
प्रयागराज के करेंहटी गांव की महक जायसवाल ने वो कर दिखाया है, जो हजारों लड़कियों के लिए उम्मीद और प्रेरणा बन गया है. यूपी बोर्ड इंटरमीडिएट परीक्षा में 97.20 प्रतिशत अंक लाकर टॉप करने वाली महक ने न केवल अपने परिवार, बल्कि पूरे राज्य का नाम रोशन कर दिया है. लेकिन ये सफलता रातों-रात नहीं आई. इसके पीछे हैं सालों की मेहनत, त्याग और सपनों को न छोड़ने वाला जज़्बा.
मिट्टी के घर से सपनों की उड़ान
महक का परिवार बेहद साधारण है. उनका घर आज भी अधूरा पड़ा है- मिट्टी की दीवारें, टूटा हुआ खपरैल, बिना प्लास्टर की ईंटें, एक कोने में पुराना फ्रिज और फोल्डिंग बेड. वहीं से निकल कर महक ने इतिहास रच दिया. महक की मां कुसुम और पिता शिव प्रसाद ने तमाम कठिनाइयों के बावजूद कभी हार नहीं मानी. कोविड लॉकडाउन के समय उनका घर गिर गया था, जिसके बाद पूरा परिवार एक समय के लिए सड़क किनारे रहने को मजबूर हो गया. मां के मायके वालों ने थोड़ी मदद की, जिससे पुश्तैनी ज़मीन पर नया घर बनाने की कोशिश हुई, लेकिन आज भी वह अधूरा है.
हर दिन 5 किलोमीटर साइकिल चलाकर स्कूल
महक की स्कूल और घर के बीच दूरी थी लगभग 5 किलोमीटर. लेकिन उसने कभी शिकायत नहीं की. रोज़ाना साइकिल चलाकर स्कूल जाना और फिर घर पर देर रात तक पढ़ाई करना उसकी दिनचर्या थी. मोबाइल से दूर रहकर, टीवी और सोशल मीडिया के बिना ही महक ने अपनी पढ़ाई पर फोकस किया. आज जब वह कैमरे के सामने मुस्कुरा रही है, तब वह वही लड़की है जिसने कभी फोटो खिंचवाना भी पसंद नहीं किया.
तुम बस पढ़ाई करो, पैसे की चिंता मत करना
महक बताती हैं कि उनके माता.पिता ने कभी संसाधनों की कमी को उनके सपनों के आड़े नहीं आने दिया. महक के पिता शिव प्रसाद ने प्रयागराज से करीब 90 किलोमीटर दूर कौशांबी जिले के पोखराज गांव में एक ढाबे के पास परचून की दुकान खोली, ताकि बच्चों की पढ़ाई के लिए पैसे जुटा सकें.
सुबह 8 बजे से रात 2 बजे तक दुकान पर रहने वाले शिव प्रसाद कहते हैं, “इतनी महंगाई में बच्चों को पढ़ाना आसान नहीं, मगर आज लगता है मेहनत हमारी काम आ गई.”
महक की मां कुसुम गर्व से कहती हैं, “बिटिया ने सब मेहनत सफल कर दी. अब गांव की हर बेटी को उससे प्रेरणा मिलेगी.”
महक डॉक्टर बनना चाहती हैं
यूपी बोर्ड में टॉप करने के बाद महक अब मेडिकल की तैयारी कर रही हैं. उनका सपना है डॉक्टर बनना, ताकि वे अपने गांव और जैसे गरीब परिवारों की मदद कर सकें. गांव की लड़कियों के लिए महक आज रोल मॉडल बन चुकी हैं. करेंहटी गांव के हर बच्चे को अब लगता है कि अगर महक कर सकती है, तो वे भी कर सकते हैं.
रिश्तेदारों ने बनाया सपोर्ट सिस्टम
महक के पिता की परचून की दुकान उनके रिश्ते के साले अनिल जायसवाल की है, जिन्होंने मुश्किल समय में दुकान चलाने के लिए शिव प्रसाद को जगह दी. उनका यह कदम महक की सफलता में एक अहम भूमिका निभा गया. महक का छोटा भाई आयुष भी अब उसी उत्साह से पढ़ाई कर रहा है. मां और भाई दोनों घर पर रहते हैं और महक के सपनों को पूरा करने में पूरे समर्पण के साथ जुटे हैं.
गांव की बेटी, पूरे राज्य की शान
महक की सफलता की खबर आने के बाद से गांव में बधाई देने वालों का तांता लग गया है. कॉलेज में अब जब महक पहुंचती हैं, तो लोग सेल्फी लेना चाहते हैं. कैमरे की जो झिझक कभी थी, वह अब आत्मविश्वास में बदल गई है.
यूपी बोर्ड की टॉपर बनना सिर्फ एक परीक्षा पास करना नहीं, बल्कि उस समाज को जवाब देना है जो सोचता है कि गरीबी में पले बच्चे कुछ बड़ा नहीं कर सकते.
(आनंदराज की रिपोर्ट)