोई अच्छी सी नौकरी करेंगी. जिससे यह समाज की उन महिलाओं की मदद कर सके जो शिक्षा हासिल नहीं कर पातीं है और साथ ही साथ बच्चों को भी वह शिक्षा दिलवाना चाहती हैं.

(इसरार चिश्ती की रिपोर्ट)