कहते हैं अगर हौसला दृढ़ हों तो कुछ भी हासिल किया जा सकता है, फिर चाहे परेशानी कितनी भी बड़ी क्यों न हो. रायपुर के गुढ़ियारी में जनता कॉलोनी में रहने वाली देवश्री इसकी मिसाल हैं. जन्म से ही नेत्रहीन देव श्री को अब पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त हुई है. राजधानी रायपुर की रहने वाली देवश्री इसका सारा श्रेय अपने माता-पिता को देती हैं. वे कहती हैं, “आज मैं जो कुछ भी हूं अपने माता-पिता की बदौलत हूं, उन्होंने हमारा हौसला बढ़ाया और मेरे को हिम्मत थी. उन्होंने कहा कि नेत्रहीन हो तो क्या हुआ. उन्होंने मेरे को हिम्मत दी और रात दिन मेहनत करके हमारे माता-पिता ने हमको इस मुकाम तक पहुंचाया.”
छोटी सी दुकान लगाते हैं देवश्री के पिता
दरअसल, देवश्री के पिता की छोटी सी दुकान है. अपने पिता के बारे में बताते हुए देवश्री कहती हैं, ”मेरे पिता की एक छोटी सी दुकान है और छोटा सा मकान है. हम लोग उसी घर में रहते हैं. उसी दुकान से हमारे पापा परिवार का पालन पोषण करते है. पापा दुकान भी चलाते हैं और समय निकालकर हमको पढ़ाते भी थे. कभी 2 घंटे तो कभी 5 घंटे तो कभी 10 घंटे. आज जब मुझे पीएचडी की उपाधि मिली तो मेरे पापा की मेहनत रंग लाई और हमारे परिवार में सभी लोग खुश हैं.”
दुनिया देखने का बेहतर नजरिया मिला
देवश्री ने बताया कि एक नेत्रहीन होने के नाते उन्हें दुनिया को देखने का दूसरा और बेहतर नजरिया मिला है. जब आम लोग दुनिया भी चकाचौंध में खो जाते हैं तो वह उन चीजों पर फोकस करती हैं जो कि यथार्थ और असली हैं. यही कारण है कि उन्होंने पीएचडी करने का मन बनाया और उनके पिता ने भी उनकी इस इच्छा को न सिर्फ सपोर्ट किया बल्कि इस काम में वह पूरी शिद्दत से लगे रहे. आम दिनों की तरह वह रोजगार करते और तंग हाल जीवन के बावजूद उनके पिता ने कभी हार नहीं मानी और वे लगातार देवश्री को प्रेरित करते रहते कि वह अपनी पढ़ाई करें और समय पर अपना पीएचडी पूरा कर लें.
रात भर जागकर नेत्रहीन बेटी की थीसिस पिता ने लिखी
देवश्री ने आगे बताया कि किस तरह से उनके पिता गुढ़ियारी जैसी सघन बस्ती में रहते हैं. थका देने वाले व्यवसाय करने के बाद जब उनके पिता घर पहुंचते तो बेहद कम रोशनी में रात को जाग कर वे अपनी बेटी के लिए पीएचडी की थीसिस लिखते थे. कई बार लगातार 12 घंटे लिखने का काम चलता रहता. देवश्री बोलती जाती और उनके पिता उसे कागज पर लिखा करते थे. देवश्री के पिता ने महज 10वीं तक की पढ़ाई की है लेकिन पीएचडी की थीसिस को उन्होंने पूरा किया. यह सब एक पिता तभी कर पाता है जब वह अपनी बच्ची के लिए एक बेहतर और सुनहरा भविष्य देख पाता है.
(महेंद्र नामदेव की रिपोर्ट)