बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने आगामी लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा की है. बसपा प्रमुख मायावती ने सोमवार को अपने जन्मदिन पर कहा कि किसी पार्टी के साथ गठबंधन करने से उन्हें चुनाव में नुकसान होता है. उन्होंने कहा कि बसपा का वोट विपक्षी दल को तो मिल जाता है, लेकिन दूसरों का वोट हमें नहीं मिल पाता. आइए आज पिछले चुनाव परिणामों से जानते हैं कि मायावती के इस दावे में कितनी सच्चाई है, क्या वाकई में उन्हें गठबंधन से फायदा नहीं मिलता है.
गठबंधन से मिला फायदा
बहुजन समाज पार्टी का गठन कांशीराम ने 1984 में किया था. शुरू के चुनावों में बसपा को कोई सफलता नहीं मिली लेकिन 1991 के विधानसभा चुनाव में बसपा का यूपी में खाता खुला. बसपा के 12 विधायक जीतने में कामयाब रहे थे. इस चुनाव से बसपा को यूपी में अपने लिए सियासी उम्मीद नजर आई. इसके बाद ही कांशीराम ने गठबंधन की राह पकड़ी. चुनावी आंकड़े बताते हैं कि बसपा को चाहे यूपी हो, बिहार हो, छत्तीसगढ़ हो या पंजाब गठबंधन से हमेशा फायदा ही मिला है. यह अलग बात है कि उसका गठबंधन ज्यादा दिनों तक नहीं चला है.
सपा से पहली बार किया गठबंधन
1993 में जब कल्याण सिंह की सरकार गिर गई और विधानसभा चुनाव हुए. उस समय बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए कांशीराम और मुलायम सिंह यादव ने पहली बार हाथ मिलाया और भाजपा को रोक भी दिया था. सपा ने 256 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे 109 पर जीत मिली थी तो वहीं बसपा को 164 सीटों में से 67 पर जीत मिली थी. इस तरह से बसपा 12 से 67 सीटों पर पहुंच गई. हालांकि बाद में यह गठबंधन टूट गया. इसके बाद बीजेपी के समर्थन से मायावती 1995 में पहली बार यूपी की सीएम बनीं.
1996 में कांग्रेस से किया गठबंधन
1996 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में मायावती ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया. बसपा के वोटों में काफी इजाफा हुआ. जहां 1991 में 10.26 फीसदी वोट के साथ 12 विधानसभा सीटों पर पार्टी सिमटी गई थी वहीं इस साल 27.73 फीसदी वोट के साथ 67 सीटों पर जीत दर्ज की थी. हालांकि बाद में बसपा ने गठबंधन तोड़ लिया और 1997 में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली. छह महीने के बाद यह गठबंधन भी टूट गया. इसके बाद यूपी में 2002 के चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला. बसपा ने फिर बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाई और मायावती एक बार फिर मुख्यमंत्री बनीं.
अकेले लड़ने पर खाता तक नहीं खुला
बसपा 2007 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में अकेले सरकार बनाने में कामयाब हो गई. इसके बाद 2012 में सत्ता से बेदखल होने के बाद पार्टी वह कारनामा दोहराने में नाकाम रही. 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा का खाता भी नहीं खुला. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में किसी तरह 19 सीट जीत पाई. पार्टी का जनाधार गिरता देख मायावती ने लोकसभा चुनाव 2019 में एक बार फिर गठबंधन की.
बसपा ने सपा और आरएलडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा. इसमें सबसे ज्यादा फायदा मायावती को मिला. बसपा के 10 सासंद जीतने में सफल हुए. हालांकि बाद में यह गठबंधन भी टूट गया. 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में मायावती अकेले दम पर लड़ीं. किसी तरह एक विधायक को जीत मिली. वोट प्रतिशत काफी नीचे गिर गया.
इन राज्यों में भी गठबंधन का मिला फायदा
पंजाब में बसपा और शिरोमणि अकाली दल के बीच दो बार गठबंधन हुए और दोनों ही बार बसपा को लाभ मिला है. बसपा 1996 के लोकसभा चुनाव में अकाली दल के साथ मिलकर लड़ी थी. दोनों पार्टियों ने पंजाब की 13 में से 11 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी. बीएसपी तीन और अकाली दल 8 सीटें पर विजय हासिल की थी. 2022 में एक बार फिर बसपा ने अकाली दल के साथ चुनाव मैदान में उतरी. बसपा अपना एक विधायक बनाने में सफल रही.
2018 में कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में बसपा-जेडीएस ने साथ मिलकर लड़ा था. बसपा एक जीत के साथ अपना खाता खोलने में सफल रही थी. 2018 में छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में मायावती ने जेसीसी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. बसपा को जोगी के साथ गठबंधन करने का लाभ मिला था और उसके दो विधायक जीतकर आए. 2022 के बिहार विधानसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा की अगुवाई में बने डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट का बसपा हिस्सा बनी. कुशवाहा खाता नहीं खोल सके जबकि बसपा अपना एक विधायक बनाने में सफल रही.
बीएसपी अब फ्री में समर्थन नहीं देने वाली
मायावती ने सोमवार को कहा कि देश में अधिकांश पार्टियां बसपा के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ना चाहती हैं, जबकि हमारे लिए बसपा के हित को भी देखना बहुत जरूरी है. उन्होंने कहा कि अब किसी भी चुनाव के बाद हमारी पार्टी खासकर कमजोर और उपेक्षित वर्गों के हितों में केंद्र और राज्यों में उनके जरूरत को ध्यान में रखकर अपने उचित भागीदारी के आधार पर शामिल भी हो सकती है. बीएसपी अब पूर्व की तरह फ्री में बाहर से समर्थन नहीं देने वाली है.
यूपी में त्रिकोणीय हो सकता है मुकाबला
जानकारों का कहना है कि मायावती के अकेले चुनाव लड़ने के निर्णय से इंडिया गठबंधन का खेल बिगड़ सकता है, क्योंकि यूपी की 80 सीटों पर वन-टू-वन मुकाबला नहीं होगा. सभी सीटों पर त्रिकोणीय टक्कर होने की संभावना है. आंकड़े बताते हैं त्रिकोणीय मुकाबला हुआ तो उत्तर प्रदेश के परिणाम विपक्ष के लिए बहुत चौंकाने वाले होंगे.