2024 लोकसभा का समर शुरू हो गया है हर दिन सियासी उठा पटक देखने को मिल रही है और इसमें एक बड़ी सियासी खबर यह है कि चंडीगढ़ लोकसभा सीट पर भाजपा अपने 34 साल पुराने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल के बगैर चुनावी मैदान में उतरेगी. भाजपा की जीत में एक बड़ा रोड़ा शिरोमणि अकाली दल बन सकती है. सियासी पंडितों की मानें तो शिरोमणि अकाली दल के अकेले चुनाव लड़ने से चंडीगढ़ लोकसभा सीट का मुकाबला काफी रोचक हो गया है.
आईडीसी के अध्यक्ष प्रमोद कुमार ने India Today से खास बातचीत में बताया कि चंडीगढ़ सीट के बड़े सियासी मायने हैं और जिस तरह से पंजाब और चंडीगढ़ में भाजपा का गठबंधन शिरोमणि अकाली दल के साथ नहीं हो रहा है, उसका सीधा असर चंडीगढ़ की लोकसभा सीट पर देखने को मिल सकता है. प्रमोद कुमार ने बताया कि चंडीगढ़ में हाल ही में हुए मेयर चुनाव उसका सबसे बड़ा उदाहरण है क्योंकि जिस तरह से बीजेपी हर सीट पर सभी गुणा भाग कर रही है उस लिहाज से अकाली दल के अकेले चुनाव लड़ना भारी पड़ सकता है.
शिरोमणि अकाली दल के चंडीगढ़ के अध्यक्ष हरदीप सिंह ने खास बातचीत में बताया कि शिरोमणि अकाली दल चंडीगढ़ के गांव में खूब पकड़ बनाकर रखती है जिसका परिणाम नगर निगम चुनाव में और वार्डों में जब वोट पड़े थे देखने को मिला था. नगर निगम चुनाव में भी शिरोमणि अकाली दल और भाजपा सहयोगी नहीं थे और भाजपा को पांच वार्डो में अकाली दल के खड़े होने से हार का सामना करना पड़ा था... वहीं पर इस बार सियासी समीकरण में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी गठबंधन के साथ है और पिछले 10 सालों में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के वोट शेयर में सेंध लगाई थी और भाजपा दो बार लगातार जीत पर काबिज हुई. लेकिन इस बार शिरोमणि अकाली दल के खड़े होने से बीजेपी की जीत की राह आसान नहीं होगी. हरदीप सिंह ने इस बात को माना कि अकाली दल इन चुनाव को जरूर जीत नहीं सकती लेकिन बीजेपी की मुश्किलें जरूर खड़ी कर सकती है.
वहीं भाजपा के चंडीगढ़ के अध्यक्ष जितेंद्र पाल मल्होत्रा ने कहा कि गठबंधन टूटने से भाजपा को कोई नुकसान नहीं होगा क्योंकि भाजपा पिछले 10 सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों और अच्छे कामों के बलबूते आम जनता के बीच जा रही है. बीजेपी चंडीगढ़ में पहले ही सशक्त है और अकाली दल के साथ ना रहने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा.
अगर कांग्रेस की बात करें तो चंडीगढ़ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हर मोहिंदर सिंह लकी ने कहा कि आम आदमी पार्टी के सहयोग से कांग्रेस का पलड़ा भारी हुआ है जिसका रिजल्ट हाल ही में हुए मेयर चुनाव में गठबंधन को मिला है. कांग्रेस और आम आदमी गठबंधन ने भाजपा को नगर निगम चुनाव में पटकनी दी और वह उम्मीद कर रहे हैं कि आम आदमी पार्टी के सहयोग से लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को जरूर उसका फायदा मिलेगा.
AAP ने 2014 के लोकसभा चुनाव में चंडीगढ़ में अपनी शुरुआत की, जहां उसकी उम्मीदवार गुल पनाग तीसरे स्थान पर रहीं. आप उम्मीदवार ने पुनर्वासित कॉलोनियों और मलिन बस्तियों में कांग्रेस उम्मीदवार पवन बंसल के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगाई और बंसल के 1.21 लाख (26.84%) की तुलना में 1.08 लाख वोट (23.97%) हासिल किए। चुनाव जीतने वाली बीजेपी की किरण खेर को 1.91 लाख वोट (42.20%) मिले.
हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनावों में, AAP का वोट शेयर सिर्फ 3.82% रह गया, जबकि उसके उम्मीदवार हरमोहन धवन को 13,781 वोट मिले. भाजपा की किरण खेर ने कांग्रेस के बंसल के खिलाफ लगभग 46,000 वोटों के अंतर से सीट बरकरार रखी. बंसल को 1.84 लाख वोट (40.35%) मिले थे, जो कि खेर के 2.31 लाख वोट (50.64%) से पीछे थे.