First general elections: आज़ाद भारत के पहले आम चुनाव 25 अक्टूबर 1951 और 21 फरवरी 1952 के बीच हुए. यह बहुत बड़ा आयोजन था जिसमें दुनिया की आबादी का करीब 17 फीसदी हिस्सा मतदान करने वाला था. यह उस समय का सबसे बड़ा चुनाव था.
चुनाव में करीब 1874 उम्मीदवार और 53 राजनैतिक पार्टियां उतरी थीं, जिनमें 14 राष्ट्रीय पार्टियां थीं. इनमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी, किसान मजदूर प्रजा पार्टी और अखिल भारतीय हिन्दू महासभा सहित कई पार्टियां शामिल थीं.
इन पार्टियों ने 489 सीटों पर चुनाव लड़े थे. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 364 सीटों पर जीत और 45% वोट के साथ प्रचंड बहुमत मिला था. कुल 16 सीट जीतने वाली भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मुख्य विपक्ष बनी थी. पंडित जवाहर लाल नेहरू आज़ाद भारत के लोकतांत्रिक रूप से चुने गए पहले प्रधानमंत्री बने.
वैसे भारत आज़ाद तो 15 अगस्त 1947 को हो गया था, लेकिन पहले चुनाव 1951 में हो पाए. ऐसे में सवाल उठता है कि बीच के वर्षों में देश का शासन किसके हाथ में था? आपको बता दें, देश के आज़ाद होने और पहले आम चुनाव के बीच हमारा मुल्क किंग जॉर्ज VI के अधीन संवैधानिक राजतंत्र था. साथ ही, लुई माउंटबेटन इसके गवर्नर-जनरल थे. पहली चुनी हुई सरकार बनने से पहले जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में संविधान सभा बतौर संसद कार्य करती रही.
देश के नेताओं ने आम चुनाव की प्रक्रिया जुलाई 1948 से ही शुरू कर दी थी. हालांकि, तब तक चुनाव कराने के लिए कोई कानून नहीं थे. डॉ. भीमराव अम्बेडकर के नेतृत्व में, ड्राफ़्टिंग कमेटी (मसौदा समिति) ने कड़ी मेहनत कर संविधान का मसौदा तैयार किया था, जो 26 नवंबर 1949 को पारित हुआ. हालांकि, इसे लागू 26 जनवरी 1950 से किया गया. भारत को उस दिन चुनाव कराने के लिए नियम और उप-नियम मिले और देश आखिरकार 'भारत गणराज्य' बना.
हालांकि,यह एक असाधारण सफ़र की महज़ शुरुआत थी. संविधान लागू होने के बाद चुनाव आयोग का गठन किया गया. चुनाव कराने के बेहद मुश्किल काम की ज़िम्मेदारी भारतीय नौकरशाह सुकुमार सेन को दी गई. वे भारत के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त बने.
जवाहर लाल नेहरू चाहते थे कि आम चुनाव 1951 के बसंत में हों. उनकी इस जल्दबाज़ी को समझा जा सकता था, क्योंकि भारत लोकतंत्र की जिस नई सुबह का तीन सालों से इंतज़ार कर रहा था उसकी आखिरकार शुरुआत हो रही थी. हालांकि, मुक्त, निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से, इतने बड़े पैमाने पर चुनाव कराना कोई आसान काम नहीं था.
इसमें एक बड़ी चुनौती थी भारत की आबादी, जो उस समय 36 करोड़ थी. संविधान के लागू होने पर, भारत ने वोट डालने के लिए उसी उम्र को योग्य माना जो तब दुनियाभर में अपनाई जा चुकी थी. इससे 21 साल से ज़्यादा उम्र वाले 17.3 करोड़ लोग वोट डालने के लिए योग्य हो गए.
जनगणना के आंकड़ों के आधार पर संसदीय निर्वाचन क्षेत्र तय किए जाने थे, जो 1951 में हो पाया. फिर देश की ज़्यादातर अशिक्षित आबादी के लिए, पार्टी के चुनाव चिह्न डिज़ाइन करने, मतपत्र और मतदान पेटी बनाने से जुड़ी समस्याएं थीं. मतदान केंद्र बनाए जाने थे. साथ ही, यह पक्का करना था कि केंद्रों के बीच सही दूरी हो. मतदान अधिकारियों को नियुक्त कर ट्रेनिंग देना भी जरूरी था.
इन चुनौतियों के बीच एक और मुश्किल सामने आ गई. भारत के कई राज्यों में खाने की कमी हो गई और प्रशासन को राहत कार्यों में जुटना पड़ा. इन चुनौतियों को पार करने में समय लगा. हालांकि, आखिर में जब चुनाव हुए, तो योग्य आबादी में से 45.7% मतदाता, पहली बार वोट डालने के लिए अपने घरों से बाहर निकले. भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बना, जहां लोगों ने, लोगों के लिए एक सरकार चुनी.