लोकसभा चुनावों की आहट सुनाई देते ही पंजाब में लंबे समय तक एक दूसरे के सहयोगी रहे भारतीय जनता पार्टी और अकाली दल के नेता पुनर्मिलन के सपने देख रहे हैं. 2022 में विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद दोनों पार्टियों के नेता अक्सर एक दूसरे पर डोरे डालते देखे गए हैं.
अकाली दल के साथ गठबंधन को लेकर भाजपा और अकाली दल नेताओं के रुख नरम पड़ गए हैं. वहीं पार्टी से जुड़े सूत्रों के मुताबिक भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने पंजाब इकाई को गठबंधन होने का इशारा कर दिया है. पंजाब में एक बार फिर से भाजपा और अकाली दल का गठबंधन लगभग तय माना जा रहा है.
अकाली दल स्वयं भी भाजपा के साथ गठबंधन चाहता है क्योंकि किसान आंदोलन के दौरान भाजपा का दामन छोड़ने से उसे कोई ज्यादा फायदा नहीं हुआ. उल्टे अकाली दल की मुश्किलें लगातार बढ़ रही हैं. एक-एक करके जहां कई वरिष्ठ नेता पार्टी से किनारा कर गए वहीं पार्टी का मत शेयर भी लगातार गिर रहा है.
अकाली दल का गिरता वोट शेयर
1997 के बाद अकाली दल का वोट शेयर लगातार गिर रहा है. 1997 में अकाली दल का मत प्रतिशत 37.64 फ़ीसदी था जो 2017 में घटकर 25.02 फीसदी रह गया. 2022 में सिर्फ 18.4 फीसदी रह गया. वहीं अकाली दल से अलग होने के बाद भाजपा के वोट शेयर में काफी वृद्धि हुई है.
दोनों पार्टियों के नेता गठबंधन की अहमियत भी जानते हैं. राजनीति के माहिरों के मुताबिक अगर दोनो दल एक साथ हो जाए तो न केवल उनका वोट शेयर बढ़ेगा बल्कि वह आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को भी अच्छी टक्कर दे पाएंगे. वहीं अब पंजाब में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का इंडिया एलायंस के तहत गठबंधन होता नहीं दिखाई दे रहा है. अगर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी अलग-अलग चुनाव लड़ते हैं तो उसका सीधा सा फायदा भाजपा और अकाली दल को हो सकता है.
सीट शेयरिंग को फंसा लेकर फंसा पेंच
भाजपा और अकाली दल नेता गठबंधन को लेकर गोलमोल जवाब दे रहे हैं लेकिन भाजपा से जुड़े सूत्रों के मुताबिक पार्टी हाई कमान ने पंजाब इकाई के नेताओं को गठबंधन होने के संकेत दे दिए हैं. पार्टी के पंजाब प्रभारी विजय रुपाणी और अकाली दल के प्रवक्ता डा दलजीत चीमा ने गठबंधन की संभावनाओं से इंकार नहीं किया है. गठबंधन को लेकर दोनों पार्टी के नेताओं की कई बार बैठक हो चुकी है लेकिन सीट शेयरिंग को लेकर पेंच फंसा हुआ है. सीटों के बंटवारे पर सहमति नहीं बन पा रही है. भाजपा लोकसभा और विधानसभा सीटों में बराबर की हिस्सेदारी चाहती है और लोकसभा की 13 सीटों में से 7 सीटों पर अड़ी हुई है जबकि अकाली दल पहले की तरह भाजपा लो सिर्फ तीन सीटें देना चाहता है. कुछ नेताओं का कहना है कि अगर तीन सीटों के बजाय अकाली दल 5 से 7 सीट देने पर सहमति जताता है तो गठबंधन की घोषणा कभी भी हो सकती है. वहीं दोनों पार्टियों के नेता सार्वजनिक तौर पर अकेले ही 13 सीटों पर अलग-अलग चुनाव लड़ने का दावा कर रहे हैं. बड़ा सवाल यही है अगर अकाली दल भाजपा के साथ गठबंधन करता है तो उसके एलाइंस पार्टनर बसपा का क्या होगा.