देश में घरेलू आर्थिक कमज़ोरी के चलते अक्सर बच्चे पढ़ाई को अधूरी छोड़ देते है. पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चों में ज़्यादातर लड़कियां होती हैं. जो स्कूल छोड़ कर घर के काम में माता-पिता का हाथ बटांती हैं. ऐसी बच्चियों को पढ़ाने का जिम्मा उठाया है गुजरात में सूरत के एक शिक्षक ने.
यह शिक्षक इन बच्चियों को उनके घर जाकर पढ़ाते हैं, परीक्षा की तैयारी करवाते हैं और लड़कियों को उनके मुकाम तक पहुंचाने में मदद करते हैं. इन शिक्षक का नाम है नरेश कुमार मगनलाल मेहता. नरेश कुमार सूरत महानगर पालिका द्वारा संचालित 114 संत डोंगरे जी महाराज नामक प्राथमिक स्कूल में मुख्य शिक्षक के तौर पर कार्यरत है.
512 बेटियों का जीवन संवारा
नरेश कुमार साल 2015 से बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को सार्थक बनाने में जुटे हैं. इस अभियान के तहत उन्होंने अपने परिवार की आर्थिक कमज़ोरी के चलते पढ़ाई छोड़ चुकी 512 बेटियों को उनके घर-घर जाकर पढ़ाया है बल्कि उन्हें 10वीं और 12वीं में बोर्ड की परीक्षा दिलवाकर पास भी करवाया है.
नरेश कुमार मेहता पिछले 6 सालों से यह काम कर रहे हैं. सुबह पहले वह अपनी सरकारी प्राथमिक स्कूल में बच्चों को पढ़ाने जाते हैं और फिर दोपहर के बाद इन बच्चियों को पढ़ाने निकल पड़ते हैं. नरेश भाई मेहता अपने समय के हिसाब से नहीं बल्कि इन बेटियों के समय के हिसाब से उन्हें पढ़ाते हैं. वह बेटियों को ऑनलाइन और ऑफलाइन शिक्षा देते हैं. आज कई बेटियां सरकारी नौकरी भी कर रही हैं.
भेदभाव के खिलाफ लड़ाई
नरेश भाई मेहता का कहना है कि हमारे समाज में आज भी बेटी और बेटे में भेदभाव होता है. घर में आर्थिक स्थिति ठीक न होने पर परिजन बेटियों की शिक्षा बंद करवा देते हैं. ऐसे में लकड़ियों की शिक्षा बहुत ज़रूरी है क्योंकि वे शिक्षित होंगी तो समाज शिक्षित होगा.
नरेश भाई मेहता बिना फीस लिए इन बच्चियों को पढ़ाते है और उन्हें पाठ्य-पुस्तक दिलाते हैं. परीक्षा के समय स्कूल तक लाने ले जाने की व्यवस्था भी वह खुद करते हैं. अपने इस नेक कार्य के चलते कई बार स्थानीय प्रशासन एवं राज्य सरकार ने उन्हें सम्मानित भी किया है.
(संजय सिंह राठौर की रिपोर्ट)