हर किसी के लिए अपनी पहली सैलरी बहुत खास होती है. पहली सैलरी से लोग अक्सर अपने घर-परिवार के लिए गिफ्ट्स खरीदते हैं या फिर कोई धर्म से जुड़ा काम करते हैं. लेकिन आज हम आपको बता रहे हैं स्नेहा शर्मा के बारे में जिन्होंने अपनी पहली सैलरी को ऐसे काम के लिए इस्तेमाल किया है कि हर तरफ वाह-वाही हो रही है.
बिहार में एक सरकारी स्कूल शिक्षक, स्नेहा शर्मा ने अपनी पहली सैलरी स्लम बस्ती में रहने वाले बच्चों की शिक्षा के लिए खर्च की है. स्नेगा ने बेगुसराय झुग्गी में रहने वाले बच्चों के लिए स्कूल बैग, पानी की बोतलें और दूसरी जरूरी स्टेशनरी चीजें खरदीने के लिए अपनी सैलरी खर्च करके इसके महत्व को बढ़ा दिया है.
गरीब बच्चों के लिए शुरू की 'बच्चों की पाठशाला'
स्नेहा शर्मा, हाल ही में बेगुसराय जिले के नावकोठी ब्लॉक में एक सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल, राधा देवी कन्या मध्य विद्यालय में टीचिंग स्टाफ में शामिल हुई हैं. अपनी पहली सैलरी मिलने के बाद स्नेहा ने झुग्गी में 'बच्चों की पाठशाला' के 120 बच्चों को बैग, पानी की बोतलें और स्टडी मैटेरियल खरीदकर बांटा. सरकारी स्कूल में नौकरी से पहले तक स्नेहा लोहियानगर रेलवे ओवरब्रिज के पास एक झुग्गी बस्ती के बच्चों को पढ़ा रही थी.
'बच्चो की पाठशाला' नियमित स्कूल समय के बाद, प्रतिदिन शाम 5 बजे से 6.30 बजे तक झुग्गी-झोपड़ी परिसर में संचालित होती है, जबकि सुबह में ताइक्वांडो ट्रेनिंग होती है. स्नेहा ने ही यहां के लोकल युवाओं रौशन कुमार और कुंदन कुमार के साथ मिलकर 5 मई, 2019 को झुग्गी बस्ती में 'बच्चो की पाठशाला' की स्थापना की थी. उन्हें शुरुआत में शिक्षा में कम रुचि दिखाने वाले माता-पिता को शामिल करने की चुनौती का सामना करना पड़ा, लेकिन टीम ने धीरे-धीरे विश्वास हासिल किया.
सुबह-शाम पढ़ाती हैं बच्चों को
स्नेहा और उनकी टीम ने बच्चों को प्रशिक्षित करने के लिए हर सुबह और शाम 90 मिनट समर्पित किए. अब 'बच्चों की पाठशाला' के पूर्व छात्र, जिन्होंने 10वीं कक्षा सफलतापूर्वक पूरी कर ली है, छोटे बच्चों को पढ़ाने, उन्हें सरकारी स्कूलों में नामांकन के लिए तैयार करने में योगदान देते हैं. माया कौशल्या फाउंडेशन की स्थापना से बच्चों की और मदद हो रही है. इससे जुड़े विक्की भाटिया और मृत्युंजय कुमार ने कहा कि 'बच्चों की पाठशाला' के कई बच्चे राष्ट्रीय स्तर की ताइक्वांडो चैंपियनशिप में अच्छा प्रदर्शन कर चुके हैं. उन्होंने बताया कि ताइक्वोंडो कक्षाएं नियमित रूप से सुबह आयोजित की जाती हैं.
जिला अधिकारियों ने 'बच्चों की पाठशाला' के दौरे के दौरान उनकी पहल की सराहना की. सरकारी एजेंसियों से वित्तीय सहायता की कमी के बावजूद, यह पहल व्यक्तिगत संसाधनों और स्थानीय लोगों के दान के माध्यम से कायम है. स्नेहा के पिता, राजेश कुमार ने अपनी बेटी की उदारता और अलग दृष्टिकोण पर बहुत गर्व है.