लोकसभा चुनाव 2024 में केरल की सभी 20 सीटों पर 26 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे. इस सूबे में दो गठबंधनों के बीच मुकाबला होता है. एक तरफ वामदलों का गठबंधन लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) और दूसरी तरफ कांग्रेस की अगुवाई वाली यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फंट (UDF) है. इस बार बीजेपी ने भी सूबे में अपने उम्मीदवार उतारे हैं. केरल में कुछ प्रमुख जातियां हैं, जिनके इर्द-गिर्द ही राजनीतिक दल सूबे में सियासी रणनीति बनाते हैं. चलिए आपको उनके बारे में बताते हैं.
एझावा समुदाय-
केरल में ओबीसी का एक प्रमुख जाति एझावा(Ezhava) है. सूबे में इस जाति की आबादी 23 फीसदी है. ओबीसी से आने वाले इस जाति को परंपरागत तौर पर सूबे की सत्ता पर काबिज सीपीएम की अगुवाई वाली UDF का वोट बैंक माना जाता है. इस समुदाय के बड़े संगठन SNDP Yogam ने साल 2015 में एक राजनीतिक दल बनाया था. जिसका नाम भारत धर्म जन सेना (BDJS) है.
साल 2016 विधानसभा चुनाव में BDJS ने बीजेपी से गठबंधन किया था. लेकिन सफलता नहीं मिली. साल 2019 आम चुनाव में एक बार फिर BDJS एनडीए गठबंधन के तहत चुनाव लड़ी. BDJS ने सूबे की 4 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे, लेकिन कोई भी उम्मीदवार जीत हासिल करने में कायमाब नहीं हो पाया था. इस पार्टी को 1.88 फीसदी वोट हासिल हुए. लोकसभा चुनाव 2024 में एक बार फिर BDJS 4 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. जबकि बीजेपी 16 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार रही है.
मुस्लिम समुदाय-
मुस्लिम समुदाय का आबादी 26 फीसदी है. ये समुदाय परंपरागत तौर पर कांग्रेस की अगुवाई वाली यूडीएफ का वोट बैंक माना जाता है. इस समुदाय पर आईयूएमएल की मजबूत पकड़ मानी जाती है. पिछले दो दशकों में समुदाय से कई सियासी दल निकले. लेकिन आईयूएमएल जैसी मजबूत पकड़ कोई नहीं बना पाया. नॉर्थ केरल में मुस्लिम वोटर चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. इस समुदाय की अहम भूमिका वायनाड, मलप्पुरम, कोझिकोड, वाडाकारा, कन्नूर, पोन्नानी और कासरगोड लोकसभा सीट पर होती है. सीपीएम मुस्लिमों के सुन्नी समुदाय में पैठ बनाने की कोशिश कर रही है.
ईसाई समुदाय-
केरल में ईसाई समुदाय की आबादी 18 फीसदी है. ईसाई परंपरागत तौर पर कांग्रेस के साथ रहते हैं. हालांकि जब से बड़े ईसाई लीडर्स का साथ कांग्रेस से छूटा है. उसके बाद से बीजेपी इस समुदाय में पकड़ बनाने की कोशिश की रही है. लेकिन पिछले साल मणिपुर में जातीय हिंसा के बाद ईसाई समुदाय का बीजेपी से मोहभंग हुआ है और समुदाय में बीजेपी को लेकर अलग-अलग राय है. इस समुदाय की सेंट्रल केरल के लोकसभा क्षेत्रों में पकड़ है.
नायर समुदाय-
केरल में हिंदू उच्च जाति के नायर समुदाय की अहम भूमिका है. सूबे में इस समुदाय की आबादी 14 फीसदी है. यह प्रभावशाली समुदाय है. इस समुदाय का संगठन नायर सर्विस सोसायटी (NSS) की एक राजनीतिक शाखा नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी है, जो यूडीएफ का हिस्सा थी. लेकिन साल 1995 में कांग्रेस से इसका मोहभंग हो गया था. उसके बाद से एनएसएस आधिकारिक तौर पर सियासी दलों से दूरी बनाए हुए हैं. अभी पिनाराई विजयन की सरकार में 21 में से 7 मंत्री नायर समुदाय से हैं. कांग्रेस पार्टी में कई बड़े चेहरे नायर समुदाय से हैं. इसमें शशि थरूर, केसी वेणुगोपाल, के. मुरलीधरन जैसे नाम शामिल हैं.
दलित समुदाय-
केरल में दलित समुदाय की आबादी 9 फीसदी है. ये समुदाय सीपीएम और कांग्रेस से जुड़ा है. सूबे में अललथुर और मवेलिककारा सीट एससी समुदाय के लिए आरक्षित है. कोडिडुन्निल सुरेश कांग्रेस और राधाकृष्ण सीपीएम के प्रमुख दलित चेहरे हैं.
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