गुजरात में एक शिक्षक की नेक पहल सामने आई है. सूरत में नगर निगम द्वारा संचालित डॉ. अब्दुल कलाम स्कूल में पढ़ाने वाले हसमुख पटेल कुछ महीने पहले अपने होनहार छात्रों के घर गए ताकि उनके माता-पिता से मिल सकें. लेकिन उनके घर जाकर उन्होंने जो देखा इससे वह परेशान हो गए. दरअसल, ये तीनों छात्र भाई-बहन हैं और बहुत गरीब परिवार से हैं. ये बच्चे अपने माता-पिता के साथ कच्चे घर में रहते हैं और उनके पास बिजली कनेक्शन तक नहीं है. ऐसे में, बच्चे अपने घर के पास एक स्ट्रीट लाइट के नीचे पढ़ते थे.
पटेल बच्चों के घर पहुंचे तो पता चला कि का छात्रों के माता-पिता खेतिहर मजदूर हैं. द इंडियन एक्सप्रेस के मुतबाकि, छात्रों के पिता विजय देवीपुत्र ने पटेल को बताया कि वह करीब सात साल पहले अपने तीन बच्चों और पत्नी जसुबेन के साथ सुरेंद्रनगर जिले से सूरत आए थे. इसके बाद उन्होंने और उनकी पत्नी ने पर्वत गांव के एक कृषि क्षेत्र में खेतिहर मजदूर के रूप में काम करना शुरू कर दिया.
स्ट्रीटलाइट के नीचे पढ़ते थे बच्चे
उन्होंने यह भी खुलासा किया कि रात में तीनों बच्चे ज्यादातक स्ट्रीटलाइट के नीचे पढ़ने जाते हैं. विजय के बेटे और बेटी, विक्रम और पूनम, कक्षा 7 की अंतिम परीक्षा देने वाले थे, जब पटेल उनके घर आए. उनकी बहन सीमा, जो उसी स्कूल में पढ़ती है, कक्षा 6 की अंतिम परीक्षा की तैयारी कर रही थी. गणित के शिक्षक पटेल ने उनकी मदद करने का संकल्प लिया. अगले दिन, उन्होंने अवकाश के दौरान स्कूल के प्रधानाचार्य दीपक त्रिवेदी और 18 सहयोगियों के साथ अपने विचार साझा किए.
द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए, हसमुख पटेल ने बताया कि सभी सहयोगी मदद के लिए तैयार थे. उन्होंने विजय के कच्चे घर में सोलर पैनल लगाने का फैसला किया, ताकि बच्चों को स्ट्रीट लाइट के नीचे जाकर पढ़ाई न करनी पड़े. सोलर पैनल लगाने का विचार एक शिक्षक से आया. इस काम के लिए उन्होंने आशीष धनानी से बात की, जो सोलर पैनल का व्यवसाय चलाते हैं. आशीष धनानी ने 110 वाट के सौर पैनल की स्थापना और दो बल्बों की वायरिंग और एक मोबाइल चार्जिंग पॉइंट लगाने के लिए 15,000 रुपये का अनुमान लगाया.
बच्चों ने किया नाम रोशन
जब धनानी को पता चला कि यह सब एक नेक काम के लिए किया जा रहा है, तो उन्होंने भी 7,000 रुपये का योगदान देने का फैसला किया और खर्च को घटाकर 8,000 रुपये कर दिया. मई के अंतिम सप्ताह में घर में सोलर पैनल लगाया दिया गया था. इस बीच, भाई-बहन कड़ी मेहनत करते रहे. अंतिम परीक्षा परिणाम अप्रैल के मध्य में म्यूनिसिपल स्कूल बोर्ड द्वारा घोषित किए गए थे. विक्रम और पूनम अपनी कक्षाओं में टॉप पांच छात्रों में से थे, जबकि सीमा ने भी कक्षा 6 को अच्छे अंकों के साथ पास किया था और टॉपर्स में से एक थी.