स्कूल का सिलेबस हो या बैग का एक्स्ट्रा बोझ, इन सभी को कम करने के लिए पिछले कुछ सालों से काम चल रहा है. ऐसे में बच्चों को केवल किताबी ज्ञान देने की जगह उन्हें स्किल सिखाने पर जोर दिया जा रहा है. अब इसी कड़ी में छोटी क्लास के बच्चों के ऊपर से भी Assessment और यूनिट टेस्ट का बोझ हटाने पर बात हो रही है.
नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क (National Curriculum Framework) के ड्राफ्ट में इसको भी जगह दी गई है. NCF में कहा गया है कि गैर जरूरी टेस्ट जैसे यूनिट टेस्ट और साइकिल टेस्ट से बच्चों के ऊपर अलग से बोझ पड़ता है. ऐसे में कक्षा 2 तक के बच्चों के लिए इसे पूरी तरह से हटा देना चाहिए. साथ ही लिखित परीक्षा कक्षा 3 से शुरू की जानी चाहिए. NCF के ड्राफ्ट में कहा गया है कि बच्चों का मूल्यांकन इस तरह से हो जिससे उनपर अलग से कोई बोझ न पड़े.
दूसरी क्लास तक एग्जाम है गैरजरूरी
दरअसल, नई National Education Policy (NEP) की तर्ज पर ये फ्रेमवर्क तैयार किया जा रहा है. इसमें फाउंडेशनल स्टेज पर बच्चों का असिस्मेंट कैसा हो इसपर बात की गई है. इसमें कहा गया है कि दो तरीके हैं जिनपर ये Assessment होने चाहिए. एक तो बच्चे का ऑब्जरवेशन करना और दूसरा उन कलाकृतियों का विश्लेषण करना जो बच्चे ने अपने सीखने के अनुभव के हिस्से के रूप में तैयार की हैं. ड्राफ्ट में कहा गया है कि फाउंडेशनल स्टेज यानि दूसरी कक्षा तक Assessment के रूप में टेस्ट लेना या एग्जाम लेना गैरजरूरी है.
हर बच्चे का सीखने का तरीका है अलग
ड्राफ्ट में कहा गया है कि बच्चे अलग-अलग तरीके से सीखते हैं और हर बच्चे की शिक्षा या जो उन्होंने सीखा है, उसको जताने का तरीका भी अलग होता है. वे अलग तरह से चीजों को adopt करते हैं. ऐसे में सीखने के परिणाम या योग्यता की उपलब्धि जानने के कई तरीके हो सकते हैं. शिक्षक के पास इस असिस्मेंट को अलग-अलग तरह के डिजाइन करने की क्षमता होनी चाहिए. इसके अलावा, Assessment में रिकॉर्डिंग और डॉक्यूमेंटेशन को भी शामिल करना चाहिए. बच्चे ने कितना सीखा है ये इन सभी चीजों को एनालाइज करने के बाद निर्धारित करना चाहिए.
असिस्मेंट से बच्चे पर न पड़े बोझ
Assessment से बच्चे पर कोई अलग से बोझ नहीं पड़ना चाहिए. Assessment टूल्स और प्रोसेस को इस तरह से डिजाइन किया जाना चाहिए कि वे बच्चे के लिए सीखने के अनुभव का एक स्वाभाविक विस्तार हों. ड्राफ्ट में तीसरी से पांचवी क्लास के बच्चों के लिए लिखित टेस्ट रखने की सलाह दी है. साथ ही कहा गया कि इससे माता-पिता भी आसानी से अपने बच्चे की प्रोग्रेस को देख और समझ सकेंगे. बता दें, शिक्षा मंत्रालय ने गुरुवार को स्कूली शिक्षा के लिए एनसीएफ का "प्री-ड्राफ्ट" जारी किया है और छात्रों, अभिभावकों, शिक्षकों और एक्सपर्ट्स के सुझाव आमंत्रित किए हैं. ये ड्राफ्ट इसरो के पूर्व प्रमुख के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाले एक पैनल ने तैयार किया है.
6 से 8वीं क्लास में हो कॉन्सेप्ट बेस्ड पढ़ाई
ड्राफ्ट में क्लास 6 से 8वीं तक के सिलेबस के बारे में भी बात की गई है. इसमें कहा गया है कि इस स्टेज में बच्चे के कॉन्सेप्ट को मजबूत किया जाना चाहिए. उनका सिलेबस कॉन्सेप्ट बेस्ड होना चाहिए. इस दौरान बच्चों के रेगुलर समेटिव असिस्मेंट यूनिट, साल और टर्म एन्ड पर होने चाहिए. इसमें मल्टीपल चॉइस क्वेश्चन से लेकर शॉर्ट-लॉन्ग क्वेश्चन भी होने चाहिए. साथ ही प्रोजेक्ट, डिबेट, प्रेजेंटेशन, एक्सपेरिमेंट, इन्वेस्टीगेशन, रोल प्ले, जर्नल्स, पोर्टफोलियो जैसी चीजों से मूल्यांकन किया जाना चाहिए.
9 से 12वीं के छात्रों के लिए हो सेल्फ Assessment
साथ ही सेकेंडरी स्टेज जिसमें कक्षा 9 से 12 के बच्चे शामिल हैं, के लिए सेल्फ Assessment होना चाहिए. सेल्फ Assessment छात्रों के सीखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. छात्र खुद ये देख सकेंगे कि वे क्या सीख रहे हैं और उन्हें कितना सीखना और जरूरी है. इस लेवल पर, छात्रों को हायर स्टडीज और करियर के अवसरों तक पहुंच के लिए बोर्ड एग्जाम और दूसरे सिलेक्शन टेस्ट के लिए भी तैयार रहना चाहिए.