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Rani Chennamma: Mallikarjun Kharge ने कित्तूर की रानी चेन्नम्मा से की Priyanka Gandhi की तुलना, 20 हजार ब्रिटिश सैनिकों को दी थी मात

साल 1824 में कित्तूर की रानी चेन्नम्मा ने 20 हजार सैनिक वाली ब्रिटिश सेना को हराया था. दो अंग्रेज अफसरों को पकड़ लिया था. अंग्रेजों ने दोनों अफसरों की रिहाई के बदले युद्ध ना करने का वादा किया था. जब रानी चेन्नम्मा ने दोनों को छोड़ दिया तो अंग्रेजों ने एक बार फिर युद्ध छेड़ दिया. जिसमें रानी चेन्नम्मा को हार का सामना करना पड़ा. रानी को कैद कर लिया गया.

Rani Chennamma and Priyanka Gandhi Rani Chennamma and Priyanka Gandhi

कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने लोकसभा सांसद और कांग्रेस लीडर प्रियंका गांधी की तुलना कित्तूर की रानी चेन्नम्मा और झांसी की रानी लक्ष्मी बाई से की. उन्होंने कहा कि अगर कोई कित्तूर चेन्नम्मा है, तो वो प्रियंका गांधी हैं. अगर कोई झांसी की रानी है, तो वो प्रियंका गांधी हैं. वह बहुत मजबूत हैं. 
कांग्रेस लीडर की जिस कत्तूर की रानी से तुलना हो रही है. आखिर वो कौन थी? क्यों उनको कर्नाटक की रानी लक्ष्मीबाई कहा जाता है? चलिए आपको कित्तूर की रानी चेन्नम्मा की कहानी बताते है.

कौन थीं रानी चेन्नम्मा-
कित्तूर की रानी चेन्नम्मा एक महान योद्धा थीं. रानी चेन्नम्मा को 'कर्नाटक की लक्ष्मीबाई' भी कहा जाता है. वह पहली भारतीय महिला शासक थीं, जिन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह किया था. चेन्नम्मा का जन्म 23 अक्टूबर 1778 को ककाती में हुआ था. ककाती कर्नाटक के बेलगावी जिले का एक छोटा सा गांव है. चेन्नम्मा की शादी देसाई वंश के राजा मल्लासारजा से हुई. जिसके बाद वह कित्तूर की रानी बन गईं. उनका एक बेटा भी था. जिसकी मौत साल 1824 में हो गई. बेटे की मौत के बाद उन्होंने शिवलिंगप्पा नाम के एक बच्चे को गोद लिया और उसे गद्दी का वारिस घोषित किया.

अंग्रेजों ने गोद लिए बेटे को वारिस नहीं माना-
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने गोद लिए गए शिवलिंगप्पा को रानी चेन्नम्मा का वारिस मानने से इनकार कर दिया. ब्रिटिश शासन ने शिवलिंगप्पा को राज्य से निकालने का आदेश दिया. लेकिन रानी ने इसे मानने से इनकार कर दिया. उन्होंने बॉम्बे प्रेसिडेंसी के लेफ्टिनेंट गवर्नर लॉर्ड एलफिंस्टन को चिट्ठी लिखी और ऐसा ना करने का आग्रह किया. लेकिन अंग्रेज नहीं माने.

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20 हजार सैनिकों और 400 बंदूकों के साथ हमला-
जब अंग्रेजों ने शिवलिंगप्पा को वारिस मानने से इनकार कर दिया तो रानी चिन्नम्मा से उनकी लड़ाई हो गई. अंग्रेजों ने कित्तूर पर कब्जा करने की कोशिश की. अंग्रेजों ने 20 हजार सैनिक और 400 बंदूकों के साथ कित्तूर पर हमला कर दिया. कित्तूर के पास इतनी बड़ी फौज नहीं थी. लेकिन कित्तूर के जवानों ने बहादुरी से लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की.

इस लड़ाई में अंग्रेजों का एजेंट सेंट जॉन ठाकरे मारा गया. इस लड़ाई में ब्रिटिश सेना की बुरी तरह से हार हुई थी. कित्तूर ने दो ब्रिटिश अधिकारी सर वॉल्टर एलियट और स्टीवेंसन को बंधक बना लिया था. अंग्रेजों ने हार स्वीकार की और कित्तूर के खिलाफ युद्ध नहीं करने का वादा किया. इसके बाद रानी चेन्नम्मा ने दोनों को छोड़ दिया.

अंग्रेजों का धोखा और फिर युद्ध-
युद्ध में हारने के बाद अंग्रेजों ने साजिश की और रानी चेन्नम्मा को धोखा दिया. ब्रिटिश सेना ने फिर से कित्तूर के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया. ब्रिटिश अफसर चैपलिन पहले से बड़ी सेना लेकर कित्तूर पर हमला बोल दिया. इस युद्ध में सर थॉमस मुनरो का भतीजा और सोलापुर का सब कलेक्टर मुनरो मारा गया. रानी चेन्नम्मा की सेना ने बहादुरी से लड़ाई लड़ी. लेकिन अंग्रेजों के सामने उनकी सेना बहुत छोटी थी. जिसकी वजह से उनको हार का सामना करना पड़ा. रानी चेन्नम्मा को बेलहोंगल के किले में कैद कर लिया. रानी चेन्नम्मा ने 21 फरवरी 1829 को आखिरी सांस ली.

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