scorecardresearch

Success Story: आंखों की रोशनी खोने के बाद भी नहीं टूटी हिम्मत, अब असिस्टेंट प्रोफेसर बनेंगे सुनील, किया NET क्वालीफाई

सुनील ने दुर्घटना में अपनी दोनों आंखों की रोशनी खो दी थी. लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी. ऐसे में एक समाज सेवी ने हाथ बढ़ाकर इस युवक की पढ़ाई में पूरी मदद की और उनका हौसला अफजाई किया. 

NET Qualify NET Qualify
हाइलाइट्स
  • हिमांशु ने की मदद 

  • पिता के जाने के बाद टूट गई थी हिम्मत

दोनों आंखों की रोशनी खोने के बाद भी एक युवक ने नेट की परीक्षा क्वालीफाई कर ली. अपने हौसले से NET क्वालीफाई कर सुनील असिस्टेंट प्रोफेसर बनने की ओर बढ़ गए हैं. यूपी के फतेहपुर जिले से एक ऐसा मामला सामने आया है जो समाज को आईना दिखाने का काम कर रहा है. एक परिवार के चार लोगों की मृत्यु के बाद और दुर्घटना में अपनी दोनों आंखों की रोशनी खो चुके युवक ने NET क्वालीफाई कर लिया है. अब वे असिस्टेंट प्रोफेसर बनने की योग्यता प्राप्त कर चुके हैं. 

दुर्घटना में खो दी दोनों आंखें 

सुनील सोनी फतेहपुर जिले के कांशीराम कॉलोनी में रहते हैं. कृष्ण कुमार सोनी के 35 साल के पुत्र सुनील की दुर्घटना में दोनों आंखों चली गई थी. बड़े भाई अनिल कुमार की बीमारी के कारण 2018 में मौत हो गई थी. इसके बाद 13 अक्टूबर 2022 को पिता कृष्ण कुमार सोनी के निधन के 8 दिन बाद भाभी सुधा ने भी दुनिया छोड़ दी. सुनील की शादी 2012 में सरस्वती सोनी से हुई थी, जिसे ब्लड कैंसर था और 31 मार्च 2021 को उसका भी निधन हो गया. लेकिन इन सबके बावजूद सुनील ने हार नहीं मानी. 

हिमांशु ने की मदद 

सुनील की लगन को देखकर समाजसेवी हिमांशु ने मदद का हाथ बढ़ाया. आंखों से दिव्यांग लोगों के लिए पढ़ने की क्या सुविधा होती है, कैसे पढ़ सकते हैं, इसकी जानकारी हिमांशु ने सुनील को दी. इसके साथ ब्रेल लिपि के माध्यम से पढ़ाई कराई और यूजीसी नेट के एग्जाम की तैयारी करने में मदद भी की. इसके बाद दो बार यूजीसी नेट की परीक्षा में सहायक के रूप में अपने भाई और एक व्यक्ति को भेजा लेकिन सफलता नहीं मिली. वहीं तीसरी बार कानपुर में 11 दिसंबर 2023 को हुई यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन की नेट की परीक्षा में पास हो गया और अब सुनील को असिस्टेंट प्रोफेसर बनने की योग्यता का सर्टिफिकेट मिल गया है.

पिता के जाने के बाद टूट गई थी हिम्मत

इसे लेकर सुनील सोनी अपनी कहानी बताते हुए कहते हैं, "मेरे पिता जब खत्म हुए उसके बाद बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा. उस समय मेरे कोई मदद करने वाला नहीं था. मेरे परिवार में सिर्फ मेरी माता जी के सिवा और कोई नहीं बचा था, सबकी मृत्यु हो गई थी. लेकिन हिमांशु भैया ने मेरी हर तरीके से मदद की. उन्होंने मुझे राइटर दिया. मैं अब मेरे ही जैसे लोगों की मदद करना चाहता हूं."

वहीं, समाजसेवी हिमांशु कुमार ने बताया कि सुनील का चयन असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर हुआ है. ये दोनों 4 साल से एक दूसरे के सम्पर्क में हैं. हिमांशु कहते हैं, "इस तरीके के समाज में जो भी प्रतिभावान छात्र हैं, बच्चे हैं, जिनकी आंखें नहीं हैं, हाथ नहीं हैं या किसी रूप से दिव्यांग हैं. ऐसे लोगों को हम समाज के लोगों को साथ लेकर चलना चाहते हैं. जिससे कि वो भी बड़ी-बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में सम्मिलित हो सकें और परीक्षा को पास कर सकें."

(नितेश श्रीवास्तव की रिपोर्ट)