जहां भारत में ज्यादातर छात्रों का सपना इंडियन सिविल सर्विसेज पास करना होता है वहीं इनमें से कई ऐसे भी हैं जो समाज के लिए काम करने की चाह रखते हैं. रिटायर्ड आईएसएस ऑफिसर रत्ना विस्वनाथन (Ratna Viswanathan) के लिए सिवल सर्विसेज रोमांचक और चुनौतीपूर्ण रहा. रक्षा मंत्रालय, और प्रसार भारती जैसे हाई-प्रोफाइल विभागों में 21 साल की सेवा के बाद, वॉलेंटरी रिटायरमेंट ले लिया. उनके मुताबिक, वह लोगों पर सीधा प्रभाव डालना चाहती थी, जो कहीं न कहीं नहीं हो पा रहा था. बता दें, रत्ना विस्वनाथन इंडियन ऑडिट एंड अकाउंट सर्विस, 1987 बैच की पूर्व सिविल सर्वेंट है.
रिटायरमेंट लेकर समाज के लिए काम करना शुरू किया
आज, 60 साल की उम्र में, रत्ना विस्वनाथन रीच टू टीच (RTT) सीईओ बन लाखों बच्चों के जीवन को प्रभावित कर रही हैं. बता दें, रीच टू टीच एक सोशल इम्पैक्ट ऑर्गनाइजेशन है. जो सरकारी स्कूलों में शिक्षा और बच्चों की सीखने की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए काम कर रही है. GNT डिजिटल से बात करते हुए आरटीटी की सीईओ, रत्ना विस्वनाथन ने बताया कि कैसे उन्होंने सर्विस से रिटायरमेंट लेकर समाज के लिए काम करना शुरू किया.
रत्ना का मानना है कि दिन के आखिर में अगर स्कूलों पढ़ा रहे शिक्षक को पढ़ाने में रुचि नहीं है, तो निश्चित रूप से बच्चे को सीखने में रुचि नहीं होगी. बस इसी माहौल को बदलने के लिए वे काम कर रही हैं. वे कहती हैं, "सर्विस के दौरान मुझे एहसास हुआ कि सरकार के साथ रहकर आप बड़े पैमाने पर सीख सकते हैं, लेकिन मैं लोगों के बीच में जाकर काम करना चाहती थी."
स्कूलों में बनाया जाए खुशनुमा माहौल
भारत में कुल लगभग 15 लाख स्कूल हैं, जिनमें से कम से कम दस लाख सरकारी स्कूल हैं. ये केंद्र और राज्य सरकारों के अंडर आते हैं. वहीं देश में कुल 26 करोड़ 44 लाख बच्चे स्कूलों में जाते हैं, उनमें से लगभग 50.5 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं. देश की आधी से अधिक स्कूल जाने वाली आबादी सरकारी स्कूलों में रजिस्टर्ड है. जिनकी बेहतरी और व्यवस्था में सुधार के लगातार प्रयास किए जा रहे हैं.
प्रोजेक्ट के बारे में बात करते हुए रत्ना कहती हैं कि ये विजन तीन तरह से काम करता है. पहला विचार यह है कि वे विशेष रूप से सरकारी स्कूलों के साथ काम करते हैं. दूसरा, वे इन सरकारी स्कूलों के अंदर आनंदपूर्ण सीखने की जगह बनाने की दिशा में काम करते हैं ताकि बच्चे खुशी से सीखें और शिक्षक उन्हें खुशी से पढ़ाएं. रत्ना के मुताबिक, मौजूदा समय में ये दोनों ही नहीं हो रहा है. रत्ना कहती हैं, “हम ज्यादातर देखते हैं कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई, उसके तौर तरीके प्राइवेट कितने अच्छे नहीं होते हैं. जिस तरह से पढ़ाई होनी चाहिए वैसी नहीं होती है. बच्चे खुशी से सीखते नहीं हैं. पढ़ना लिखना एक तरफ है और सीखना एक तरफ. ये सब देखते हुए हमने सरकारी स्कूलों के शिक्षा की क्वालिटी पर काम करने का सोचा.”
खुद नहीं चुना था सिविल सर्विस
रत्ना ने बताया कि वे आरटीटी में आने से पहले यूएनडीपी के साथ थीं. 2008 में रिटायरमेंट के बाद उन्होंने कई जगह काम किया. वह लगभग चार साल तक ऑक्सफैम इंडिया की डायरेक्शन ऑपरेटर भी रहीं. रत्ना के आरटीटी जॉइन करने के बाद ऑर्गनाइजेशन ने गुजरात से हरियाणा और अरुणाचल प्रदेश तक अपना विस्तार किया है.
बतौर सिविल सर्वेंट वाले सफर के बारे में बात करती हुई रत्न कहती हैं, “दरअसल, मैंने सिविल सर्विस खुद नहीं चुना था. मैं और मेरे कुछ दोस्तों ने एमए के एग्जाम दिए थे और फिर किसी ने कहा कि चलो यूपीएससी का फॉर्म भरते हैं. मैंने प्रीलिम्स क्लियर कर लिया तब लगा कि अब मेन्स के लिए पढ़ ही लेते हैं. और बस ऐसे ही मैं सिविल सर्वेंट बन गईं, कोई प्लानिंग नहीं थी. लेकिन उसके बाद 21 साल का सफर बहुत अच्छा था. सरकार में रहकर जो सीख मिलती है वो कहीं और नहीं मिल सकती है. आपको अलग अलग डिपार्टमेंट और लोगों से काम करना पड़ता है. आप काफी कुछ सीखते हैं. लेकिन इसकी अपनी सीमाएं हैं. एक पॉइंट आता है जब आपको लगता है कि आप डायरेक्ट लोगों के साथ एंगेज नहीं कर पाते हैं. हम पॉलिसी बनाते हैं. लेकिन सीधे तौर पर जनता के लिए काम नहीं कर पाते हैं. तो जब मन किया कि अब कुछ करना चाहिए तो लगा कि 21 साल बाद अब जनता के लिए काम किया जाए.”
लाखों बच्चों तक पहुंचने का है लक्ष्य
आरटीटी की कहानी की बात करें तो ये बस में एक स्कूल से शुरू हुई जो बच्चों को शिक्षा के दायरे में लाने के लिए गुजरात के आदिवासी इलाकों में जाती थी. वहीं से इसका कॉन्सेप्ट आया. भारत में साल 2007 में RTT की स्थापना हुई. रत्ना कहती हैं कि हम चाहते हैं कि स्कूल में बच्चे सच में सीखने का मजा लें. वे रटकर न सीखें. आज हमारे सरकारी स्कूलों के डिजाइन, इंफ्रास्ट्रक्चर और पर्यावरण को मजबूत करने की जरूरत है. क्योंकि जब स्कूल के माहौल बदलेगा तभी यह छात्र के सीखने के अनुभव को प्रभावित कर सकता है.
रीच टू टीच के मुताबिक, वर्तमान में वे राज्य स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए हरियाणा, अरुणाचल और गुजरात सरकारों के साथ साझेदारी कर काम कर रहा है.आजतक ये 50,225 स्कूलों, 2,89,653 प्रधान शिक्षकों और शिक्षकों और 79,33,140 बच्चों को प्रभावित कर चुके हैं. 2025 तक, उनका लक्ष्य पांच राज्यों, 1,00,000 स्कूलों, 4,00,000 प्रधान शिक्षकों और शिक्षकों और लाखों बच्चों पर प्रभाव पैदा करना है.
हर दिन है वीमेंस डे: रत्ना विस्वनाथन
महिला दिवस के बारे में बात करते हुए रत्ना कहती हैं, “अब की बात करूं तो रोज सुबह उठती हूं तो मुझे लगता है कि जल्दी जल्दी ऑफिस जाओ और काम करो. मुझे ये लगता है कि हर दिन वीमेंस डे है. हम हर दिन काम करते हैं, घर का भी दफ्तर का भी, बच्चे भी देखते हैं. जो मल्टीटास्किंग महिलाएं करती हैं वो कोई और नहीं कर सकता. तो मेरे लिए हर दिन महिलाओं का दिन ही है.”