आजकल बहुत से शहरों के लोग शोर-शराबा छोड़कर प्रकृति के करीब किसी जगह बसने का सपना देखते हैं. लेकिन सपनों को पूरा करना इतना आसान नहीं है. बहुत ही कम लोग ऐशो-आराम की जिंदगी को छोड़ पाते हैं और ऐसे ही लोगों में शामिल होता है पोर्टिया पुताटुंडा का नाम. पोर्टिया ने मुंबई में अपनी पत्रकारिता की नौकरी छोड़कर दुनिया के सबसे ऊंचे गांव कोमिक में गरीब बच्चों के लिए एक मुफ्त बोर्डिंग स्कूल शुरू किया है.
हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति जिले में 15,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित, यह स्कूल छह कमरों वाली एक पुरानी इमारत में स्थित है और स्पीति तहसील के जरूरतमंद परिवारों के बच्चों को शिक्षा से जोड़ रहा है.
स्वर्गवासी पिता से मिली प्रेरणा
द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए, पोर्टिया ने कहा कि उनके पिता रामकृष्ण पुतातुंडा का इन बच्चों को पढ़ाने के प्रति अटूट समर्पण था और उनसे ही पोर्टिया को स्कूल शुरू करने के प्रेरणा मिली. उन्होंने कहा कि 2016 में, उन्होंने अपने पिता को खो दिया और इसके बाद उन्होंने यात्रा करनी शुरू की ताकि अपने पिता के साथ एक कनेक्शन ढूंढ सकें. उन्होंने कई जगह की यात्रा की लेकिन स्पीति उनके मन में बस गया और उन्होंने यहां की स्थिति सुधारने का फैसला किया.
शुरू किया फ्री बोर्डिंग स्कूल
पत्रकारिता के अपने करियर में आगे बढ़ रहीं पोर्टिया को कोमिक गांव के बारे में पता चला जो जर्जर हालत में था लेकिन बहुत आकर्षक था. 15,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित दुनिया का सबसे ऊंचा गांव उन्हें Planet Spiti - मुफ्त बोर्डिंग स्कूल के लिए सही स्थान लगा.
हालांकि, यह पहली पसंद नहीं थी. उसी जिले का एक अन्य स्थान- काज़ा उनकी पहली चॉइस था क्योंकि यहां बेहतर सड़क कनेक्टिविटी और सुविधाएं थीं. लेकिन यह उनके मामूली बजट से मेल नहीं खाता था.
कोमिक गांव में जीवन बहुत सामान्य है. गांव में साल भर तापमान शून्य से नीचे रहता है.
पोर्टिया ने कहा कि स्कूल में दिन की शुरुआत कड़कड़ाती ठंड से बचने के लिए इनडोर चिमनी यानी तंदूर को जलाने से होती है. फिर बच्चों के लिए दूध उबाला जाता है. नाश्ते के बाद, कुछ हल्के व्यायाम किए जाते हैं. क्लास सुबह 10 बजे के आसपास शुरू होती हैं और दोपहर 2 बजे तक चलती हैं.
बच्चों के ओवरऑल विकास पर फोकस
कक्षाओं के बाद, छात्र कला और बागवानी जैसी गतिविधियों में शामिल होते हैं. खेल का समय शाम तक हो जाता है और तब ठंड भी बढ़ने लगती है. बच्चों को पौष्टिक भोजन देते हैं, उसके बाद कुछ दूध, फल या नाश्ता देते हैं और फिर बच्चे साथ मिलकर होमवर्क करते हैं. इसके बाद बच्चों को थोड़ा टेलीविजन समय मिलता है. फिर डिनर करके वे अच्छे से आराम करते हैं.
पोर्टिया ने कहा कि ऐसी जगह पर स्कूल चलाने की चुनौतियां बहुत हैं. पहले तो धन की कमी लगातार बाधा बनी हुई है, शिक्षकों और सहायक कर्मचारियों की संख्या भी जरूरत से कम है. कोमिक गांव में एक भी पेड़ नहीं है और यहां कई बार इतनी परेशानी होती है कि हर सांस मुश्किल लगती है.
15,500 फीट की ऊंचाई पर जीवित रहना अपने आप में एक चुनौती है - रेगुलर तापमान शून्य से नीचे रहता है और सर्दियों में यह -38 डिग्री तक भी गिर जाता है. सात महीने तक यह जगह बर्फ से ढकी रहती है, पानी जम जाता है और फूड सप्लाई व बिजली आपूर्ति में भी परेशानी होती है. लेकिन यह पोर्टिया का आत्मविश्वास है जो वह इस काम को आगे बढ़ा रही हैं.