लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) की तैयारी में सभी पार्टियां जुट गई हैं. कहा जाता है दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश (UP) से होकर जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि देश के सभी राज्यों से अधिक लोकसभा सीटें इस प्रदेश में है. यहां कुल 80 लोकसभा सीटें हैं. आज हम आपको सूबे की ऐसी हॉट सीट के बारे में बताने जा रहे हैं, जो कभी सपा की गढ़ मानी जाती थी. जी हां, हम बात कर रहे हैं आजमगढ़ (Azamgarh) लोकसभा सीट की. 2022 में हुए उपचुनाव में इस सीट से बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के सुपर स्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ (Dinesh Lal Yadav Nirhua) ने सपा के धर्मेंद्र यादव को शिकस्त दी थी.
कब और किसने दर्ज की जीत
हम कह सकते हैं कि आजमगढ़ सांसद यादव या मुस्लिम को ही बनाता रहा है. इस लोकसभा सीट से 1989 से यादव या मुस्लिम ही जीतते आ रहे हैं. उससे पहले भी इस सीट से यादव उम्मीदवार जीत दर्ज कर चुके हैं. आजमगढ़ लोकसभा सीट कांग्रेस (Congress) के पास पहले लोकसभा चुनाव से 1971 तक रही. 1952 में अलगू राय शास्त्री, 1957 में कालिका सिंह, 1962 में राम हरख यादव, 1967 और 1971 में चंद्रजीत यादव ने कांग्रेस से जीत दर्ज की थी.
इमरजेंसी के बाद इस सीट से जनता पार्टी के रामनरेश यादव ने जीत दर्ज की. उनके सीएम बनने पर 1978 में कांग्रेस की मोहसिना किदवई यहां से सांसद बनीं. इसके बाद जनता पार्टी सेक्युलर के चंद्रजीत यादव 1980 में अपना पताका फहराने में सफल हुए. इसके 1984 कांग्रेस के संतोष सिंह इस सीट से विजयी हुए. इसके बाद इस सीट से कांग्रेस कभी जीत नहीं पाई.
मोदी लहर के बावजूद सपा ने दर्ज की जीत
बसपा (BSP) के रामकृष्ण यादव 1989 में और जनता दल के चंद्रजीत यादव 1991 में आजमगढ़ से सांसद चुने गए. इसके बाद सपा (SP) के टिकट पर 1996 में रमाकांत यादव और 1998 में बसपा के अकबर अहमद डंपी सांसद बने. इसके बाद फिर 1999 में सपा के टिकट पर रमाकांत यादव ने जीत दर्ज की.
इसके बाद अकबर अहमद डंपी साल 2004 और 2008 के उपचुनाव में फिर से सांसद बने. इसके बाद लोकसभा चुनाव 2009 में रमाकांत यादव ने बीजेपी (BJP) के टिकट पर यह सीट जीत ली. मोदी लहर के बावजूद लोकसभा चुनाव 2014 में मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) और 2019 में अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने आजमगढ़ से जीत दर्ज की.
2022 में हुए उपचुनाव में निरहुआ बने सांसद
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 2019 में आजमगढ़ लोकसभा सीट से जीत दर्ज की थी. लेकिन 2022 में करहल विधानसभा सीट से जीत हासिल करने के बाद आजमगढ़ लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद हुए उपचुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार दिनेश लाल यादव निरहुआ ने सपा के धर्मेंद्र यादव को शिकस्त दी थी. वर्तमान में निरहुआ यहां सांसद हैं.
बीजेपी ने फिर उनपर भरोसा जताया है. 2014 के लोकसभा चुनाव और 2022 के उपचुनाव में सपा और भाजपा को शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली ने कड़ी टक्कर दी थी. अब वह बसपा का साथ छोड़कर सपा के साथ जुड़ गए हैं. ऐसा में माना जा रहा है कि इस सीट से निरहुआ को कड़ी टक्कर मिलेगी.
46 लाख से अधिक है जिले की आबादी
आजमगढ़ की कुल आबादी 46,13,913 लाख है. औसत साक्षरता दर 70.93 फीसदी है. इस जिले में विधानसभा की कुल 10 सीटें हैं, लेकिन आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें गोपालपुर, आजमगढ़, सगरी, मेंहनगर और मुबारकपुर हैं.
क्या है जाति समीकरण
2022 के विधानसभा चुनाव में सभी पांच सीटों पर सपा ने जीत दर्ज की थी. मेंहनगर विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. यहां एक लाख से ज्यादा दलित मतदाता, 70 हजार से ज्यादा यादव वोटर, राजभर और चौहान मतदाताओं की संख्या 35 हजार से अधिक और मुस्लिम वोटरों की संख्या 20 हजार से ज्यादा है. आजमगढ़ सदर सीट पर सबसे ज्यादा 75 हजार से अधिक यादव वोटर हैं. दलित और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 60 हजार के करीब है.
मुबारकपुर में मुस्लिम मतदाता एक लाख 10 हजार से ज्यादा हैं. दलित वोटरों की संख्या 78 हजार और यादव मतदाताओं की संख्या 61 हजार के करीब है. सगड़ी सीट 82 हजार से ज्यादा अनुसूचित जाति के वोटर हैं. यादव 55 हजार से ज्यादा, कुर्मी 40 हजार से ज्यादा है और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 30 हजार से अधिक है. गोपालपुर में 68 हजार से ज्यादा यादव वोटर, 53 हजार से ज्यादा दलित और 42 हजार से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं.
माय समीकरण ही बनता है जीत का आधार
आजमगढ़ में किसी भी प्रत्याशी के लिए जीत का आधार एम-वाई यानी मुस्लिम-यादव समीकरण का काम करना बताया जाता है. इस लोकसभा सीट पर यादव मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है. इनकी आबादी करीब 26 फीसदी है. इसके बाद मुस्लिम मतदाता करीब 24 फीसदी हैं. यही दोनों समाजवादी पार्टी की जीत का आधार बनते रहे हैं. बहुजन समाज पार्टी की जीत में दलितों के करीब 20 फीसदी वोट और मुस्लिम वोट बैंक को माना जाता है. भारतीय जनता पार्टी की जीत का समीकरण सवर्ण, पिछड़ा वर्ग और दलित वोट बैंक के साथ-साथ यादवों के एक वर्ग का समर्थन रहा है.