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Exclusive: भारी बारिश के कारण पहाड़ों में बंद हुए स्कूल तो इस लाइब्रेरियन ने शुरू कर दी घोड़ा लाइब्रेरी ताकि सीखते रहें बच्चे

Ghoda Library: पहाड़ों में बारिश के कारण जनजीवन मानो रुक गया है. लेकिन इस स्थिति में बच्चों का बौद्धिक विकास न रुके इसके लिए एक खास पहल की गई है- घोड़ा लाइब्रेरी.

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हाइलाइट्स
  • बच्चों के बीच फेमस हुई यह लाइब्रेरी 

  • पहल में साथ दे रहे हैं लोग 

भारत के पहाड़ी राज्यों में भारी बारिश के कारण आम लोगों को जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है. खासकर कि बच्चों की शिक्षा का बहुत ज्यादा नुकसान हो रहा है. ऐसे में, उत्तराखंड के नैनीताल में एक लाइब्रेरियन की पहल उम्मीद की किरण बनकर उभरी है. इस पहल के तहत, नैनीताल जिले के सुदूरवर्ती कोटाबाग विकासखंड के गांव बाघनी, जलना, महलधुरा, आलेख, गौतिया, ढिनवाखरक, बांसी में भयंकर बरसात के बाद हुई छुट्टियों में भी, बच्चों तक बाल साहित्यिक पुस्तकें पहुंचाई जा रही हैं.

उत्तराखंड में विगत 15 दिनों से मूसलाधार बरसात के कारण विद्यालय बंद है, वहीं कई गांव में बादल फटने के कारण जन जीवन तबाह हो चुका है. पर्वतीय गांवों का संपर्क ब्लॉक मुख्यालय से कट चुका है. ऐसी परिस्थितियों में बच्चों की शिक्षा को लेकर भी एक बहुत बड़ा संकट सभी के सामने है. इस परिस्थिति में पहाड़ के बच्चों के घर तक पुस्तकें पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया. इस परिस्थिति में, इन दुर्गम पहाड़ी इलाकों में बच्चों तक पुस्तकें पहुंचाने का केवल एक रास्ता बचा था- घोड़े. 

शुभम बधानी ने की शुरुआत

कैसे हुई घोड़ा लाइब्रेरी की शुरुआत 
घोड़ा लाइब्रेरी की शुरुआत  नैनीताल के शुभम बधानी ने की. शुभम नैनीताल में लाइब्रेरियन के तौर पर काम कर रहे हैं और सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में लाइब्रेरी डेवलपमेंट को लेकर मदद करते हैं. GNT Digital से बात करते हुए उन्होंने बताया, "वर्तमान समय में बच्चे कहीं ना कहीं पुस्तकों से दूर हो रहे हैं. बच्चों का पुस्तकों से, इस प्रकार से दूर होना, उन्हें पुस्तक संस्कृति (बुक कल्चर) से भी दूर कर रहा है. और यह सब बच्चों के बौद्धिक विकास में बहुत बड़ा अवरोध है."

पहाड़ के बच्चे भी निरंतर पुस्तकों से जुड़े, उनके भीतर भी पुस्तक संस्कृत डेवलप हो, उनको भी सीखने और समझने के अवसर निरंतर मिलें, इसके लिए उन्होंने लाइब्रेरी की शुरुआत करने की सोची. फिर सोचा कि एक ऐसी लाइब्रेरी हो, जो पहाड़ की भौगोलिक स्थिति के अनुरूप, हर मौसम में बच्चों तक उपलब्ध हो पाए. इसलिए घोड़ा लाइब्रेरी को पहाड़ के बच्चों के बीच शुरू किया. 

बच्चों के बीच फेमस हुई यह लाइब्रेरी 
आज कई दुर्गम पर्वतीय गांवों में "घोड़ा लाइब्रेरी" के माध्यम से पुस्तकें पहुंचाई जा रही हैं, ताकि पहाड़ के बच्चों का बौद्धिक विकास न रुके. हालांकि, इस मुहिम में कई समस्याएं आईं. शुभम ने बताया कि सबसे बड़ी समस्या/चुनौती पहाड़ का आपदाग्रस्त होना है. दूसरी चुनौती लाइब्रेरी के महत्व को समुदाय को समझाना आसान नहीं और तीसरी चुनौती किताबों का अभाव. 

बच्चों के पास पहुंच रही हैं किताबें

सबसे पहले कम्युनिटी के लोगों को लाइब्रेरी की महत्वता को समझने का प्रयास किया गया. इसके लिए लाइब्रेरी की कुछ रोचक गतिविधियों जैसे रीड अलाउड सेशन इत्यादि का सहारा लिया गया. जब कम्युनिटी को उनकी बात समझ में आने लगी तो कम्युनिटी से ही घोड़े दिए जाने लगे. शुभम ने कहा, "कुछ किताबें मेरे पास थीं. फिर धीरे-धीरे मुहिम कई लोगों को पसंद आई, जिससे कई संस्थाओं ने कुछ और किताबों की मदद करना शुरू कर दिया."

पहल में साथ दे रहे हैं लोग 
शुभम ने इस पहल में उनका साथ देने वाले लोगों का आभार व्यक्त किया और कहा कि कविता रावत, पूजा बिष्ट, सुभाष बधानी, ज्योती अधिकारी, चंद्रप्रकाश सनवाल, शिवम् पांडेय, हेमंत सिंह कपकोटी, दीपक बधानी, शेखर सनवाल, ललित मोहन जोशी, गंगा गोस्वामी, प्रभा नेगी, उमा नेगी, दिपिका गुणवंत, टीकम बधानी, अमित जोशी, योगेश सनवाल समेत दर्जनों युवा इस मुहिम में मदद कर रहे हैं. 

अभी वर्तमान में, घोड़ा लाइब्रेरी को उनकी टीम बगैर किसी फंडिंग के संचालित कर रही है. इसलिए वे किसी अच्छे फंडर या बड़ी संस्था की तलाश में है, जो इस पहल को हमारे बड़े पैमाने पर ले जाने में उनकी मदद करे. उनका दावा है कि अगर इस पहल को पहाड़ के सभी क्षेत्रों में शुरू करें तो पहाड़ के बच्चों का लर्निंग लेवल काफी हद तक बढ़ाया जा सकता है.