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Gurugram के इस गांव में सात बच्चों के लिए चलता है स्कूल, जानिए एक टीचर कैसे बना इनके लिए शिक्षा की आखिरी उम्मीद

स्कूल के ग्राउंड में घास घुटनों तक उग आई है. दीवारों और छत पर सीलन के निशान बने हुए हैं. स्कूल में सिर्फ एक क्लासरूम है. उसमें भी बच्चे नहीं बैठे. कुछ टूटा हुआ फर्नीचर, घास काटने की मशीन, एक कैरम बोर्ड, कुछ बक्से, एक टीवी और कुछ बर्तन रखे हैं. 

Representational Image(Jaikishan Patel/Unsplash) Representational Image(Jaikishan Patel/Unsplash)

गुरुग्राम के गोपालपुर खेड़ा में द्वारका एक्सप्रेसवे से करीब एक किलोमीटर दूर एक जर्जर इमारत को स्कूल बनाने वाली एकमात्र चीज उसमें बैठे हुए सात बच्चे हैं. स्कूल के बाहर इसके नाम का बोर्ड तक मौजूद नहीं है, लेकिन ये बच्चे हर रोज इसके ज़ाफ़रानी, सफेद और हरे रंग के दरवाज़े को पार करते हुए स्कूल चले आते हैं.

हरियाणा में प्राइमेरी स्कूल चलाने के लिए उसमें कम से कम 20 बच्चे होने चाहिए. लेकिन अगर यह स्कूल बंद हो जाता है तो इन सात बच्चों को घर पर बैठना पड़ सकता है. इसी डर से राजकीय प्राथमिक विद्यालय, गोपालपुर खेड़ा की एकमात्र अध्यापिका ललिता चावला इस स्कूल को चला रही हैं.

कैसे हैं स्कूल के हालात?
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट इस स्कूल के हालात पर रोशनी डालती है. इस स्कूल के ग्राउंड में घास घुटनों तक उग आई है. उजाड़ दिखने वाले स्कूल के फ्रंट यार्ड को पार करने पर मालूम पड़ता है कि स्कूल की दीवारों और छत पर सीलन के निशान बने हुए हैं. स्कूल में सिर्फ एक क्लासरूम खुला है. उस क्लासरूम में भी बच्चे नहीं, कुछ टूटा हुआ फर्नीचर, घास काटने की मशीन, एक कैरम बोर्ड, कुछ बक्से, एक टीवी और कुछ बर्तन रखे हैं. 

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स्कूल में दो शौचालय हैं जो बेइंतहा गंदे हैं. एक किचन है जो टूटा हुआ है. स्कूल में मिड-डे मील परोसने का काम हरियाणा सरकार की नियुक्त की गई एक एजेंसी करती है. स्कूल में बिजली भी नहीं है, जिसकी वजह से बच्चों को स्कूल के बरामदे में बैठना पड़ रहा है. इसी बरामदे में 11 साल का दिवेश बैठा है, जो पांचवीं क्लास में पढ़ता है. दिवेश इस स्कूल का एकमात्र स्टूडेंट है जो यूनिफॉर्म पहनकर आता है, तीन अंकों की संख्याओं को गुणा-भाग कर सकता है और अंग्रेजी पढ़ सकता है. 

मानेसर नगर पालिका क्षेत्र के गढ़ी हरसरू क्लस्टर में आने वाला यह स्कूल 1985 में बना था. स्थानीय लोग बताते हैं कि बीते कुछ सालों में स्कूल के दो शिक्षकों के ट्रांसफर के बाद यह सरकार की बेपरवाही का शिकार बन गया. पिछले शैक्षिक सत्र का स्कूल रजिस्टर बताता है कि यहां मार्च 2024 तक 25 बच्चों का नाम लिखा हुआ था. अब यहां रजिस्टर भी नहीं है.

बंद क्यों नहीं हो जाता स्कूल?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट एक सरकारी अधिकारी के हवाले से बताती है कि 25 बच्चों के लिए भी स्कूल में कम से कम दो शिक्षकों की जरूरत होती है. लेकिन 45 दिन के कॉन्ट्रैक्ट पर यहां आईं गेस्ट टीचर ललिता स्कूल की एकमात्र शिक्षिका हैं. फिलहाल वह भी छुट्टी पर हैं इसलिए दो किलोमीटर दूर मौजूद एक अन्य प्राइमेरी स्कूल के टीचर अनिल कुमार उनकी जिम्मेदारी संभाल रहे हैं.

क्या इस स्कूल को बंद कर देना बेहतर नहीं होगा? यह सवाल पूछे जाने पर अनिल एक्सप्रेस से कहते हैं, "इन बच्चों के माता-पिता मजदूर हैं. वे इन्हें यहां पढ़ने के लिए इसलिए भेजते हैं क्योंकि यह स्कूल पास है. अगर यह स्कूल बंद हो गया और बच्चों का नाम गढ़ी हरसरू प्राइमेरी स्कूल में लिखवा दिया गया तो इन्हें घर बैठना पड़ेगा. वह स्कूल दो किलोमीटर दूर है. माता-पिता अपने बच्चों को इतनी दूर स्कूल नहीं भेजना चाहेंगे." 

यह स्कूल बंद होने से सिर्फ इन बच्चों की शिक्षा ही नहीं बल्कि विद्यालय के सफाईकर्मी, सुरक्षाकर्मी और रसोइया (जो अब खाना परोसता है) की नौकरी भी जाएगी. 

पहले भी स्कूल बंद करने की हुई है कोशिश 
गढ़ी हरसरू क्लस्टर के ड्रॉइंग और डिस्बर्सिंग अधिकारी (DDO) जल सिंह बताते हैं कि इस स्कूल को बंद करने की असफल कोशिश की जा चुकी है. एक्सप्रेस की रिपोर्ट सिंह के हवाले से कहती है, "2022 के करीब हमने महसूस किया कि गोपालपुर खेड़ा स्कूल में बच्चों की संख्या गिरने लगी थी. हमने पाया कि इस इलाके में बहुत कम बच्चे थे और उनमें से ज्यादातर प्राइवेट स्कूल जाते थे. बच्चों को स्कूल छोड़ने से रोकने के लिए उस समय के टीचर बच्चों की पढ़ाई का खर्च अपनी जेब से देने के लिए भी तैयार हो गए." 

वह बताते हैं, “अप्रैल 2024 में उस शिक्षक के चले जाने के बाद क्लस्टर के स्कूलों के सात अन्य लोग बारी-बारी से बचे हुए बच्चों को पढ़ाने लगे. हमने इस साल इन बच्चों को दूसरे प्राथमिक विद्यालय (गढ़ी हरसरू स्कूल) में ले जाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने स्कूल जाना ही बंद कर दिया. इसलिए हमने इस कदम के खिलाफ फैसला किया." 

फिलहाल स्कूल को जारी रखना प्रशासन के पास एकमात्र विकल्प है. क्योंकि यह जर्जर इमारत ही इन सात बच्चों के लिए शिक्षा हासिल करने की एकमात्र उम्मीद है.