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IIT Delhi: अब कैंपस में परिवार के साथ रह सकेंगे छात्र, मानसिक तनाव कम करने के लिए संस्थान ने लिए उठाए अहम कदम

आईआईटी से लेकर कोटा तक, इंजीनियरिंग के छात्रों पर पड़ने वाला मानसिक दबाव अकसर चर्चा का विषय बना रहता है. कई बार यह तनाव छात्रों को आत्महत्या करने के लिए भी मजबूर करता है. इस समस्या से निपटने के लिए आईआईटी दिल्ली ने नए उपाय अपनाए हैं.

IIT Initiative (Photo: Unsplash) IIT Initiative (Photo: Unsplash)
हाइलाइट्स
  • आईआईटी दिल्ली ने मानसिक तनाव की समस्या को पहचानकर बनाया पैनल

  • कैंपस में परिवार के साथ भी रह सकेंगे कुछ विशेष छात्र

आईआईटी से लेकर कोटा तक, इंजीनियरिंग के छात्रों पर पड़ने वाला मानसिक दबाव अकसर चर्चा का विषय बना रहता है. साल 2018-2023 के बीच देशभर के अलग-अलग आईआईटी में 39 विद्यार्थियों ने मानसिक दबाव में आकर आत्महत्या की, जबकि कोटा में सिर्फ पिछले साल 23 आत्महत्याएं दर्ज की गईं. इस चिंताजनक स्थिति से निपटने के लिए आईआईटी दिल्ली ने नए उपाय अपनाए हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, आईआईटी दिल्ली ने पढ़ाई में संघर्ष कर रहे अंडरग्रैजुएट विद्यार्थियों पर दबाव कम करने के लिए एक टीचर-स्टूडेंट्स पैनल का गठन किया है. कुछ विशेष मामलों में विद्यार्थियों को कैंपस पर अपने परिवार के एक सदस्य के साथ रहने की छूट भी दी गई है.

क्या है इंस्टीट्यूट का फैसला

रिपोर्ट के अनुसार, अकैडेमिक प्रोग्रेस ग्रुप (एपीजी) नाम के पैनल के एक सदस्य ने कहा, "कुछ विशेष मामलों में, विभागों ने कम से कम तीन ऐसे विद्यार्थियों की पहचान की है जिन्हें अतिरिक्त समर्थन की जरूरत हो सकती है और इसलिए परिवार के साथ रहना जरूरी है. ऐसे मामलों में विद्यार्थियों को परिवार के एक सदस्य के साथ कैंपस में रहने की अनुमति है. उन्हें हॉस्टल में अकेले न रहने की सलाह दी गई है."

ये विशेष विद्यार्थी हॉस्टल में मौजूद किचन का इस्तेमाल भी कर सकते हैं और अपनी पसंद का खाना बना सकते हैं. रिपोर्ट में बताया गया कि अब तक ऐसे 192 छात्रों की पहचान हुई है जो शैक्षणिक रूप से भटके हुए हैं और इन्हें मदद की जरूरत है.

एपीजी का गठन सितंबर 2023 में अनिल कुमार नाम के एक छात्र की मृत्यु के बाद किया गया था. इस साल अब तक देश भर के अलग-अलग आईआईटी में कुल पांच विद्यार्थी आत्महत्या कर चुके हैं. 

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पैनल ने दिए ये सुझाव 

आठ सदस्यीय एपीजी पैनल में पांच मार्च को दो विद्यार्थियों को भी शामिल किया गया था. पैनल ने अब तक समस्याओं की पहचान करके दो तरह के सुझाव दिए हैं. पहले वे, जिन्हें फौरन लागू करना है और दूसरे वे, जिनपर विचार-विमर्श किया जाना है.

पैनल ने पता लगाया है कि कई छात्र पहली बार में अपनी कुछ परीक्षाएं पास नहीं कर पाते. इसका कारण यह है कि नौंवे सेमेस्टर के बाद छात्रों को हॉस्टल में जगह नहीं मिलती. पैनल ने सुझाव दिया है कि जिन विद्यार्थियों की 'बैकलॉग' रह जाती है उनके लिए नौंवे सेमेस्टर के बाद भी हॉस्टल में 30 कमरे आरक्षित किए जाएं. ये कमरे उन्हीं छात्रों को दिए जाएंगे जिनकी अटेंडेंस 75 प्रतिशत से ज्यादा होगी. 

ट्यूशन सिस्टम में भी हो सुधार

पैनल ने इंस्टीट्यूट के 'बोर्ड ऑफ स्टूडेंट वेल्फेयर' (BSW) की ओर से चलने वाले ट्यूशन सिस्टम में भी सुधार करने का सुझाव दिया है. बीएसडब्ल्यू आईआईटी की एक ट्यूशन प्रणाली है जिसमें सेकंड और थर्ड ईयर के छात्र फर्स्ट ईयर के कमजोर छात्रों को ट्यूशन पढ़ाते हैं. पैनल ने कहा है कि छात्रों को अपने ट्यूटर चुनने की आजादी दी जाए. चौथे और पांचवें साल में पढ़ने वाले छात्रों के लिए भी ट्यूटर उपलब्ध हो. साथ ही ट्यूशन देने वाले छात्रों का मेहनताना भी बढ़ा दिया जाए. 

वे सुझाव जिनपर विचार-विमर्श किया जाना है, उनमें पैनल ने कहा है कि छात्रों के ग्रेडिंग सिस्टम में बदलाव किया जाए. मिसाल के तौर पर, पैनल ने डिग्री ग्रेड प्वाइंट एवरेज (डीजीपीए) सिस्टम को खत्म करने का सुझाव दिया है. इसके तहत सभी विषयों के ग्रेड प्वॉइंट को जोड़ने के बाद ही विद्यार्थी को डिग्री सौंपी जाती है.

इस समय बी टेक की पढ़ाई कर रहे छात्र को डीजीपीए में 10 में से पांच प्वॉइंट लाने के बाद ही डिग्री सौंपी जाती है, जबकि हर विषय में पास होने के लिए सिर्फ 10 में  से चार प्वॉइंट की जरूरत ही होती है.

पैनल का कहना है कि अगर कोई विद्यार्थी हर विषय में 10 में से चार प्वॉइंट ला रहा है तो उसे डिग्री दे देनी चाहिए, भले ही डीजीपीए पांच से कम हो. यह सुझाव इंस्टीट्यूट के सिनेट की मंजूरी मिलने के बाद ही लागू हो पाएगा.