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Mahatma Gandhi Charkha: स्कूल में बनाया गया चरखा कक्ष! छात्रों को सिखाया जा रहा एकाग्रता और धैर्य का पाठ 

कोरोना काल के बाद खाली समय में छात्र मोबाइल, लैपटॉप, गेम खेलने और तेज आवाज में गाने सुनने में ही समय बर्बाद करने लगे थे. इसलिए ऐसे विद्यार्थियों की एकाग्रता धीरे-धीरे कम होने लगी. अब इसी के लिए नागपुर के एक स्कूल में चरखा कक्ष बनाया गया है. इसकी मदद से छात्रों को एकाग्रता और धैर्य का पाठ सिखाया जा रहा है.

Charkha Charkha
हाइलाइट्स
  • स्कूल में बनाया गया चरखा कक्ष

  • छात्रों को सिखाया जा रहा धैर्य का पाठ 

बच्चों में मोबाइल फोन के बढ़ते उपयोग के कारण, युवा स्कूली छात्रों में एकाग्रता और धैर्य की कमी हो रही है. हालांकि, स्कूली छात्रों की एकाग्रता को बढ़ाने के लिए, नागपुर में चंदादेवी सराफ स्कूल में एक नया तरीका खोजा गया है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 'चरखे' से स्कूली बच्चों में एकाग्रता सिखाई जा रही है. पिछले साल से इस विद्यालय के छात्र चरखे के माध्यम से एकाग्रता सीख रहे हैं. इससे छात्रों की एकाग्रता भी बढ़ी है. 

आजादी से पहले चरखा अहिंसा आंदोलन का एक प्रमुख प्रतीक था. आजादी के बाद भी चरखा अहम भूमिका निभा रहा है. पिछले वर्ष से इस विद्यालय के छात्र चरखे के माध्यम से 'संयम' सीख रहे हैं, इसलिए उनकी एकाग्रता भी बढ़ी है. इतना ही नहीं ये छात्र खुद को गांधी के विचारों से जोड़ रहे हैं.

कोरोना काल में लगी बच्चों को आदत
कोरोना काल के बाद खाली समय में छात्र मोबाइल, लैपटॉप, गेम खेलने और तेज आवाज में गाने सुनने में ही समय बर्बाद करने लगे थे. इसलिए ऐसे विद्यार्थियों की एकाग्रता धीरे-धीरे कम होने लगी थी. इतना ही नहीं छात्रों में धैर्य की भी कमी दिखाई दे रही थी. चंदादेवी सराफ स्कूल की निदेशक निशा सराफ ने कहा कि बच्चों के पास इंतजार करने की क्षमता नहीं है, क्योंकि एक क्लिक पर सब कुछ पल भर में उपलब्ध हो जाता है. 

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चरखे के महत्व और इसके उपयोग को जानते हुए, उन्होंने स्कूल में एक चरखा कक्ष बनाया और छात्रों को बिना किसी दबाव के अपनी पसंद के चरखा कक्ष में समय बिताने की अनुमति दी. इसके चलते स्कूल ने देखा कि छात्रों के आचरण और व्यवहार में काफी अंतर आ गया है और वे अपने काम में धैर्य दिखा रहे हैं. स्कूल में चरखे के माध्यम से छात्रों की एकाग्रता बढ़ी है और उनमें धैर्य भी काफी बढ़ गया है.

चरखा था स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक
जब महात्मा गांधी ने अहिंसा के माध्यम से अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी तो उनका चरखा स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक बन गया था. इस चरखे के माध्यम से छात्र महात्मा गांधी के विचारों को भी आत्मसात करने लगे हैं. जब यह गतिविधि शुरू हुई तो बहुत कम छात्र ही इस चरखा कक्ष में आते थे.

हालांकि, अब यह संख्या 100 के करीब पहुंच गई है. स्कूल के शिक्षकों के साथ-साथ छात्रों का भी दृढ़ विश्वास है कि यह चरखा आधुनिक युग में क्रांति ला सकता है. स्कूली बच्चे चरखा चलाकर जो भी सूत बनाते हैं, उस सूत से चरखा कक्ष के सभी पर्दे बनाए गए हैं. साथ ही इस 15 अगस्त को स्कूल में फहराया जाने वाला तिरंगा भी इस सूत से ही बनाया जाएगा. 

(योगेश पांडे की रिपोर्ट)