लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) में भारतीय जनता पार्टी बहुमत तो हासिल नहीं कर सकी, लेकिन 240 सीटों के साथ देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर जरूर उभरी. भारतीय जनता पार्टी ने एनडीए (National Democratic Alliance) के लिए इस बार 400 सीटों का लक्ष्य तय किया था. अपने लिए भी 370 सीटों का टारगेट रखा था. कुछ एग्जिट पोल भी एनडीए के लिए इतनी ही सीटों का अनुमान लगा बैठे थे लेकिन नतीजों में बीजेपी इस आंकड़े से बेहद दूर रह गई. विदेशी मीडिया में भी भारत के चुनावों की चर्चा इसी बिंदु पर हुई.
अमेरिका के सबसे बड़े अखबार ने क्या लिखा?
अमेरिका के सबसे बड़े अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने लोकसभा चुनाव के नतीजों की रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया कि पीएम मोदी की 'अपराजेय' छवि को ठेस पहुंची है.
वॉल स्ट्रीट जर्नल ने लिखा, "राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि चुनाव नतीजों ने मोदी की अजेयता की छवि को खत्म कर दिया है. 73 साल के मोदी लंबे समय से मतदाताओं को लुभाने के लिए अपने व्यक्तित्व पर भरोसा करते रहे हैं और उन्होंने चुनावी मौसम से पहले के महीनों में देश भर में बड़े पैमाने पर प्रचार किया."
अखबार ने नई दिल्ली के थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन से जुड़े राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई के हवाले से लिखा, "नतीजों से पता चलता है कि ब्रांड मोदी कमजोर हो गया है. यह एक बड़ा झटका है."
अखबार ने बीच चुनाव में पीएम मोदी के उन विवादित बयानों का भी उल्लेख किया जिनमें उन्हें कांग्रेस को मुस्लिम परस्त बताया था. अखबार ने लिखा, "इस बात के शुरुआती संकेत थे कि भारत के अधिकांश हिस्से में रिकॉर्ड तापमान वाली गर्मी की लहर के बीच भाजपा कम मतदान को लेकर चिंतित थी."
वॉल स्ट्रीट जर्नल ने लिखा, "मोदी ने अपने अभियान की शुरुआत अपने आर्थिक रिकॉर्ड का प्रचार करते हुए की, लेकिन जल्द ही वे मुसलमानों पर हमला करने और विपक्षी कांग्रेस पार्टी को मुस्लिम समर्थक के रूप में चित्रित करने लगे. अप्रैल के एक भाषण में, उन्होंने मुसलमानों को 'घुसपैठिए' और 'बहुत सारे बच्चे पैदा करने वाला' कहा था."
दूसरी ओर, अमेरिका के दूसरे सबसे बड़े अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस बात का अंदेशा जताया कि 'ब्रांड मोदी' अब अपनी सीमा तक पहुंच चुका है और अब उनके लिए सत्ता विरोधी भावना से बचना मुश्किल है.
न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा, "मोदी परिणाम को इस तरह देख सकते हैं कि उनकी पार्टी सिर्फ उनके चेहरे के दम पर ही इतनी सीटें जीत सकी. या यह भी हो सकता है कि उनका सावधानीपूर्वक तैयार किया गया ब्रांड अब अपने चरम पर पहुंच गया है. और वह अब सत्ता-विरोधी भावना से बच नहीं सकते हैं जो अंततः लगभग किसी भी राजनेता को पकड़ ही लेती है."
अल-जज़ीरा ने क्या कहा?
कतर की समाचार वेबसाइट और न्यूज चैनल अल-जजीरा ने भी पीएम मोदी की 'अपराजेय' छवि को ठेस पहुंचने की बात कही. अल-जजीरा ने पीएम मोदी की बायोग्राफी लिखने वाले पत्रकार निलंजन मुखोपाध्याय के हवाले से लिखा, "उस नारे में (अबकी बार, 400 पार) ओवर कॉन्फिडेंस की झलक थी, जबकि कई भारतीय बढ़ते दामों, आर्थिक असमानता और बेरोजगारी से जूझ रहे थे."
अल जजीरा ने भारतीय पत्रकार असीम अली के हवाले से लिखा, "बीजेपी आंख मूंदकर मुसीबत की ओर बढ़ रही थी. इस हार के साथ मोदी शर्मिंदा हुए हैं. वह वैसे अपराजित इंसान नहीं रहे और उनकी कभी न हारने वाली छवि भी वैसी नहीं रही."
क्या कहती है पाकिस्तानी मीडिया?
पाकिस्तान के अखबार 'द डॉन' ने अपने एडिटोरियल में भारत के चुनावों को जगह दी. अखबार में न सिर्फ बीजेपी के बहुमत से चूकने का उल्लेख किया, बल्कि यह भी कहा कि भारत में "जहरीली साम्प्रदायिकता" खत्म होने की उम्मीद है.
द डॉन ने लिखा, "यह आशा की जाती है कि गंभीर चुनाव परिणामों से मुसलमानों के खिलाफ भड़काऊ बयानबाजी में कमी आएगी, और पिछले दशक में राजनीतिक लाभ के लिए भारत में प्रचारित की गई 'जहरीली सांप्रदायिकता' को खारिज कर दिया जाएगा."
एडिटोरियल में यह उम्मीद भी जताई गई कि तीसरे कार्यकाल में मोदी सरकार भारत-पाकिस्तान के रिश्ते सुधारने की ओर काम करेगी. पाकिस्तान के राजनीतिक विश्लेषक अक्सर यह कहते नजर आए हैं बड़े जनादेश के साथ बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार भारत-पाक के रिश्तों को सुधार सकती है.
द डॉन ने लिखा, "एक बार जब दिल्ली में स्थिति शांत हो जाएगी और भाजपा अगली सरकार बनाएगी, तो हमें उम्मीद है कि नरेंद्र मोदी अपनी विदेश नीति की समीक्षा करेंगे. भारत को पाकिस्तान से संपर्क करना चाहिए और राज्य को किसी भी भारतीय प्रस्ताव पर सकारात्मक प्रतिक्रिया देनी चाहिए. स्वाभाविक रूप से, विश्वास बहाल करने में समय लगेगा. लेकिन बेहतर पाकिस्तान-भारत संबंधों के बिना दक्षिण एशिया में दीर्घकालिक शांति असंभव है."