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Nobel Prize for Literature: नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय थे रवींद्रनाथ टैगोर, इस कविता-संग्रह ने दिलाया था सम्मान

Nobel Prize for Literature: रवीन्द्रनाथ टैगोर को उनके काव्य संग्रह गीतांजलि के लिए 1913 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

Rabindranath Tagore won Nobel for Literature Rabindranath Tagore won Nobel for Literature

भारत के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई, 1861 को कोलकाता में हुआ था. वह एक कवि, लेखक, नाटककार, संगीतकार, दार्शनिक, समाज सुधारक और चित्रकार थे. 1913 में, टैगोर साहित्य में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले नॉम-यूरोपियन और पहले भारतीय थे. अपने सबसे प्रसिद्ध कविता संग्रह गीतांजलि के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार दिया गया था. 

आपको बता दें कि थियोडोर रूजवेल्ट के बाद नोबेल पुरस्कार पाने वाले वह दूसरे गैर-यूरोपीयन थे. टैगोर को उनकी बेहद संवेदनशील, ताजा और सुंदर कविता के कारण नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 

बहुत कम उम्र से लिखना शुरू किया
रवींद्रनाथ टैगोर बंगाल के अच्छे घराने से आते थे. वह धार्मिक सुधारक देवेन्द्रनाथ टैगोर के बेटे थे. उन्होंने बहुत कम उम्र से कविताएं लिखना शुरू कर दिया था. 1870 के दशक के अंत में रवींद्रनाथ इंग्लैंड में पढ़ाई अधूरी छोडकर भारत लौट आए थे.  उन्होंने 1880 के दशक में कविता की कई किताबें प्रकाशित कीं और मानसी (1890) संग्रह को पूरा किया. यह संग्रह उनकी प्रतिभा के परिपक्व होने का प्रतीक है. इसमें उनकी कुछ सबसे प्रसिद्ध कविताएं शामिल हैं, जिनमें बंगाली के लिए नए पद्य रूपों के साथ-साथ कुछ सामाजिक और राजनीतिक व्यंग्य भी शामिल हैं. 

1891 में टैगोर 10 वर्षों के लिए शिलैदाह और शहजादपुर में अपने परिवार की संपत्ति का प्रबंधन करने के लिए पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश में) गए. वहां वह अक्सर पद्मा नदी (गंगा नदी की मुख्य धारा) पर एक हाउसबोट में रहते थे. गांव के लोगों के साथ निकट संपर्क में रहते थे और उनके प्रति उनकी सहानुभूति उनके बाद के लेखन का मुख्य विषय बन गई. उनकी ज्यादातर बेहतरीन लघु कथाएं, जो "विनम्र जीवन और उनके छोटे-छोटे दुखों" की बात करती हैं. उनमें कोमल व्यंग्य के साथ मार्मिकता है. उन्होंने कई कविता संग्रह प्रकाशित किए, विशेष रूप से सोनार तारि (1894; द गोल्डन बोट), और नाटक, विशेष रूप से चित्रांगदा (1892; चित्रा). टैगोर के 2,000 से ज्यादा गीत भी हैं, जिन्होंने बंगाली समाज के सभी वर्गों के बीच काफी लोकप्रियता हासिल की है. 

गीतांजलि ने दिलाया नोबेल 
1901 में टैगोर ने ग्रामीण पश्चिम बंगाल में शांतिनिकेतन ("शांति का निवास") में एक प्रायोगिक स्कूल की स्थापना की, जहां उन्होंने भारतीय और पश्चिमी परंपराओं का मिश्रण करने की कोशिश की. वह इस स्कूल में ही स्थायी रूप से बस गए, जो 1921 में विश्वभारती विश्वविद्यालय बन गया. 1902 और 1907 के बीच उनकी पत्नी और दो बच्चों की मृत्यु का दुःख उनकी बाद की कविताओं में दिखता है, जिन्हें पश्चिम देशों में गीतांजलि (1912) नाम से परिचित कराया गया. उनके इस कविता संग्रह की डब्ल्यू.बी. येट्स और आंद्रे गिडे ने सराहना की थी. इसी कविता संग्रह ने उन्हें 1913 में नोबेल पुरस्कार दिलाया. 

टैगोर को 1915 में नाइटहुड की उपाधि से सम्मानित किया गया था. लेकिन उन्होंने 1919 में अमृतसर (जलियांवाला बाग) नरसंहार के विरोध में इसे अस्वीकार कर दिया. 1912 से टैगोर ने लंबे समय तक भारत से बाहर बिताया, यूरोप, अमेरिका और पूर्वी एशिया में अपने काम से लेक्चर दिए और भारतीय स्वतंत्रता के लिए एक शानदार प्रवक्ता बन गए. बंगाली में टैगोर के उपन्यास उनकी कविताओं और लघु कथाओं की तुलना में कम प्रसिद्ध हैं. 1920 के दशक के अंत में, जब वह 60 वर्ष के थे, टैगोर ने पेंटिंग करना शुरू कर दिया और ऐसे काम किए जिससे उन्हें भारत के अग्रणी समकालीन कलाकारों में जगह मिली. 

नोबेल पुरस्कार हुआ चोरी
25 मार्च 2004 को, टैगोर का नोबेल पदक और नोबेल प्रशस्ति पत्र, कवि के कई अन्य निजी सामानों के साथ, विश्व भारती विश्वविद्यालय, शांतिनिकेतन के संग्रहालय की तिजोरी से चोरी हो गया था. इसके बाद, दिसंबर 2004 में, स्वीडिश सरकार ने विश्वभारती विश्वविद्यालय को टैगोर के नोबेल पुरस्कार की दो- एक सोने और दूसरी कांस्य से बनी प्रतिकृतियां प्रस्तुत कीं.

नवंबर 2016 में, चोरी में कथित संलिप्तता के लिए प्रदीप बाउरी नाम के एक बाउल गायक को पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले से गिरफ्तार किया गया था. एक बांग्लादेशी नागरिक, जिसकी पहचान मोहम्मद हुसैन शिपुल के रूप में हुई, साजिश का मास्टरमाइंड था और चोरी में दो यूरोपीय भी शामिल थे. 

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