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हौसले की मिसाल! हर रोज सिर्फ एक बच्चे को पढ़ाने के लिए 45 किमी ट्रेवल करती है यह टीचर

अटलवाड़ी में जिला परिषद के प्राथमिक विद्यालय में कक्षा 1 में पढ़ने वाली स्कूल की एकमात्र छात्रा सिया शेलार को पढ़ाने के लिए टीचर मंगला धावले 45 किमी ट्रेवल करके आती हैं.

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हाइलाइट्स
  • अटलवाड़ी से पलायन कर रहे हैं लोग

  • हर दिन डेढ घंटे ट्रेवल करके आती हैं मंगला

हमारे जीवन में सबसे ज्यादा महत्व शिक्षा का है. शिक्षा हर एक बच्चे के लिए जरूरी है और उनका अधिकार भी है. लेकिन आज भी बहुत से बच्चे कुछ कारणों से शिक्षा नहीं ले पाते हैं. ऐसे में, महाराष्ट्र के अटलवाड़ी में एक शिक्षिका ऐसे मिसाल पेश कर रही है कि आप भी उन्हें नमन करेंगे. 

40 वर्षीय मंगला धावले अटलवाड़ी के जिला परिषद स्कूल में तैनात एकमात्र प्राइमरी टीचर हैं और वह अपनी एकमात्र प्रभारी कक्षा 1 की छात्रा सिया शेलार को पढ़ाती हैं. एक टीचर सिर्फ एक छात्रा को पढ़ाने के लिए आती है. इससे भी ज्यादा हैरानी की बात यह है कि इसके लिए वह  सप्ताह में छह दिन अपने घर से अटलवाड़ी में स्कूल तक 45 किमी की यात्रा करती हैं. अटलवाड़ी पुणे के धायरी से लगभग 50 किमी दूर अंडगांव गांव की एक छोटी सी बस्ती है. 

शहरों में जाकर बस गए लोग 
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, पुणे जिले के 3,638 प्राथमिक स्कूलों में से 21 स्कूल ऐसे हैं, जिनमें एक छात्र और एक शिक्षक है. अटलवाड़ी स्कूल भी इन 21 स्कूलों में से एक है. इन स्कूलों में से ज्यादातर स्कूल जिले की पहाड़ी तालुकाओं में स्थित हैं. इन क्षेत्रों में रोजगार के अवसर न होने के कारण लोग शहरों की ओर पलायन कर गए हैं और इसलिए यहां स्कूलों में छात्रों की संख्या बहुत कम है. हालांकि अटलवाड़ी में लगभग 40 घर हैं, केवल 15 में ही लोग रहते हैं. ज्यादातर परिवार पिरंगुट या पुणे में बस गए हैं और केवल त्योहारों पर या पारिवारिक समारोहों के लिए अटलवाड़ी जाते हैं. 

छह वर्षीय सिया बस्ती में 6-9 आयु वर्ग की एकमात्र बच्ची है. उनकी बड़ी बहन रसिका, जो कक्षा 6 की छात्रा है, अटलवाड़ी से कुछ किलोमीटर दूर अंडगांव तक पैदल जाती है. सिया की तरह, रसिका अटलवाड़ी स्कूल में एकमात्र छात्रा थी जब वह कक्षा 3 और 4 में थी. उनका छोटा भाई समर्थ सिर्फ 3 साल का है. हालांकि वह कभी-कभी सिया के साथ स्कूल जाता है, लेकिन मंगला को कक्षा में उसकी उपस्थिति पर कोई आपत्ति नहीं है. 

आसान नहीं था अकेली छात्रा का पढ़ाना 
मंगला ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि सिया के लिए कुछ कंपनी होना अच्छा है. समर्थ इस प्रक्रिया में कुछ चीजें भी सीखता है. इस गांव में कोई आंगनवाड़ी नहीं है, इसलिए जब उन्होंने यहां शुरुआत की तो बच्ची की कोई प्रारंभिक शिक्षा नहीं हुई थी. सिया इतनी शर्मीली थी कि पहले आठ दिनों तक उसने कुछ भी नहीं बोला. जब तक वह मंगला के साथ सहज नहीं हो गई, सिया की मां उसके साथ रही. 

सिया अब स्कूल में अच्छा प्रदर्शन कर रही है. उसे स्कूल जाना पसंद है. जिस दिन स्कूल बंद होता है, वह परेशान हो जाती है. 
17 वर्षों से पढ़ा रही मंगला 2006 में पुणे जिला परिषद में शिक्षा सेवक के रूप में शामिल हुईं. अटलवाड़ी से पहले, वह भोडे और भारेकर वाडी में जिला परिषद स्कूलों में पढ़ाती थीं. यह पहली बार है जब वह सिंगल-टीचर स्कूल संभाल रही हैं. अगर कोई सहकर्मी होते, तो वह उनके साथ शिक्षण और प्रशासनिक कार्य की योजना बना सकती थीं. अब, जब भी उनकी बाहर मीटिंग होती है तो स्कूल बंद रहता है. यहां तक कि कक्षा की सफ़ाई भी उनकी ज़िम्मेदारी है. साथ ही, अकेले पढ़ते-पढ़ते सिया भी ऊब जाती है. 

कई चुनौतियों का सामना करती हैं मंगला
मंगला के सामने आने वाली अन्य चुनौतियों में गांव में ख़राब इंटरनेट कनेक्टिविटी, कुछ महीने पहले बिलों का भुगतान न करने पर बिजली काट दिए जाने के बाद से स्कूल में बिजली न होना और खेल के मैदान में बड़ी संख्या में उग आने वाली खरपतवार शामिल हैं. हालांकि, सिया के दादाजी ने वादा किया कि वह खरपतवार हटाने में उनकी मदद करेंगे. 

यहां तक ​​कि घर से स्कूल तक की 45 किलोमीटर की यात्रा भी बाधाओं से भरी होती है. उन्हें घर से स्कूल जाने में लगभग डेढ़ घंटा लगता है. कई बार उनका टायर फट जाता है या उनका स्कूटर ख़राब हो जाता है, तो वह इसे खींचकर पास के मैकेनिक के पास ले जाती हैं. अगर उन्हें कोई नहीं मिलता, तो अपना स्कूटर किसी सुरक्षित स्थान पर पार्क कर देती हैं और लिफ्ट ले लेती हैं. 

उनपर पारिवारिक जिम्मेदारियां भी हैं. उनके पति (पुणे के एक जिला परिषद स्कूल में शिक्षक) और वह सुबह 9 बजे के आसपास काम पर निकल जाते हैं. उनका  हमारी 12 वर्षीय बेटी (कक्षा 7 की छात्रा) लगभग उसी समय स्कूल के लिए निकलती है. वह अटलवाड़ी जाते समय अपने 5 वर्षीय बेटे को डेकेयर में छोड़ती हैं. जब उनकी बेटी दोपहर 2 बजे स्कूल से लौटती है, तो वह उसे डेकेयर से लाती है. शाम करीब 6.30 बजे उनके घर लौटने तक बच्चे अकेले रहते हैं. उनके पास आमतौर पर स्कूल में कोई मोबाइल नेटवर्क नहीं होता है, इसलिए उन्हे चिंता रहती है कि उनके बच्चे इमरजेंसी में उनसे संपर्क नहीं कर पाएंगे. 

इस सबके बावजूद मंगला कहती हैं कि सिया के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज शिक्षा है. वह अकेले अंडगांव में स्कूल नहीं जा पाएगी और घर पर ही रह जाएगी. हम इस टीचर के हौसले को सलाम करते हैं.

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