टेलीविजन पर भगवान राम का किरदार निभाने वाले अरुण गोविल ने अपना चुनावी प्रचार शुरू कर दिया है. बुधवार को मेरठ के चौधरी चरणसिंह सभागार में अरुण गोविल ने अपनी पहली चुनावी सभा को संबोधित किया. टेलीविजन के राम को देखने के लिए सभागर लोगों की खचाखच भीड़ से भर गया. लोकसभा चुनाव के लिए मेरठ के नए प्रत्याशी के समर्थन में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी पहुंचे. जय श्रीराम के नारों से सभागार गूंजा तो मशहूर कवयित्री अनामिका अंबर के राम राज पर लोग झूमने भी लगे.
वैसे तो 80 के दशक में अरुण गोविल कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार कर चुके हैं लेकिन बतौर उम्मीदवार यह उनका पहला सियासी समर है और पहली राजनीतिक परीक्षा भी. भारी सभागार में पहली बार एक राजनीतिक संबोधन देते हुए अरुण गोविल ने कहा कि उन्हें सौभाग्य मिला है कि अपनी ही जन्मभूमि पर वह आए हैं और अब उनकी घर वापसी हो गई है. राम मंदिर को लेकर अपनी बात रखते हुए अरुण गोविल ने कहा कि जब पहले वह अयोध्या जाते थे, तो वहां उन्हें लगता था कि मंदिर नहीं है लेकिन 22 जनवरी के बाद अयोध्या जाने का भाव बदल गया है.
संन्यासी से बड़ा कोई राजा नहीं
अपनी शिक्षा दीक्षा के समय को याद करते हुए अरुण गोविल ने कहा कि जब मैं यहां कॉलेज में पढ़ता था तब हर साल किसी न किसी छात्र की हत्या हो जाती थी लेकिन योगी जी ने पूरे राज्य के हालात को बदल दिया है. अरुण गोविल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तारीफ करते हुए कहा कि संन्यासी से बड़ा कोई राजा नहीं है. पहली बार मेरा मन किया कि मुझे लोकसभा जाना चाहिए और मुझे अपने जन्मस्थान से ही मौका मिल गया.
अरुण गोविल ने लोगों से समर्थन मांगा
मेरठ के प्रबुद्धजनों और कार्यकर्ताओं के साथ हुई पहली सभा में अरुण गोविल ने लोगों से समर्थन मांगा और कहा कि मेरठ की गलियां अब बदल गई हैं लेकिन 400 के आंकड़े को पार करने के लिए मुझे आप सब के समर्थन की जरूरत है. अरुण गोविल के समर्थन में आए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी उनके रामायण में किरदार की सराहना की तो लोगों से चुनाव में अरुण गोविल को अपना समर्थन देने की अपील भी की.
चुनाव प्रचार में जनता 'राम' के साथ
मौजूदा भाजपा के तीन बार के सांसद राजेंद्र अग्रवाल के करीबी रहे नरेश कुमार कहते हैं कि हम भाजपा के लिए काम करते हैं और ऐसे में प्रत्याशी महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि वोट मोदी के नाम पर पड़ना है. अरुण गोविल मेरठ के हैं इसलिए उनका यहां से जुड़ाव है और हम उनके लिए जी जान से चुनाव प्रचार करेंगे.
अरुण गोविल की उम्मीदवारी से पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों में गजब का उत्साह है. कई महिलाओं ने कहा कि जैसे वह टेलीविजन पर राम का किरदार निभाते थे बिल्कुल इस अंदाज में उन्होंने अपनी सभा में संबोधित भी किया है. रेणु कुमारी ने कहा कि कृष्ण जी भी नेता थे तो हमारे राम जी भी नेता बनेंगे और हम उनके चुनाव प्रचार में उनके साथ हैं.
राजेंद्र अग्रवाल का टिकट काटा
मेरठ में तीन बार के सांसद रहे राजेंद्र अग्रवाल का टिकट बीजेपी ने काट दिया है. इस लोकसभा चुनाव में मेरठ से अरुण गोविल को अपना प्रत्याशी बनाया है. लेकिन जिस राजेंद्र अग्रवाल का टिकट काटा गया है उनका राजनीतिक रसूख काफी दमदार है. संघ में सक्रिय रहे भाजपा नेता राजेंद्र अग्रवाल साल 2009 में पहली बार बीजेपी के टिकट पर मेरठ से सांसद बने. इसके बाद 2014 और 2019 में बीजेपी ने उन्हें टिकट दिया और दोनों ही बार उन्होंने भारी बहुमत से मेरठ लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की. वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की आंधी चली थी. इसकी शुरुआत मेरठ से ही हुई थी. मेरठ में भारतीय जनता पार्टी को करीब 48 फीसदी वोट मिले थे.
मेरठ में राजेंद्र अग्रवाल ने स्थानीय नेता मोहम्मद शाहिद अखलाक को दो लाख से अधिक वोटों से मात दी थी. इस सीट पर बॉलीवुड अभिनेत्री नगमा कांग्रेस की ओर से चुनाव लड़ी थीं, हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा 2019 लोकसभा चुनाव में भी इस सीट से बीजेपी के राजेंद्र अग्रवाल ने जीत हासिल की, उन्हें 5,86,184 वोट मिले थे. जबकि बसपा के हाजी याक़ूब क़ुरैशी 5,81,455 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे और कांग्रेस के हरेंद्र अग्रवाल 34,479 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे थे. 2019 के चुनाव में बीजेपी के राजेंद्र अग्रवाल की जीत का अंतर 4729 रह गया था.
अरुण गोविल जब मेरठ पहुंचे तो मौजूदा सांसद राजेंद्र अग्रवाल ने बाहें फैला कर उनका स्वागत किया और कहा कि जैसा पार्टी का निर्देश होगा उसी अनुसार पूरे इलाके में अरुण गोविल के लिए पूरी ताकत से चुनाव प्रचार करेंगे और उन्हें जिताने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. राजेंद्र अग्रवाल ने कहा कि राम मंदिर बनने के बाद अरुण गोविल का मैदान में उतर जाना पार्टी के नेतृत्व द्वारा लिया गया एक महत्वपूर्ण फैसला है. मौजूदा सांसद राजेंद्र अग्रवाल ने टिकट काटे जाने के बाद भी संभवत अरुण गोविल की उम्मीदवारी को स्वीकार कर लिया है लेकिन उनके समर्थकों और स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं या पदाधिकारी में फिलहाल असमंजस की स्थिति दिखती है.
चुनाव जीतने के बाद अरुण गोविल कहां होंगे?
कुछ ऐसे भी हैं जो अपने नेता का टिकट काटे जाने पर नाराज भी दिख रहे हैं. भाजपा कार्यकर्ता और मेरठ में राजपूत महासभा के अध्यक्ष अनूप रघव का कहना है कि बाहरी कैंडिडेट लाने की बजाय किसी स्थानीय नेता को ही टिकट देते क्योंकि हमें नहीं पता चुनाव जीतने के बाद अरुण गोविल कहां होंगे. उनकी पहचान राम का किरदार अदा करने वाले एक अभिनेता के तौर परहै जबकि राजेंद्र अग्रवालने लोगों के बीच अपनी छवि बनाई है. क्षत्रिय समाज के भाजपा कार्यकर्ताओं ने गाजियाबाद से वीके सिंह का टिकट काटे जाने और धनंजय सिंह को मिली सजा को लेकर के भी नाराजगी जताई है और यह कहा है कि इसके चलते भाजपा का राजपूत मतदाता फिलहाल खुश नहीं है लेकिन हम मोदी जी के लिए चुनाव में मेहनत करेंगे और जैसा बीजेपी का नेतृत्व चहेगा उसे दिशा में काम करेंगे लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में कार्यकर्ताओं में वह उत्साह नहीं है इसलिए देखते हैं आगे क्या होता है.
स्थानीय पार्षद दिग्विजय चौहान ने कहा कि हम अरुण गोविल को सिर्फ उनके किरदार की वजह से जानते हैं और अब अखबारों में पता चला है कि वह मेरठ के रहने वाले हैं. श्रीकांत त्यागी एपिसोड के बाद भी गौतमबुद्ध नगर से महेश शर्मा को टिकट दिए जाने के चलते त्यागी समाज के मतदाताओं में भी नाराजगी है, ऊपर से संजीव बालियान को दोबारा टिकट दिया गया है जिसके चलते राजपूत समाज भी बहुत ज्यादा खुश नहीं है और अब मेरठ से मौजूदा सांसद का टिकट काटकर किसी बाहरी को यहां लाने के चलते भी नवीन चावला जैसे स्थानीय लोगों के मन में भी यह धारणा बनी है कि बीजेपी ने एक बाहरी कैंडिडेट यहां दे दिया है जिसके बारे में हम यह नहीं कह सकते कि वह यहां रहेंगे या उन्हें खोजने के लिए हमें मुंबई जाना पड़ेगा.
अरुण गोविल को भाजपा द्वारा उम्मीदवार बनाए जाने पर नवीन चावला कहते हैं कि हम तो उन्हें टीवी पर भगवान राम का किरदार अदा करने की वजह से जानते हैं लेकिन बीजेपी यहां किसी स्थानीय को भी टिकट दे सकती थी. मंदिर बन गया और अब उसका उत्साह पूरा हो चुका है. इसलिए चुनाव को इतना आसान भी ना समझा जाए.
मेरठ लोकसभा सीट राजनीति के हिसाब से अहम
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का केंद्र और क्रांतिधरा भूमि माने जाने वाली मेरठ लोकसभा सीट राजनीतिक संदेश के हिसाब से अहम सीट मानी जाती है. मेरठ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी का गढ़ माना जाता रहा है. मेरठ लोकसभा के साथ हापुड़ का कुछ क्षेत्र भी जुड़ता है, कुल मिलाकर यहां 5 विधानसभा क्षेत्र हैं. इनमें किठौर, मेरठ कैंट, मेरठ शहर, मेरठ दक्षिण और हापुड़ की सीट है. 2017 के लोकसभा चुनाव में इनमें मेरठ शहर समाजवादी पार्टी तथा अन्य विधानसभा सीटें भारतीय जनता पार्टी के खाते में गई थीं.
मेरठ लोकसभा क्षेत्र में 19 लाख से अधिक मतदाता हैं. मेरठ का सर्राफा एशिया का नंबर 1 का व्यवसाय बाजार है. 2011 के आंकड़ों के अनुसार मेरठ की आबादी करीब 35 लाख है, इनमें 65 फीसदी हिंदू, 36 फीसदी मुस्लिम आबादी हैं. मेरठ में कुल वोटरों की संख्या 1964388, इसमें 55.09 फीसदी पुरुष और 44.91 फीसदी महिला वोटर हैं. 2014 में यहां मतदान का प्रतिशत 63.12 फीसदी रहा.
1857 में स्वाधीनता संग्राम की नींव रखने वाला शहर मेरठ पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति का केंद्र माना जाता है. देश में हुए पहले लोकसभा चुनाव में यहां कांग्रेस का परचम लहराया था, लेकिन 1967 में सोशलिस्ट पार्टी ने कांग्रेस को मात दी. 1971 में एक बार फिर कांग्रेस ने बाजी मारी, लेकिन उसके अगले चुनाव में इमरजेंसी के खिलाफ चली लहर जनता पार्टी के हक में गई. हालांकि, 1980, 1984 में कांग्रेस की ओर से मोहसिना किदवई और 1989 में जनता पार्टी ने ये सीट जीती थी. 1990 के दौर में देश में चला राम मंदिर आंदोलन का मेरठ में सीधा असर दिखा और इसी के बाद ये सीट भारतीय जनता पार्टी का गढ़ बन गई.
-आशुतोष मिश्रा की रिपोर्ट