लोकसभा चुनाव 2024 के लिए पहले चरण के नामांकन का आज यानी 27 मार्च को आखिरी दिन है. लेकिन अब तक बिहार में महागठबंधन में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला फाइनल नहीं हुआ है. सीट शेयरिंग को लेकर लगातार कांग्रेस और आरजेडी के बीच बातचीत चल रही है. पटना से लेकर दिल्ली तक बैठकों का दौर चल रहा है. लेकिन अब तक गुड न्यूज नहीं आ पाई है. दिल्ली में मंगलवार (26 मार्च) की शाम को कांग्रेस नेताओं और तेजस्वी यादव के बीच बातचीत हुई और संभावना है कि आज किसी भी वक्त सीट शेयरिंग का फॉर्मूला सामने आ सकता है. आखिर आरजेडी कांग्रेस को एक-एक सीट के लिए क्यों तरसा रही है? इसकी कहानी बेहद दिलचस्प है.
लालू यादव के सामने कांग्रेस बेदम-
कांग्रेस और आरजेडी का गठबंधन 25 साल से ज्यादा पुराना है. लेकिन साल 2024 आम चुनाव के लिए कांग्रेस ने पहले ही दर्जनभर सीटों पर दावा ठोक दिया था. लेकिन लालू यादव और तेजस्वी यादव की रणनीति ने अब कांग्रेस को 6 सीटों के ऑफर के साथ बैकफुट पर ला दिया है. लालू यादव लगातार आरजेडी उम्मीदवारों को सिंबल बांट रहे हैं, जबकि इंडिया गठबंधन में अब तक सीट शेयरिंग का ऐलान नहीं हुआ है. आरजेडी की रवैए से कांग्रेस नाराज है, लेकिन उसके पास साहस नहीं है कि वो आरजेडी के फैसले के खिलाफ जा सके. सूत्रों के हवाले से खबर है कि कांग्रेस आलाकमान को इसमें दखल देना पड़ा है. तब जाकर मामला 6 सीटों से बढ़कर 8 सीटों तक पहुंचा है. हालांकि अभी भी कई सीटों को लेकर सस्पेंस बना हुआ है और आधिकारिक ऐलान होने तक कुछ भी नहीं कहा जा सकता है.
फ्रेंडली फाइट की संभावना-
इंडिया गठबंधन में हालात ऐसे बन गए हैं कि अगर कांग्रेस को उसकी डिमांड वाली लोकसभा सीट नहीं मिली, तो कुछ सीटों पर फ्रेंडली फाइट भी हो सकती है. कांग्रेस इसके लिए तैयार भी है. पूर्णिया लोकसभा सीट को लेकर भी विवाद है. अगर फ्रेंडली फाइट होती है तो ये पहली बार नहीं होगा. इससे पहले भी कांग्रेस और आरजेडी में फ्रेंडली फाइट हो चुकी है. कांग्रेस और आरजेडी पहली बार साल 1998 चुनाव में साथ मिलकर मैदान में उतरे थे. उसके बाद से कई बार गठबंधन पर संकट आया. लेकिन उसके बावजूद भी गठबंधन चलता रहा. साल 2009 आम चुनाव में आरजेडी और कांग्रेस अलग-अलग चुनाव लड़े थे तो कुछ चुनाव में फ्रेंडली फाइट भी देखने को मिल चुकी है.
कांग्रेस का वोट बैंक लालू के पास चला गया-
आरजेडी और कांग्रेस गठबंधन के बीच पिछले चुनावों के आंकड़े क्या कहते हैं? इसे बताने के पहले यह समझ लेना जरूरी है कि बिहार में कभी अल्पमत की सरकार जुगाड़ से चलाने वाले लालू प्रसाद यादव ने बाद में कांग्रेस के बूते ही अपनी सियासी पकड़ मजबूत की थी. हालांकि बाद में धीरे-धीरे लालू यादव ने कांग्रेस के ही आधार वोट बैंक में सेंधमारी कर ली. लालू यादव ने बिहार में MY समीकरण की बदौलत लंबे समय तक राज किया. इस समीकरण का अहम फैक्टर मुस्लिम कभी कांग्रेस का मजबूत वोट बैंक था. इतना ही नहीं, सामाजिक समीकरण के हिसाब से देखा जाए तो SC और सवर्ण भी कभी कांग्रेस का आधार वोट हुआ करते थे, लेकिन बाद में अनुसूचित जाति और पिछड़ी जातियों का जुड़ाव लालू यादव के साथ होता गया और लालू की अगड़ा–पिछड़ा पॉलिटिक्स से नाराज कांग्रेस के सवर्ण वोटर्स भी उससे दूर होते चले गए. भारतीय जनता पार्टी (BJP) सवर्ण वोटरों के लिए बिहार में विकल्प के तौर पर उभरी और पहले समता पार्टी और फिर बाद में जनता दल यूनाइटेड ने इन वोटों पर अपनी पकड़ मजबूत की. आंकड़े यही बताते हैं कि साल 1998 में कांग्रेस जब पहली बार आरजेडी के साथ गठबंधन में आई तो उसके बाद कभी भी लालू यादव की पकड़ से बाहर नहीं निकल पाई. जब कांग्रेस ने अलग चुनाव लड़ा तो उसका प्रदर्शन इतना खराब रहा कि उसे गठबंधन की तरफ ही लौटना पड़ा. बिहार में कांग्रेस आरजेडी के लिए जरूरी नहीं, मजबूरी है.
गठबंधन का इतिहास-
साल 1998 में आरजेडी और कांग्रेस के बीच हुए पहले गठबंधन के बाद अब 26 साल पूरे होने जा रहे हैं, लेकिन सीट बंटवारे को लेकर दोनों दलों के बीच जबरदस्त खींचतान देखने को मिल रही है. इन 25 सालों में कांग्रेस आरजेडी के बगैर कुल 4 बार चुनाव मैदान में उतरी है. कई चुनावों में दोनों दलों के बीच कई सीटों पर दोस्ताना मुकाबले भी देखने को मिला है.
बिना गठबंधन कांग्रेस और आरजेडी का प्रदर्शन-
कांग्रेस और आरजेडी बिना गठबंधन के भी कई बार चुनाव में उतरी हैं. लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनावों में दोनों पार्टियों का आमना-सामना हुआ है. चलिए आपको बताते हैं कि उस समय क्या नतीजे रहे?
(पटना से शशि भूषण कुमार की रिपोर्ट)
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