सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर एक बार फिर से मेनका गांधी अपनी किस्मत किस्मत आजमाती नजर आ रही हैं. जिन्हें समाजवादी पार्टी की तरफ से भीम निषाद गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर चुनौती दे रहे हैं. मेनका का यह सुल्तानपुर से दूसरा चुनाव है. 2019 में यह सीट में निकले अपने बेटे वरुण गांधी से बदली थी जो पीलीभीत से चुनाव लड़े थे. लेकिन इस बार वरुण गांधी की जगह पीलीभीत से पीडब्ल्यूडी मंत्री जितिन प्रसाद मैदान में हैं. तो भीं मेनका पर बीजेपी ने दोबारा से ऐतबार किया है. मेनका का दावा है कि अपने काम के दम पर और मोदी की लहर में बड़े मार्जिन के साथ सीट पर वह जीत दर्ज करेंगे.
इस बार के चुनाव रोचक होंगे
सुल्तानपुर की सीट में सिर्फ एक बार छोड़कर अभी तक कोई भी सांसद दोबारा रिपीट नहीं हुआ है जो इस इलेक्शन को और भी रोचक बनाता है. सुल्तानपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत 5 विधानसभा क्षेत्र आते हैं. इनमें इसौली, सुल्तानपुर, सदर, लम्भुआ और कादीपुर- (अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित) शामिल हैं. सुल्तानपुर का कुल क्षेत्रफल 4,152 वर्ग किलोमीटर है. 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की जनसंख्या 116,211 है, जिसमें से 52.54 प्रतिशत पुरुष और 47.46 प्रतिशत महिलाएं हैं. यहांं प्रति 1000 पुरुषों पर 886 महिलाएं हैं. यहां का औसत साक्षरता दर 87.61 प्रतिशत है. यहां मतदाताओं की कुल संख्या 1,703,698 है जिसमें महिला मतदाता 793,521 और पुरुष मतदाताओं की संख्या 910,134 है.
17 लोकसभा चुनाव और 3 उपचुनाव हुए
आजादी के बाद से सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर अभी तक 17 लोकसभा चुनाव और 3 उपचुनाव हुए हैं. 1951 से 1971 तक जनसंघ ने कांग्रेस से सीट छीनने की कोशिश तो बहुत की लेकिन कभी कामयाब नहीं हो सकी. 1952 में पहले लोकसभा चुनाव हुए, जिसमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बी. वी. केसकर विजयी रहे और यहां के पहले सांसद रहे. कांग्रेस ने इस क्षेत्र में लगातार 5 बार जीत हासिल की पर हर बार अलग-अलग नेता यहां के सांसद बने. 1957 में गोविन्द मालवीय, 1962 में कुंवरकृष्ण वर्मा, 1967 में गनपत सहाय (निर्दल) और 1971 में कांग्रेस से केदारनाथ सिंह यहां के सांसद चुने गए.
1977 में कांग्रेस ने इस क्षेत्र में अपनी पहली हार देखी जब जनता पार्टी के जुल्फिकार उल्ला ने कांग्रेस प्रत्याशी को हरा कर इस सीट पर अपना कब्जा जमाया. 1980 में इंदिरा गांधी की पार्टी कांग्रेस के गिरिराज सिंह ने यहां जीत हासिल की. 1984 के चुनाव में ही कांग्रेस पार्टी के राजकरण सिंह ने इस सीट पर अपना आधिपत्य जमाया. इसके बाद कांग्रेस ने काफी सालों तक जीत का मुंह नहीं देखा. 1989 में जनता दल के राम सिंह भारी मतों से विजयी हुए और यहां के सांसद बने तो 1991 में भारतीय जनता पार्टी ने यहां अपना खाता खोला जिसमें बाबा विश्वनाथ दास शास्त्री व बाद में दो बार 1996 व 1998 में पूर्व आईपीएस अधिकारी डीबी राय बीजेपी के सांसद चुने गए.
वहीं 1999 में यह सीट बहुजन समाज पार्टी के जयभद्र सिंह व 2004 में मोहम्मद ताहिर खान ने चुनाव जीतकर हासिल की. 2009 में बहुत सालों बाद कांग्रेस के डॉ. संजय सिंह यहां से जीत हासिल की. वहीं 2014 में यहां से भाजपा के टिकट पर गांधी खानदान के संजय वरुण गांधी ने चुनाव लड़ा और उन्होंने जीत हासिल की. 2019 में यहां से बीजेपी के टिकट पर मेनका गांधी ने बसपा के चन्द्रभद्र सिंह उर्फ सोनू सिंह को हराकर विजयी हुई थी
सुल्तानपुर को सबसे ज्यादा योजनाएं मिली हैं
मेनका गांधी ने कहा कि पिछले 10 सालों में सुल्तानपुर को सबसे ज्यादा योजनाएं मिली हैं वहीं मंत्री न रहने के बावजूद भी इस क्षेत्र की ताकत बनी रही जिसके लिए वह केंद्र राज्य सरकार के लिए शुक्रगुजार हैं. अपने बेटे के भविष्य पर कहा कि वह फैसला खुद करेंगे लेकिन जो भी काम करेंगे देशात में ही होगा. मेनका ने कहा की आवाज से लेकर आवास तक, मुफ्त राशन, सड़क, पानी, बिजली और स्वास्थ्य की सेवा में सबसे ज्यादा काम हुआ है और अपनी दूसरी पारी में भी इसकी रफ्तार को दोगुना करेंगे.
दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार भी निषाद अपनी जीत का दावा करते हुए 7 लाख वोटो से जीत का बात कह रहे हैं. बातचीत में निषाद ने कहा कि मेनका गांधी बाहरी नेता है जो केवल दौरे पर आती है और सुल्तानपुर में लोगों में अपनी सांसद को लेकर बड़ी नाराजगी है. पिछड़ी जाति से आने वाले गठबंधन प्रत्याशी अपने साथ निषाद माला बिना तेली यादव मुस्लिम ठाकुर और दलित वोट के साथ होने का दावा करते हुए जीत का दावा कर रहे हैं. वहीं इस इलाके में कांग्रेस पार्टी के काडर और राहुल गांधी प्रियंका के चुनाव लड़ने पर क्षेत्र में सियासी फायदा होने की बात कहते है.
जनता क्या मानती है?
वहीं दूसरी तरफ सुल्तानपुर की जनता मानती है कि विकास के मुद्दे और बेरोजगारी महंगाई सबसे बड़ा चुनाव में मुद्दा है अंकित ग्रामीण कहते हैं कि मेनका जी ने काम किया है लेकिन अभी भी सुल्तानपुर में रोजगार के नाम पर कुछ नहीं है. मोहम्मद राशिद कहते हैं कि गठबंधन के प्रत्याशी को पिछड़ी जाति और मुस्लिम सपोर्ट मिल सकता है. लेकिन अगर बीएसपी या कैंडिडेट उतरती है तो इसका नुकसान भी मेनका गांधी को होगा हालांकि मौजूदा संसद को लेकर के कोई खास नाराजगी नहीं है लेकिन चुनाव में वोट किस करवट बैठ यह कहां नहीं जा सकता.
इसके साथ क्षेत्र के दूसरे मुद्दों में खास तौर पर ग्रामीण इलाकों में सड़क का निर्माण, नाली और स्थानीय समस्याएं सामने आई. रमेश कहते हैं कि सुल्तानपुर को हमेशा सरकारी योजनाओं का लाभ तो मिला है लेकिन महंगाई और बेरोजगारी पर अभी तक नियंत्रण नहीं हो सका है जहां की युवा बेरोजगार घूमते हैं जिन्हें काम के लिए लखनऊ या दिल्ली जाना पड़ता है. अगर क्षेत्र में इंडस्ट्री आती है तो कुछ स्थिति बेहतर हो सकती है.