scorecardresearch

रिटायरमेंट के बाद पूरा किया सपना, घर को बनाया पब्लिक लाइब्रेरी, प्रधानमंत्री मोदी ने की सराहना

अक्सर सलाह दी जाती है कि अपने बच्चों को आप वाटर पार्क, गेमिंग स्टेशन के साथ-साथ बुक स्टोर और लाइब्रेरी भी लेकर जाएं. ताकि उन्हें अच्छी किताबें पढ़ने की आदत लगे. क्या पता किताबें पढ़ने की उनकी आदत आगे चलकर दूसरों के काम आए. जैसा कि तेलांगना में रामन्नापेट ब्लॉक के यल्लंकी गांव के डॉ विट्ठलाचार्य कुरेला ने किया है. 84 वर्षीय विट्ठलाचार्य को किताबें पढ़ने का इतना शौक रहा कि अपनी सभी इकट्ठी की हुई किताबों से उन्होंने अपने घर में ही लाइब्रेरी बना दी है. 

डॉ विट्ठलाचार्य डॉ विट्ठलाचार्य
हाइलाइट्स
  • रिटायर्ड कॉलेज प्रिंसिपल ने घर को बनाया पब्लिक लाइब्रेरी में

  • दो लाख से ज्यादा किताबें हैं इस घर कम लाइब्रेरी में

जब भी किताबों की बात होती है तो गुलज़ार की कविता की पंक्तियां मन में गूंजने लगती हैं. 

“किताबें झांकती हैं बंद अलमारी के शीशों से
बड़ी हसरत से तकती हैं
महीनों अब मुलाक़ातें नहीं होतीं
जो शामें उन की सोहबत में कटा करती थीं, अब अक्सर
गुज़र जाती हैं कम्पयूटर के पर्दों पर
बड़ी बेचैन रहती हैं किताबें..... “

इस बात में कोई झूठ नहीं है कि किताबों की जगह हमारे हाथों में मोबाइल, लैपटॉप आदि ने ले ली है. फिर भी बहुत से लोग हैं जिनका दिन किताबों से शुरू होता है और किताबों पर खत्म. अक्सर सलाह दी जाती है कि अपने बच्चों को आप वाटर पार्क, गेमिंग स्टेशन के साथ-साथ बुक स्टोर और लाइब्रेरी भी लेकर जाएं. ताकि उन्हें अच्छी किताबें पढ़ने की आदत लगे. 

क्या पता किताबें पढ़ने की उनकी आदत आगे चलकर दूसरों के काम आए. जैसा कि तेलांगना में रामन्नापेट ब्लॉक के यल्लंकी गांव के डॉ विट्ठलाचार्य कुरेला ने किया है. 84 वर्षीय विट्ठलाचार्य को किताबें पढ़ने का इतना शौक रहा कि अपनी सभी इकट्ठी की हुई किताबों से उन्होंने अपने घर में ही लाइब्रेरी बना दी है. 

दो लाख से ज्यादा किताबें हैं इस घर कम लाइब्रेरी में: 

बचपन से ही किताबें पढ़ने में तल्लीन रहने वाले विट्ठलाचार्य तेलुगु के प्रोफेसर रहे हैं. उन्होंने खुद भी बहुत सी किताबें लिखी हैं. साथ ही अच्छी किताबें पढ़ते और इकट्ठा करते रहे हैं. बचपन में खुद किताबें खरीदने के पैसे नहीं होते थे तो अपने दोस्तों, और शिक्षकों से किताबें उधार लेकर पढ़ते थे. 

रिटायरमेंट के बाद उन्होंने अपने गांव में ही रहने का फैसला किया. साल 2014 में उन्होंने अपने घर की मरम्मत का काम कराया और घर के ग्राउंड फ्लोर पर एक बड़ा-सा हॉल बनवा दिया. इस हॉल में उन्होंने अपनी सालों से इकट्ठा की गई लगभग 5000 किताबों को रखा, जो अलग-अलग विषयों से संबंधित थी. 

और इस हॉल को लोगों के लिए पब्लिक लाइब्रेरी बना दिया. लाइब्रेरी के लिए उन्होंने अपने दोस्तों और अन्य जानने वालों को भी किताबे दान करने की अपील की और इस तरह से आज उनकी लाइब्रेरी में दो लाख से ज्यादा किताबें हैं. जो उनके गांव के लोगों के साथ-साथ बहुत से स्कूल-कॉलेज के छात्रों के भी काम आ रही हैं. 

‘मन की बात’ में हुआ जिक्र: 

विट्ठलाचार्य के इस प्रेरक काम के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ‘मन की बात’ प्रोग्राम में जिक्र किया. मोदी ने कहा कि अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए आप कभी भी लेट नहीं होते हैं और इससे बड़ी कोई ख़ुशी नहीं है कि आप पढ़ने की आदत को आगे बढ़ा रहे हैं. 

विट्ठलाचार्य का कहना है कि उन्हें शनिवार को बताया गया था कि इस बार मन की बात में मोदी उनके बारे में बात करेंगे. यह उनके लिए बहुत गौरव का पल था क्योंकि उन्होंने कभी इस काम के लिए किसी तरह के सम्मान या अवॉर्ड की ख्वाहिश नहीं की. उनकी इच्छा सिर्फ इस काम को आगे बढ़ाने की रही है. 

इसलिए ही नरेंद्र मोदी ने उनका उदहारण देते हुए कहा कि सपनों को पूरा करने की कोई उम्र नहीं होती है. विट्ठलाचर्य एक रिटायर्ड कॉलेज प्रिंसिपल हैं. इस लाइब्रेरी ने उस्मानिया विश्वविद्यालय, काकतीय विश्वविद्यालय सहित तेलंगाना के विश्वविद्यालयों में कई रिसर्च स्कॉलर्स की मदद की है. 

उनका कहना है कि इस लाइब्रेरी प्राप्त जानकारी के आधार पर आठ शोधार्थियों ने अपनी पीएचडी प्राप्त की है. कुछ स्कॉलर उनके काम पर भी शोध कर रहे हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में पुस्तकालय स्थापित करने की इस पहल ने अन्य लोगों को भी नलगोंडा जिले के आठ अन्य गांवों में इसी तरह के पुस्तकालय स्थापित करने पर विचार करने के लिए प्रेरित किया है.