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Bihar Politics: 122 का जादुई आंकड़ा... Nitish Kumar ने दिया इस्तीफा तो कैसे बनेगी नई सरकार... Lalu-Tejashwi ऐसे कर सकते हैं खेला, समझें नंबर गेम

Bihar Assembly Number Game: सीएम नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी के सभी विधायकों को पटना बुला लिया है. बीजेपी ने भी अपने विधायकों को प्रदेश की राजधानी में इकट्ठा होने का निर्देश दिया है. आरजेडी भी नीतीश के अलावा विकल्प तलाश रही है. आइए बिहार के सियासी आंकड़ों के बारे में जानते हैं. 

Nitish Kumar-Tejashwi Yadav Nitish Kumar-Tejashwi Yadav
हाइलाइट्स
  • नीतीश जिधर जाएंगे सरकार उसी पार्टी की बनेगी

  • बीजेपी हालात पर बनाए हुए है नजर 

बिहार में पल-पल राजनीति बदल-बदल रही है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एनडीए के साथ मिलकर सरकार बनाने की चर्चा हो रही है. इस बीच आरजेडी का दावा है कि आसानी से तख्तापलट नहीं होने दिया जाएगा. प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते आरजेडी भी राज्यपाल के पास जाकर सरकार बनाने का दावा पेश कर सकती है. बीजेपी भी हालात पर नजर बनाए हुए है.

...तो ऐसे नीतीश का बिगाड़ सकते हैं लालू खेल  
आपको लग रहा है कि नीतीश कुमार भाजपा संग मिलकर आसानी से बिहार में एनडीए की सरकार बना लेंगे. लेकिन, नंबर गेम में ऐसा होता आसान नहीं दिख रहा है. लालू प्रसाद यादव यदि जोड़-तोड़ की राजनीति करते हैं तो बिहार में मामला फंस जाएगा और पाला किसी भी ओर बदल सकता है. सीटों के लिहाज से राजद अब भी बिहार में सबसे बड़ी पार्टी है. ऐसे में लालू और तेजस्वी यादव यदि मांझी या जेडीयू को विधायकों को तोड़ने में सफल होते हैं तो सरकार बनाने का मौका उनके पास भी आ सकता है.

क्या है आरजेडी का गेम प्लान 
कानूनी प्रक्रिया के तहत आरजेडी विधायक दल की बैठक के बाद राज्यपाल से मुलाकात कर नीतीश कुमार नेतृत्व वाली सरकार से समर्थन वापसी का पत्र देगी. नीतीश कुमार सरकार से समर्थन वापसी के बाद सरकार अल्पमत में आ जाएगी. ऐसे में आरजेडी स्पीकर से मांग कर सकती है कि विधानसभा के फ्लोर पर नीतीश कुमार बहुमत सिद्ध करें. लालू-तेजस्वी ऐसा कर सकते हैं, नीतीश कुमार विश्वास प्रस्ताव लेकर आएंगे तो उस दौरान जनता दल यूनाइटेड के कुछ विधायकों को वोटिंग के दौरान अनुपस्थित करवा दें या फिर उससे पहले ही कम से कम 16 विधायक यदि इस्तीफा दे देते हैं तो फिर नीतीश की सरकार गिर जाएगी.

अब सवाल उठता है कि जदयू विधायक इस्तीफा क्यों देंगे? इसका जवाब यह है कि आने वाले 1 साल में बिहार में चार चुनाव हैं. लोकसभा चुनाव, राज्यसभा चुनाव, एमएलसी चुनाव और फिर अगले साल बिहार विधानसभा चुनाव होने हैं. इन विधायकों को राजद के तरफ से सेट करने का ऑफर दिया जा सकता है. उन्हें यह प्रलोभन दिया जा सकता है कि कुछ को राज्यसभा भेज दिया जाएगा कुछ को लोकसभा का टिकट दे दिया जाएगा कुछ को एमएलसी बना दिया जाएगा और मंत्री बना दिया जाए और कुछ को अगले साल विधानसभा का चुनाव में टिकट देने का वादा किया जाए.

किसके पास हैं कितनी सीटें 
बिहार की 243 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 122 है. अभी राजद के पास 79 सीटें हैं. कांग्रेस की 19, सीपीआई (एमएल) की 12, सीपीआई (एम) की 2 सीटों को मिलाकर राजद गठबंधन में सीटों का आंकड़ा 112 पहुंचता है. यदि राजद जीतन राम मांझी की पार्टी हम के 4 विधायकों, एआईएमआईएम के 1 विधायक और 1 निर्दलीय विधायक को अपने पाले में लाने में सफल हो जाती है तो फिर राजद गठबंधन के पास कुल 118 सीटें हो जाती हैं. 

ऐसे में उसे बहुमत का आंकड़ा छूने के लिए 4 और विधायकों की जरूरत है. यदि तेजस्वी किसी तरह जदयू के 4 विधायकों को तोड़ने में सफल हो जाते हैं तो फिर बिहार में कुछ और ही खेल हो सकता है. सभी की निगाहें बिहार विधानसभा के स्पीकर अवध बिहारी चौधरी पर भी हैं. बहुमत साबित करने के वक्त वह बड़ा रोल निभा सकते हैं.

नीतीश एनडीए में गए तो हो जाएंगे इतने विधायक
यदि नीतीश कुमार एनडीए में चले जाते हैं तो उनके बाद कुल 128 विधायक हो जाएंगे. इसमें बीजेपी के 78, जेडीयू के 45, HAM के 4 विधायक शामिल हैं. इसके अलावा एक नीर्दलीय विधायक का समर्थन भी नीतीश के पास है. हम कह सकते हैं कि एनडीए हो या महागठबंधन, नीतीश कुमार की पार्टी जिधर का रुख कर ले उधर आसानी से सरकार बन और बच जाएगी.

विधायकों के लिए दल बदलना इतना आसान नहीं
बिहार विधानसभा के स्पीकर अवध बिहारी चौधरी हैं. सदन में बहुमत साबित करते समय वे बड़ा रोल निभा सकते हैं. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि क्योंकि स्पीकर के पास विधायकों को योग्य या अयोग्य ठहराने की पावर होती है. यदि विधायकों ने पाला बदला तो सदन में बहुमत साबित करते वक्त स्पीकर की भूमिका अहम हो सकती है. हालांकि, दल बदलना विधायकों के लिए इतना आसान भी नहीं होगा. क्योंकि उन्हें 1985 में बने दल-बदल कानून का सामना करना पड़ सकता है. वो अयोग्य ठहराए जा सकते हैं. दल-बदल कानून के तहत विधायक तभी पार्टी बदल सकते हैं, जब किसी पार्टी के दो-तिहाई विधायक एक साथ पार्टी छोड़ते हैं. 

ऐसे बढ़ी नीतीश की लालू और तेजस्वी से तल्खी
सीएम नीतीश कुमार और आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव के बीच तल्खी बढ़ गई है. इतना ही नहीं, नीतीश कुमार ने लालू यादव का फोन तक उठाना बंद कर दिया है. लालू की ओर से मुलाकात का समय मांगा गया था, लेकिन नीतीश ने मिलने का समय भी नहीं दिया. इतना ही नहीं 26 जनवरी को हुए हाईटी कार्यक्रम के दौरान सीएम नीतीश कुमार बैठे थे. उनके इशारे पर अशोक चौधरी उनके पास पहुंचते हैं. 

अशोक चौधरी ने उस कुर्सी पर लगे डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के नाम की स्लिप को निकालकर फाड़ दिया और फिर वो खुद नीतीश की बगल वाली उसी कुर्सी पर बैठ गए. जिसपर तेजस्वी के नाम की स्लिप लगी थी. नीतीश और तेजस्वी के बीच दूरी का अनुमान नीतीश के बयान से भी आप लगा सकते हैं. राजभवन से निकलते ही मीडिया ने नीतीश कुमार से पूछा कि तेजस्वी यादव क्यों नहीं आए? इसपर नीतीश कुमार ने कहा कि इस सवाल का जवाब उनसे ही पूछा जाए, जो नहीं आए.

नीतीश ने कब-कब बदला पाला
1994 में पहली बार नीतीश कुमार ने जनता दल से अलग होकर समता पार्टी बनाई. फिर 30 अक्टूबर 2003 को जनता दल यूनाइटेड का गठन किया और 2005 के चुनाव में बीजेपी से गठबंधन किया. 2013 में बीजेपी से गठबंधन तोड़ लिया. इसके बाद नीतीश ने 2015 में आरजेडी और कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लिया. फिर 2017 में नीतीश आरजेडी को छोड़कर एक बार फिर बीजेपी के साथ आए गए. 2022 में एक बार फिर बीजेपी का साथ छोड़ दिया और आरजेडी से हाथ मिला लिया. अब फिर बीजेपी गठबंधन में आने की संभावना है.