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Positive Story: स्लम एरिया के बच्चों को कचरा बीनते देखा तो बनी बदलाव की मशाल, पांच सालों से दे रहीं हैं मुफ्त शिक्षा

राजस्थान में एक साधारण सी स्कूल शिक्षिका, सुनीता रायवार पिछले पांच सालों से कच्ची बस्तियों के बच्चों को शिक्षा से जोड़कर उनकी जिंदगी संवार रही हैं. 

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हाइलाइट्स
  • खुद पढ़ाती हैं इन बच्चों को 

  • बच्चों को सिखा रहीं सही-गलत का फर्क

राजस्थान के सीकर जिले के सबलपुरा में एक सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाली 45 वर्षीय अंग्रेजी शिक्षिका, सुनीता रायवर यहां के स्थानीय पावर हाउस के पास झुग्गी बस्ती के बच्चों को शिक्षा से जोड़ रही हैं. उन्होंने पांच साल पहले इन बच्चों को कचरा इकट्ठा करते हुए देखा था और वह इससे बहुत प्रभावित हुईं. 

सुनीता यह देखकर बहुत निराश हुई कि छोटे-छोटे बच्चे मैला ढोने और भीख मांगने को मजबूर हैं. लेकिन वह जानती थी कि शिक्षा उन्हें बेहतर जीवन जीने का मौका दे सकती है. सुनीता ने स्लम एरिया के परिवारों से अपने बच्चों का स्कूल में दाखिला कराने का आग्रह किया. लेकिन जिन लोगों को दो वक्त के खाने के लिए भी जी-तोड़ मेहनत करनी पड़ती हो उनके लिए शिक्षा को महत्व देना मुश्किल है. 

खुद पढ़ाती हैं इन बच्चों को 
ऐसे में, सुनीता ने घर-घर जाकर बच्चों को इकट्ठा करना और हर दिन दो-तीन घंटे पढ़ाने का फैसला किया. उनका दृष्टिकोण सिर्फ किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं था बल्कि उनका लक्ष्य इन बच्चों को समग्र शिक्षा देना है जिसमें उनका आत्मविश्वास बने और परिवेश की समझ भी बढ़े. वह नहीं चाहती कि वे भीख मांगने और कूड़ा बीनने के अपने माता-पिता के नक्शेकदम पर चलें. 

उन्होंने बच्चों की स्थिति इतनी बदल दी है कि जो लोग कभी कूड़ा बीनकर अपना गुजारा करते थे, वे भी अब अंग्रेजी किताबें पढ़ने लगे हैं. सुनीता ने बच्चों को व्यक्तिगत सुरक्षा के बारे में शिक्षित करने का बीड़ा उठाया है, विशेषकर लड़कियों को जो अपनी गरीब पृष्ठभूमि के कारण बहुत बार शोषण का शिकार बनती हैं. अगर उनके साथ कोई गलत काम होता है तो वह उन्हें बोलने के लिए प्रोत्साहित करती हैं. आज ये बच्चे उन्हें सिर्फ गुरु नहीं बल्कि मां की तरह इज्जत देते हैं. 

बच्चों को सिखा रहीं सही-गलत का फर्क
सुनीता बच्चों को व्यक्तित्व निर्माण का प्रशिक्षण दे रही हैं जिसमें वह सही-गलत का मतलब समझाती हैं. खासकर कि बेटियों को यह समझाना बहुत ज्यादा जरूरी है. वह नियमित रूप से लड़कियों की काउंसलिंग करती हैं. सुनीता 3 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को पढ़ाती हैं. पढ़ाने के अलावा, वह नियमित रूप से उनके परिवारों को समझाती हैं ताकि बच्चों को बाल श्रम के लिए मजबूर न किया जाए या उन्हें भूखा न रखा जाए. 

ये बच्चे अब जल्दी उठते हैं, रोज़ नहाते हैं और एक लड़की नौवीं कक्षा तक पहुंच गई है. यह बच्ची दूसरों को पढ़ाती है. यह लड़की शिक्षिका बनना चाहती है. अब उनके साथी शिक्षक भी स्लम के 10वीं कक्षा के छात्रों को एक्स्ट्रा क्लास दे रहे हैं. सुनीता पांच गरीब बच्चों की शिक्षा का खर्च भी उठा रही हैं. 

पिता से मिली प्रेरणा
सुनीता का कहना है कि उन्हें अपनी समाज सेवा की अटूट भावना का श्रेय अपने पिता को देती हैं जो कॉमर्स के शिक्षक थे और बच्चों को मुफ्त में अकाउंट पढ़ाते थे. उन्होंने अपने गांव में बच्चों की शिक्षा और विकास को सुविधाजनक बनाने के लिए एक पुस्तकालय स्थापित करने में 10 लाख रुपये का निवेश किया. सुनीता के पिता और उनके पति के प्रोत्साहन ने उन्हें अपना असाधारण काम जारी रखने के लिए प्रेरित किया.