एक बार फिर केंद्र में एनडीए (NDA) की सरकार बनने जा रही है. लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों के आने के बाद प्रधानमंत्री आवास में एनडीए में शामिल पार्टियों की बैठक हुई. इसमें पारित प्रस्ताव में एनडीए नेताओं ने सर्वसम्मति से नरेंद्र मोदी को अपना नेता चुना. हालांकि इस बार पीएम मोदी (PM Modi) को सरकार चलाने में हर कदम पर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. ऐसा हम क्यों कह रहे हैं आइए जानते हैं.
बहुमत से इतनी सीट पीछे रह गई बीजेपी
केंद्र में किसी भी पार्टी को सरकार बनाने के लिए 543 सीटों में से 272 पर जीत जरूरी है. लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 में अपने दम पर बहुमत लाने वाली बीजेपी (BJP) इस बार उतनी सीटें नहीं जीत पाई है. बीजेपी को कुल 240 सीटों पर जीत मिली है. यानी इस बार सरकार बनाने के लिए एनडीए में शामिल दलों का सहयोग चाहिए ही चाहिए. हालांकि एनडीए के पास सरकार बनाने के लिए स्पष्ट बहुमत है. NDA को 292 सीटें मिलीं हैं, जो बहुमत से 20 ज्यादा हैं. विपक्षी इंडिया गठबंधन ने 234 सीटों पर जीत हासिल की है.
इस बार के चुनाव में NDA में शामिल बिहार के सीएम और जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार और टीडीपी (तेलुगु देशम पार्टी) के अध्यक्ष एन चंद्रबाबू नायडू ‘किंगमेकर’ बनकर उभरे हैं. मोदी सरकार को चलाने के लिए इन दोनों पार्टियों का साथ जरूरी है. इस बार के चुनाव में एनडीए में शामिल बीजेपी ने जहां सबसे अधिक सीटों पर जीत दर्ज की है तो वहीं टीडीपी 16 सीटों पर जीत दर्ज कर दूसरी बड़ी पार्टी बनी है. नीतीश कुमार की जदयू 12 सीटों के साथ तीसरे नंबर पर है. यानी इन दोनों पार्टियों के पास कुल 28 सीटें हैं. उधर, इंडिया गठबंधन में शामिल कांग्रेस ने सबसे अधिक 99 सीटों पर जीत दर्ज की है. अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी 37 और ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी को 29 सीटें मिली हैं.
पीएम मोदी का साथ देने की कह चुके हैं बात
पीएम आवास पर आयोजित बैठक में जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार और टीडीपी के अध्यक्ष एन चंद्रबाबू नायडू ने एनडीए के साथ रहने की बात कही है. मोदी के नेतृत्व में फिर सरकार बनाने की बात कही है. इसके बावजूद बहुत से लोग इस सरकार के पांच साल चलने को लेकर सवाल उठा रहे हैं. ऐसा पीएम मोदी के साथ इन दोनों नेताओं के उतार-चढ़ाव भरे रिश्तों के कारण कहा जा रहा है. क्योंकि एक ने कभी पीएम मोदी का इस्तीफा मांगा था तो दूसरे ने विशेष राज्य के दर्जे की मांग पर साथ छोड़ दिया था.
लोकसभा चुनाव 2024 से कुछ माह पहले ही नीतीश और नायडू एनडीए में शामिल हुए थे. इस बार सरकार बिना नीतीश और नायडू की बैसाखी के नहीं चल पाएगी. उधर, इस बार सरकार चलाने के दौरान पीएम मोदी के सामने भी कई चुनौतियां आने वाली हैं. क्योंकि मोदी के अभी तक के दोनों कार्यकाल में बीजेपी पूर्ण बहुमत में थी. पीएम मोदी कोई भी निर्णय आसानी से ले लेते थे लेकिन इस बार उन्हें सहयोगी पार्टियों की बातें न सिर्फ सुननी होंगी बल्कि उसपर अमल भी करना होगा.
नीतीश-मोदी के बीच कैसे रह चुके हैं रिश्ते
नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के पहले के रिश्तों की बात करें तो उतने अच्छे नहीं रहे हैं. नरेंद्र मोदी को जब पहली बार बीजेपी ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था तो नीतीश कुमार ने इसका खुलकर विरोध किया था. इतना ही नहीं उन्होंने बीजेपी-जदयू की 17 सालों की दोस्ती तोड़ दी थी. एनडीए से अलग हो गए थे. उससे पहले की बात करें तो लोकसभा चुनाव 2009 के चुनावों के प्रचार में नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी को बिहार आने से रोक दिया था.
नीतीश को डर था कि मोदी का साथ उनके वोटरों को नाराज न कर दे. इसके बाद 2010 में बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान भी नीतीश ने मोदी को सूबे में प्रचार करने नहीं दिया था. साल 2010 में बीजेपी के विज्ञापनों में मोदी के साथ तस्वीर छापने पर भी नीतीश काफी नाराज हो गए थे. उन्होंने बीजेपी नेताओं के लिए डिनर का प्रोग्राम तक कैंसिल कर दिया था. इतना ही नहीं, कोसी बाढ़ राहत के लिए गुजरात सरकार से मिले 5 करोड़ रुपए के चेक भी लौटा दिया था.
2014 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ा था
नीतीश कुमार एनडीए से इतने नाराज थे कि लोकसभा चुनाव 2014 अकेले लड़ा था. हालांकि नीतीश के इस निर्णय से जदयू को काफी नुकसान हुआ था. इस हार की जिम्मेदारी लेते हुए नीतीश ने मई 2014 में सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद 2015 का विधानसभा चुनाव उन्होंने लालू यादव की पार्टी आरजेडी के साथ मिलकर लड़ा था. बिहार में जदयू-आरजेडी की सरकार बनी. लेकिन सरकार बनने के दो साल बाद जुलाई 2017 में नीतीश कुमार एक बार फिर एनडीए में आ गए.
इसके बाद नीतीश ने लोकसभा चुनाव 2019 और विधानसभा चुनाव 2020 बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा. 2020 में बिहार में एनडीए की सरकार बनी, लेकिन एक बार फिर नीतीश कुमार ने अगस्त 2022 पलटी मार दी और आरजेडी के साथ आ गए. लालू की पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाई. इसके बाद नीतीश कुमार इसी साल जनवरी में फिर पलटकर एनडीए में आ गए. लोकसभा चुनाव 2024 से पहले ही बिहार राज्य में बीजेपी और जदयू की सरकार बनी है.
मोदी के साथ नायडू के भी तल्ख रहे हैं रिश्ते
नीतीश कुमार की तरह एन चंद्रबाबू नायडू के रिश्ते भी तल्ख रह चुके हैं. नायडू की पार्टी टीडीपी 2018 तक एनडीए की हिस्सा थी लेकिन आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर नायडू ने एनडीए का साथ छोड़ दिया था. इतना ही नहीं टीडीपी ने मार्च 2018 में संसद में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी पेश किया था. हालांकि ये प्रस्ताव गिर गया था. लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान भी मोदी और नायडू के बीच तीखी बयानबाजी हुई थी. साल 2002 में हुए गुजरात दंगों के बाद नायडू ने नरेंद्र मोदी से इस्तीफा मांगा था.
उस समय मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. नायडू उन नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने सबसे पहले मोदी से इस्तीफा मांगा था. लोकसभा चुनाव 2019 और विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद नायडू एनडीए के साथ फिर जुड़ने का प्रयास करने लग गए. एक्टर से राजनेता बने पवन कल्याण मोदी और नायडू को करीब लेकर आए. लोकसभा चुनाव 2014 से ऐन पहले मार्च में टीडीपी एनडीए में शामिल हो गई. इस बार जब मोदी तीसरी बार पीएम बनेंगे तो उन्हें सरकार चलाने के लिए सबको साथ लेकर चलना होगा.उनके सामने सबसे बड़ी जिम्मेदारी और चुनौती होगी, नायडू और नीतीश को अपने साथ लेकर चलना.
नायडू या नीतीश के बिना ऐसे बनेगी मोदी सरकार
बीजेपी 240 सीटों के साथ एनडीए में सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन अकेले सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है. NDA को कुल 292 सीटों पर जीत मिली है. नायडू की टीडीपी के पास 16 सीटें हैं. यदि एनडीए का साथ टीडीपी छोड़ भी देती है तो एनडीए के पास बहुमत के लिए जरूरी 272 से चार सीटें ज्यादा यानी 276 होंगी. ऐसी स्थिति में मोदी की ही सरकार बनेगी. यदि नीतीश की पार्टी जदयू अपने 12 सांसदों के साथ एनडीए का साथ छोड़ती है तो भी एनडीए के पास बहुमत के लिए जरूरी 272 सीटों से 8 ज्यादा सीटें 280 रहेंगी. ऐसे में मोदी की सरकार बनेगी.