scorecardresearch

EXCLUSIVE: कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित छात्र भी ले सकेंगे फ़िल्म मेकिंग और एडिटिंग से जुड़े कोर्स में दाखिला, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता आशुतोष कुमार की याचिका पर सुनवाई करते हुए FTII को निर्देश दिया कि फ़िल्म मेकिंग और एडिटिंग से जुड़े कोर्स में कलर ब्लाइंडनेस का पीड़ित बताकर आप छात्र को दाखिला लेने से नहीं रोक सकते. GNT डिजिटल से एक्सक्लुसिव बात करते हुए आशुतोष ने इस फैसले पर खुशी जताई और कहा कि यह जीत सिर्फ एक छात्र की नहीं बल्कि मुझ जैसे हजारों छात्रों की है.

सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट
हाइलाइट्स
  • FTII के फ़िल्म एडिटिंग कोर्स में हुआ था चयन

  • कलर ब्लाइंडनेस का पीड़ित बताकर एडमिशन कर दिया गया था रद्द

जब राहें आसान न हो फिर भी आपके अंदर कुछ पाने का जज्बा हो, अपने के बाद वाली पीढ़ियों के लिए कुछ अच्छा छोड़ जाने की चाह हो तो एक लंबी लड़ाई लड़नी होती है. ठीक ऐसी ही लड़ाई लड़ी है पटना के एक छात्र आशुतोष कुमार ने. 
आशुतोष के 6 साल की लंबी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फ़िल्म मेकिंग और एडिटिंग से जुड़े कोर्स में दाखिले के लिए कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित छात्रों के पक्ष में महत्वपूर्ण आदेश दिया है. यह लड़ाई भले एक छात्र ने लड़ी हो लेकिन जीत वैसे हजारों लाखों छात्रों की है, जिसको कलर ब्लाइंडनेस का पीड़ित बताकर दाखिला लेने से रोक दिया गया. आपको बताते चलें कि हर सौ में से 8 पुरुष और 1 महिला कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित हैं. दरअसल में, सुप्रीम कोर्ट ने कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित छात्रों के पक्ष में फ़िल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट (FTII) को निर्देश देते हुए कहा कि संस्थान में प्रवेश पाने की कोशिश कर रहे किसी भी छात्र को रोका नहीं जाना चाहिए. FTII को निर्देशित करते हुए माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि फ़िल्म मेकिंग और एडिटिंग, कला का एक रूप है. किसी भी छात्र को कलर ब्लाइंड होने का रीजन देकर दाखिला लेने से नहीं रोक सकते और भेदभाव नहीं दिखा सकते. संस्थान, अपने सभी कोर्स कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित लोगों के लिए खोले और एडमिशन लेने की अनुमति दे. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने FTII से यह भी कहा है कि याचिकाकर्ता को दाखिला देने में अगर आपत्ति है तो संस्थान हलफनामा दाखिल कर सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश पटना के छात्र आशुतोष कुमार के याचिका पर दी है. 2015 में आशुतोष का चयन FTII के कोर्स फ़िल्म एडिटिंग के लिए हुआ था, लेकिन बाद में मेडिकल जांच के दौरान कलर ब्लाइंड पाए जाने पर संस्थान ने आशुतोष का एडमिशन रद्द कर दिया था. जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा कि अगर किसी छात्र को कलर ब्लाइंड होने की वजह से समस्या आती है तो वह दूसरे की मदद ले सकता है, ऐसे छात्रों को अयोग्य नहीं कहा जा सकता. यह अंधापन नहीं है, इसमें कुछ रंगों के बीच अंतर करना मुश्किल हो जाता है. 

GNT डिजिटल ने याचिकाकर्ता आशुतोष से की बातचीत

GNT डिजिटल से इस पूरे मुद्दे पर एक्सक्लुसिव बातचीत करते हुए आशुतोष ने बताया कि उनका चयन 2016 में FTII में फ़िल्म एडिटिंग कोर्स के लिए हुए था. उनको संस्थान ने दाखिले के लिए बुलाया और कोर्स फ़ी जमा करने को कहा. कोर्स फ़ी जमा करने के बाद क्लास शुरू हो गई थी. वह कहते हैं कि उनका FTII में दाखिला मिलना किसी सपने को पाने जैसा था. उसी दौरान कैंपस में हुए एक मेडिकल जांच में उन्हें कलर ब्लाइंड बता कर अयोग्य ठहरा दिया गया. यह उनके लिए शॉकिंग था. FTII के नए नियम के अनुसार 12 कोर्स में से 6 कोर्स में कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित छात्र को एडमिशन नहीं दिया जा रहा था और आशुतोष का चयन जिस फ़िल्म एडिटिंग कोर्स के लिए हुआ था यह कोर्स उन 6 में से एक था. आशुतोष GNT से बात करते हुए आगे बताते हैं कि FTII में उनके दो सीनियर जिनका बैच 2013-2016 था, वे भी कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित थे लेकिन उन्हें कोई दिक्कत नहीं हुई और उन्होंने अपना कोर्स सफलतापूर्वक पूरा किया. लेकिन जब उनके दाखिले की बारी आई तो उन्हें नए नियम का हवाला देते हुए बताया गया कि वह आयोग्य हैं. वह आगे बताते हैं कि यह लड़ाई बहुत कठिन थी, कैंपस से निकलवाने के लिए संस्थान ने गार्ड बुला लिया था और मुझे रात के 10 बजे कैंपस से निकाल दिया गया.

 

आशुतोष कुमार

बॉम्बे हाईकोर्ट में डाली याचिका

एडमिशन रद्द किए जाने के बाद उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. आशुतोष कहते हैं कि वह हाईकोर्ट की लड़ाई हार गए. फरवरी 2017 में हाईकोर्ट ने फैसले में कहा था कि अगर एक्सपर्ट कमिटी ने कोई रूल बनाई है तो हम उसे चैलेंज नहीं कर सकते. इसके बाद अपीलकर्ता आशुतोष ने एक्सपर्ट कमिटी पर आरटीआई डाली. आरटीआई से यह बात पता चली कि कमिटी में कोई आंखों का डॉक्टर नहीं था, न ही कोई नए जमाने का फिल्ममेकर था, न ही कोई रेफरेंस था जिसका उदाहरण देकर कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित छात्रों का एडमिशन रद्द कर दिया जाए. आरटीआई के जरिए उन्हें मालूम हुआ कि संस्थान के ही चार अधिकारी और एक डॉक्टर ने मिलकर रूल बना दिया था. 

हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में किया चैलेंज

आशुतोष बताते हैं कि अक्टूबर 2017 में हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया. सुप्रीम कोर्ट में चार साल की लंबी सुनवाई के बाद दिसम्बर 2021 में 7 लोगों की एक कमिटी बनाई गई. जिसमें फ़िल्म डायरेक्टर, फ़िल्म एडिटर, आंखों का डॉक्टर, कोर्स डायरेक्टर, कलरिस्ट, स्क्रिप्ट सुपरवाइजर और एक लॉयर शामिल थे. कमिटी ने 11 बैठकों के बाद कहा कि फ़िल्म मेकिंग से जुड़े किसी भी फील्ड में कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित लोगों को नहीं रोका जाना चाहिए. आशुतोष आगे बताते हैं कि फिल्ममेकर राजू हीरानी ने भी उनका पक्ष लेते हुए कहा था कि कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित लोग भी फ़िल्म एडिटिंग कर सकते हैं और राजू हीरानी का कहा हुआ लिखित में कोर्ट में जमा है. आशुतोष GNT डिजिटल से बात करते हुए खुश मालूम होते हैं और कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से एक आशा की किरण जगी है, लेकिन यह लड़ाई अब भी खत्म नहीं हुई है. उन्हें इंतजार है कि कॉलेज कब उन्हें पढ़ने के लिए बुलाए. आशुतोष अपनी बात खत्म करते हुए कहते हैं कि यह लड़ाई ह्यूमैन राइट्स लॉ नेटवर्क से जुड़ी अदिति सक्सेना और सीनियर लॉयर कॉलिन गोन्साल्विस के बिना संभव नहीं था.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के क्या हैं मायने

सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश भले FTII से जुड़े मामले पर दिया है लेकिन यह FTII जैसे अन्य संस्थान जो समान कोर्स कराते हैं, सब पर लागू होगा.