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Mission 2024: बिहार में सियासी घमासान! Lalu को छोड़ BJP के साथ फिर जा सकते हैं Nitish Kumar, लोकसभा चुनाव से पहले आखिर क्यों चली भाजपा ने ये चाल

Bihar Politics: 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने बिहार की 40 में से 39 सीटों पर जीत हासिल की थी. तब इसमें बीजेपी, जदयू और लोक जनशक्ति पार्टी शामिल थी. यदि नीतीश कुमार वापस एनडीए में आते हैं तो बीजेपी की बिहार में वही प्रदर्शन दोहराने की उम्‍मीद बढ़ जाएगी. 

Political Conflict in Bihar Political Conflict in Bihar
हाइलाइट्स
  • बिहार में राजद के 79 विधायक, भाजपा के 78 और जदयू के हैं 45 विधायक

  • जीतन राम मांझी बन सकते हैं डिप्टी सीएम

इस समय हर तरफ बिहार की चर्चा हो रही है. इस प्रदेश की सियासत में सस्पेंस और रोमांच का दौर जारी है. राज्य के मुख्यमंत्री एवं जनता दल (यूनाइटेड) के अध्यक्ष नीतीश कुमार के एक बार फिर लालू प्रसाद यादव का साथ छोड़कर बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए में वापसी के संकेत मिल रहे हैं. यह सबकुछ बीजेपी के इशारों पर हो रहा है. यदि वाकई में ऐसा होता है तो यह आगामी लोकसभा चुनावों से पहले जदयू और भगवा पार्टी दोनों के लिए फायदे का सौदा होगा. 

बीजेपी के लिए क्यों अहम हैं नीतीश
2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने बिहार की 40 में से 39 सीटों पर जीत हासिल की थी. तब इसमें बीजेपी, जदयू और लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) शामिल थीं. यदि नीतीश कुमार वापस एनडीए में आते हैं तो बीजेपी की बिहार में वही प्रदर्शन दोहराने की उम्‍मीद बढ़ जाएगी. बीजेपी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में 400 का आंकड़ा पार करने का टारगेट सेट किया है. बिहार में पिछला प्रदर्शन दोहराए बगैर यह लक्ष्‍य हासिल कर पाना मुश्किल होगा.

नीतीश को भी होगा फायदा
नीतीश कुमार एनडीए में वापसी का फैसला लेते हैं तो उन्हें भी आगामी लोकसभा चुनावों में इस कदम से फायदा होने की उम्मीद है. जदयू ने 2019 में 16 लोकसभा सीटें जीती थीं. वह इस साल अपनी सीटों में सुधार करना चाहेगी. जाति सर्वेक्षण के हथियार से लैस नीतीश राज्य में अपनी पहुंच का विस्तार करने के लिए भव्य राम मंदिर उद्घाटन के बाद बीजेपी के हिंदुत्व एजेंडे का फायदा जोड़ना चाहेंगे.

सरकार बनाने के लिए जेडीयू का एकजुट रहना जरूरी
लालू और उनके बेटे तेजस्वी बिहार में काफी जनाधार वाले नेता हैं. जबकि बीजेपी के पास अभी भी राज्य में व्यापक अपील वाला कोई नेता नहीं है. भगवा पार्टी कई अन्य राज्यों की तरह बिहार में चुनाव जीतने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे और लोकप्रियता पर निर्भर है. नीतीश कुमार फिर से एनडीए गठबंधन में वापस आते हैं तो बीजेपी को यह भी देखना होगा कि उनकी पूरी पार्टी, खासतौर से उनके पूरे विधायक जेडीयू के साथ बने रहते हैं या नहीं. कारण है कि सरकार बनाने के लिए जेडीयू का एकजुट रहना जरूरी है.

बिहार विधानसभा में किस दल के कितने विधायक
राजद के 79 विधायक, भाजपा के 78 विधायक, जदयू के 45 विधायक, कांग्रेस के 19 विधायक, भाकपा (मा-ले) के 12 विधायक, भाकपा (माले) के  2 विधायक, भाकपा के 2 विधायक, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) के 4 विधायक, एआईएमआईएम के 1 विधायक और 1 निर्दलीय विधायक. बिहार विधानसभा में कुल सीटों की संख्या 243 है. यहां सरकार बनाने के लिए 122 सदस्यों के समर्थन की जरूरत है.

हो सकते हैं दो डिप्टी सीएम
हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के चीफ जीतन राम मांझी इन दिनों नीतीश कुमार से नाराज चल रहे हैं. ऐसे में मांझी को मनाने के लिए बीजेपी उन्हें भी डिप्टी सीएम बना सकती है. बिहार की मौजूदा सियासत में जीतन राम मांझी इसलिए अहम हो गए हैं कि उनके 4 विधायक हैं, जो कभी भी गेम बदल सकते हैं. लालू यादव भी इन 4 विधायकों को साधने की कोशिश में हैं. ऐसे में अगर मांझी ने लालू का साथ दिया, तो आरजेडी को बहुमत हासिल करने लिए 2-3 विधायकों की जरूरत पड़ेगी.

ऐसा हुआ तो नीतीश कुमार को वापस लाने की बीजेपी की कोशिशें फेल हो सकती हैं. बीजेपी बेशक ऐसा कभी नहीं चाहेगी. बीजेपी बिहार में दो डिप्टी सीएम बना सकती है. एक डिप्टी सीएम का पद भाजपा सांसद सुशील मोदी को मिलने की बात कही जा रही है. जदयू के फिर से एनडीए में शामिल होने की अटकलों के बीच भाजपा के राज्यसभा सदस्य और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि राजनीति में "दरवाजे कभी भी स्थायी रूप से बंद नहीं होते.

बिहार में सिर्फ मांझी और चिराग पासवान काफी नहीं 
पीएम मोदी को मालूम है कि 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए दक्षिण भारत से बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती है. उत्तर भारत के कई राज्यों में वह सैचुरेशन प्वाइंट या उसके आसपास है. गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के आंकड़ें इसके गवाह हैं. लेकिन अपनी स्थिति मजबूत बनाए रखने के लिए पार्टी को बिहार के लिए नई रणनीति अपनानी पड़ेगी. कहा जा रहा है कि बीजेपी ने महाराष्ट्र फॉर्मूले के तहत नीतीश कुमार को सीएम के तौर पर मंजूर किया. 

पार्टी ने नीतीश कुमार को 2025 तक सीएम की कुर्सी देने का वादा भी किया. बीजेपी इस बात को जानती है कि मांझी और चिराग पासवान के दम पर बिहार की चुनावी बाजी नहीं जीती जा सकती है. इसके लिए नीतीश कुमार भी चाहिए. शायद यही वजह हो सकती है कि बीजेपी नीतीश कुमार के 'लगातार पाला बदलने' की आदत के बावजूद अपने साथ लेने में पॉजिटिव अप्रोच दिखा रही है. महाराष्ट्र और बिहार दोनों को मिलाकर 88 लोकसभा सीटें होती हैं. ऐसे में इन सीटों पर अच्छा प्रदर्शन करने पर आंकड़े बीजेपी के पक्ष में जा सकते हैं.

नीतीश कुमार ने अगस्त 2022 में भाजपा से तोड़ा था नाता
नीतीश अगस्त 2022 में भाजपा से नाता तोड़ने के बाद लालू प्रसाद की पार्टी राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन में शामिल हो गए थे. उस वक्त नीतीश ने भाजपा पर जद(यू) में विभाजन की कोशिश करने का आरोप लगाया था. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा को केंद्र में सत्ता से उखाड फेंकने के लिए देश भर में सभी विपक्षी दलों को एक साथ लाने का अभियान शुरू किया था. 

नीतीश ने लालू का नहीं उठाया फोन
तेजस्वी यादव ने कहा कि आसानी से तख्तापलट नहीं होने देंगे और इतनी आसानी से दोबारा ताजपोशी नहीं होने देंगे. कहा जा रहा है कि आरजेडी किसी दलित चेहरे को सीएम पद के लिए आगे कर सकती हैं. तेजस्वी के बयान पर जेडीयू नेता नीरज कुमार ने प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा है कि हमारी तरफ से कोई बयान नहीं दिया गया है इसका मतलब है कि उनके मन (आरजेडी) में चोर है. नीतीश के पाला बदलने की खबरों के बीच आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव काफी बेचैन नजर आ रहे हैं. बताया जा रहा है कि, लालू ने नीतीश को करीब 5 बार फोन किया लेकिन नीतीश ने लालू का फोन नहीं उठाया जिससे नीतीश ने साफ संदेश दे दिया है कि, वो बीजेपी के साथ जाने वाले हैं.

नीतीश-लालू के रिश्तों में कैसे आई खटास
लालू यादव ने इंडिया गयबंधन की पहली बैठक कहा था कि राहुल गांधी आप दूल्हा बनो हम सब बाराती बनेंगे. यह वह समय था जब नीतीश कुमार को पीएम के रूप में प्रोजेक्ट करने का अभियान काफी तेज था. लालू के इस बयान से नीतीश को अघात पहुंचा था. गठबंधन के नाम इंडिया पर नीतीश कुमार की असहमति थी इसके बावजूद लालू यादव कांग्रेस के साथ रहे. सीट शेयरिंग में हो रही देरी को लेकर जहां नीतीश की पार्टी कांग्रेस को जिम्मेदार ठहरा रही थी, वहीं लालू कांग्रेस के साथ खड़े रहे. आरजेडी सुप्रीमो की ओर से शिक्षामंत्री प्रो. चंद्रशेखर को राम या रामायण पर अनर्गल प्रलाप करने देना. 

नीतीश कुमार की नाराजगी के बावजूद लालू यादव या तेजस्वी यादव का प्रो. चंद्रशेखर के लिए निषेधात्मक बयान का नहीं आना. आरजेडी एमएलसी सुनील कुमार की ओर से नीतीश कुमार को परेशान करने के लिए ट्वीट पर ट्वीट किए जाना और लालू यादव और तेजस्वी यादव का चुप रहना. लोकसभा चुनाव को लेकर लालू यादव ने जब सीट बंटवारे का आधार विधायकों की संख्या को बनाया. नीतीश कुमार ने इस प्रस्ताव को ठुकराते हुए 50:50 सीट बंटवारे का प्रस्ताव दिया. साफ कहा कि मेरा गठबंधन आरजेडी से है. कांग्रेस और वामदल को आरजेडी अपने कोटे से एडजस्ट करे. शिक्षक बहाली को लेकर श्रेय लेने हेतु आरजेडी की ओर से तेजस्वी यादव को बड़े-बड़े पोस्टर के द्वारा प्रमोट करना भी नीतीश कुमार को नागवार लगा. लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य का नीतीश कुमार के खिलाफ ट्वीट करना.