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Teachers Day 2023: डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन पर ही क्यों मनाते हैं टीचर्स डे, क्या है इसका इतिहास, देश के महान शिक्षकों के बारे में जानिए

हमारे देश के दूसरे राष्ट्रपति और पहले उपराष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को हुआ था. वे स्वयं ही एक महान शिक्षक थे. उनके जन्मदिन पर ही शिक्षक दिवस मनाया जाता है. यह दिन हमें हमारे जीवन में शिक्षकों के योगदान और महत्व को याद दिलाता है.

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन पर मनाया जाता है शिक्षक दिवस डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन पर मनाया जाता है शिक्षक दिवस
हाइलाइट्स
  • डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को हुआ था

  • हमारे देश में गुरु को भगवान से भी ऊपर का दिया गया है दर्जा

हमारे देश में गुरु को भगवान से भी ऊपर का दर्जा दिया गया है. माता-पिता के बाद एक शिक्षक ही होता है जो हमारी भलाई के लिए हमें डांटता है, बावजूद कभी अपने छात्रों के लिए बुरा नहीं चाहता है. बिना गुरु के ज्ञान को पाना असंभव है. शिक्षक के आशीर्वाद से ही हम अज्ञानता के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर बढ़ते हैं. ऐसे में शिक्षकों को सम्मान देते हुए भारत में 5 सितंबर को हर साल शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह दिन शिक्षकों के योगदान और महत्व को याद कराता है.

5 सितंबर को ही क्यों मनाते हैं टीचर्स डे
5 सितंबर 1888 को हमारे देश के दूसरे राष्ट्रपति और पहले उपराष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था. वे स्वयं ही एक महान शिक्षक थे. डॉ. राधाकृष्णन को बचपन से ही पढ़ने-लिखने का बहुत शौक था. ऐसे ही एक दिन उनके जन्मदिवस पर जन्मदिन मनाने की बात कही गई. 

इसपर उन्होंने कहा था, मेरा जन्मदिन मनाने के बजाय यदि इस दिन को 'शिक्षक दिवस' के रूप में मनाया जाए तो यह मेरे लिए गर्व का विषय होगा. जिसके बाद से ही हर 5 सितंबर को शिक्षकों के सम्मान के लिए इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं.

शिक्षक हमारे भविष्य को देते हैं आकार 
शिक्षक दिवस हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह हमें शिक्षकों के योगदान और महत्व को याद दिलाता है. शिक्षक हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. वे हमें ज्ञान, कौशल और मूल्य देते हैं जो हमें सफलता की ओर ले जाते हैं. वे हमारे मार्गदर्शक, प्रेरक और मित्र भी होते हैं. शिक्षक हमारे भविष्य को आकार देते हैं. 

वे हमारे बच्चों और युवाओं को शिक्षित और तैयार करते हैं ताकि वे अपने सपनों को प्राप्त कर सकें और अपने समाज में सकारात्मक योगदान दे सकें. शिक्षक दिवस के अवसर पर छात्र और शिक्षक एक-दूसरे को उपहार और सम्मान देते हैं. स्कूलों और कॉलेजों में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. इस दिन शिक्षकों के योगदान को याद किया जाता है और उनके लिए आभार व्यक्त किया जाता है.

शिक्षक दिवस कैसे मनाएं 
अपने शिक्षकों को एक पत्र लिखें. इसमें आप उन्हें बता सकते हैं कि आप उनके बारे में क्या सोचते हैं और उनके काम की आप कितनी सराहना करते हैं. इस दिन आप शिक्षकों को उपहार भी दे सकते हैं. शिक्षकों के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करें. अपने शिक्षकों को एक सार्वजनिक पोस्ट या सोशल मीडिया पोस्ट लिखें. इसमें आप उनके साथ अपने विचारों और भावनाओं को साझा कर सकते हैं. अपने शिक्षक के लिए एक कविता, गीत, या कहानी लिखें. अपने शिक्षकों के लिए एक पेंटिंग, स्केच, या मूर्ति बनाएं.

अन्य देशों में किस दिन मनाया जाता है शिक्षक दिवस 
1. जापान: 3 मार्च
2. फ्रांस: 20 मार्च
3. यूएस: 10 मई 
4. कोरिया: 15 मई
5. चीन: 10 सितंबर
6. यूके: 21 सितंबर 
7. स्पेन: 27 नवंबर

इस दिन मनाया जाता है विश्व शिक्षक दिवस 
शिक्षक दिवस की अवधारणा सबसे पहले संयुक्त राज्य अमेरिका में 1905 में शुरू की गई थी. यूरोपीय संघ में शिक्षक दिवस हर साल 5 अक्टूबर को मनाया जाता है. विश्व शिक्षक दिवस हर साल 5 अक्टूबर को मनाया जाता है. यह दिन संयुक्त राष्ट्र की ओर से स्थापित किया गया था और यह दुनिया भर के शिक्षकों के काम को पहचानता है.

भारत के महान शिक्षक 
चाणक्य:  भारत के शिक्षकों की बात करें तो सबसे पहले भारत के निर्माण की नींव रखने वाले महान शिक्षक चाणक्य को याद किया जाता है. वह एक प्राचीन भारतीय शिक्षक और एक दार्शनिक थे. चाणक्य को चिकित्सा और ज्योतिष का ज्ञान रखने के लिए जाना जाता था. वह उत्तर भारत के मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त के सलाहकार थे. चाणक्य तंत्र उनकी बुद्धि और ज्ञान के बारे में बहुत कुछ कहता है.

स्वामी विवेकानंद: स्वामी विवेकानंद को भारत में गुरुकुल प्रणाली की संस्कृति को आगे बढ़ाने और संरक्षित करने के लिए जाना जाता है, जिसमें शिक्षक और छात्र एक साथ रहते हैं. अपनी अद्वितीय बुद्धि के लिए जाने जाने वाले विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की. यह एक मठ है, जिसमें भिक्षु और उनके अनुयायी व्यावहारिक वेदांत के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए हाथ मिलाते हैं. 

विनोबा भावे: विनोबा भावे 1900 के दशक में मानवाधिकार और अहिंसा के पैरोकार थे. उन्हें भारत का राष्ट्रीय शिक्षक माना जाता है. उन्होंने महिलाओं के लिए आत्मनिर्भर और अहिंसक बनने के लिए एक छोटे से समुदाय के रूप में सेवा करने वाले एक आश्रम ब्रह्म विद्या मंदिर का निर्माण किया. उन्हें 'आचार्य' (शिक्षक) की उपाधि से सम्मानित किया गया और मानवीय कार्यों में उनके योगदान के लिए 1958 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 

मुंशी प्रेमचंद: मुंशी प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय था. प्रेमचंद को बचपन से ही पढ़ने-लिखने का बहुत शौक था. उर्दू में खासा रूची रखते थे. मुंशी प्रेमचंद एक प्रमुख हिंदी लेखक के रूप में आधुनिक हिंदुस्तानी साहित्य में उनके योगदान के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने 300 से अधिक लघु कथाएं, 10 से अधिक उपन्यास और कई नाटक लिखे हैं. उत्तर प्रदेश के चुनार में एक सम्मानित शिक्षक, प्रेमचंद स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं से प्रभावित थे.

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम: देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में हुआ था. डॉ. कलाम जानते थे कि एक टीचर समाज और देश को क्या दे सकता है. यही वजह थी कि वह आखिरी सांस तक अपनी इस भूमिका को निभाते रहे. देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम एक महान वैज्ञानिक, एक सच्चे नेता और एक अद्भुत शिक्षक थे.

पूर्व राष्ट्रपति कलाम ने हमेशा कहा कि वह एक शिक्षक के रूप में याद किया जाना पसंद करेंगे. डॉ. कलाम को 1990 में पद्म विभूषण और 1997 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया. जब हम देश में शिक्षकों के बारे में बात करते हैं, तो हम डॉ. कलाम के महान योगदान को दरकिनार नहीं कर सकते. उन्होंने पढ़ाने के लिए मिलने वाले हर अवसर का उपयोग किया.

सावित्रीबाई फुले:  सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के नायगांव में हुआ था. उन्होंने जाति और लिंग पर आधारित भेदभाव के खिलाफ भी लंबी लड़ाई लड़ी. साथ ही उन्होंने अपने पति समाज सुधारक ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर पुणे में पहला कन्या विद्यालय भी खोला था. सावित्रीबाई फुले देश की पहली महिला शिक्षिका थीं. वह महिलाओं की शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी थीं और सभी लोगों को शिक्षा प्रदान करने में सबसे आगे थीं. उन्होंने भारत में शिक्षा का चेहरा बदलने और महत्वपूर्ण चीजों पर प्रकाश डालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 

आनंद कुमार: आनंद कुमार का जन्म 1 जनवरी 1973 को  बिहार की राजधानी पटना में हुआ था. आनंद बचपन से ही गणित में बहुत तेज थे. उनकी प्रतिभा के कारण उन्हें कैंब्रिज और शेफ़ील्ड विश्वविद्यालयों में पढ़ने का मौका मिला, लेकिन अपने पिता की मृत्यु और आर्थिक तंगी के कारण वह आगे की पढ़ाई के लिए बाहर नहीं जा सके. अपनी स्नातक की पढ़ाई के दौरान आनंद ने नंबर थ्योरी पर पेपर जमा किए और ये पेपर बाद में मैथमेटिकल स्पेक्ट्रम और मैथमेटिकल गजट नाम के अखबार में भी प्रकाशित हुए.

साल 2000 में एक छात्र आनंद के पास आया. उसने कहा कि वह फीस नहीं दे सकता है लेकिन IIT-JEE परीक्षा की तैयारी करना चाहता है. और उस दिन आनंद ने ऐसे छात्रों को सपोर्ट करने का फैसला किया जो बड़े कोचिंग संस्थानों से आईआईटी-जेईई परीक्षा के लिए तैयारी नहीं कर सकते थे. आनंद कुमार 2002 में सुपर 30 नाम से एक कार्यक्रम शुरू करने की योजना बनाई. सुपर 30 में वे गरीब परिवारों के सर्वश्रेष्ठ और उत्कृष्ट दिमाग वाले टॉप 30 छात्रों का चयन करते थे जो तैयारी के लिए कोचिंग की फीस नहीं दे सकते थे और उन्हें एक साल के लिए स्टडी मटेरियल के साथ मुफ्त भोजन और आवास देते थे. उनके सैकड़ों छात्रों ने अपने पहले प्रयास में ही परीक्षा को क्लियर करके इतिहास रचा है.