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Story of Tenth General Elections: 1991 का वो दौर जब मंडल-मंदिर में उलझी देश की राजनीति, पढ़िए देश के 10वें आम चुनावों की उथल-पुथल भरी यात्रा

India's tenth General Election: 1991 के आम चुनाव में दो विवादास्पद मुद्दे बहस के केंद्र में रहे. मंडल आयोग का नतीजा और राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद. इन दोनों मुद्दों पर पूरा देश बंट चुका था. यहीं कारण रहा कि 10वें आम चुनाव की यात्रा काफी उथल-पुथल भरी रही.

PV Narashimha Rao PV Narashimha Rao
हाइलाइट्स
  • मंडल-मंदिर में उलझी देश की राजनीति

  • जाति और धर्म के बीच बंटे लोग

Story of 10th General Elections: 10वां लोकसभा चुनाव देश के इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण था. यह एक मध्यावधि चुनाव था, जो पिछली लोकसभा के गठन के 16 महीने बाद ही भंग होने के कारण हुआ था. साल 1991 में भारत एक चौराहे पर खड़ा था, ध्रुवीकरण वाले मुद्दों से जूझ रहा था. मंडल और मंदिर मामले में देश की राजनीति बंट चुकी थी. जाति और धार्मिक इन दोनों मुद्दों पर सही-गलत की बहस चल रही थी. 

दरअसल, जैसे-जैसे चुनावी युद्ध का मैदान गर्म होता गया, दो विवादास्पद मुद्दे बहस पर हावी होते गए: मंडल आयोग (Mandal Commission Report) का नतीजा और राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद (Ram Janmabhoomi-Babri Masjid) विवाद. अन्य पिछड़ी जातियों (OBC) को 27% आरक्षण की मंडल आयोग की सिफारिश ने अगड़ी जातियों में व्यापक विरोध प्रदर्शन किया. जबकि बाबरी मस्जिद मुद्दे ने पूरे देश में धार्मिक तनाव पैदा कर दिया. इस तनावपूर्ण माहौल के बीच ही 'मंडल-कमंडल' चुनावों के लिए मंच तैयार किया गया था.

चुनावी मुकाबला 20 मई से 15 जून 1991 तक तीन चरणों में चला. यह तीन प्रमुख खिलाड़ियों के बीच एक जोरदार लड़ाई थी: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress), भारतीय जनता पार्टी (BJP), और राष्ट्रीय मोर्चा-जनता दल (S)-वाम मोर्चा गठबंधन. राजनीतिक बयानबाजी के शोर के बीच हर कोई अपने वोट साधना चाहता था. ये चुनाव हर पार्टी के लिए अपने वर्चस्व की लड़ाई थी. 

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हालांकि, पहले दौर के मतदान के तुरंत बाद ही ऐसी त्रासदी हुई, जिसके लिए देश तैयार नहीं था. 20 मई 1991 में श्रीपेरेम्बुदूर में चुनाव प्रचार के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या (Rajiv Gandhi Assassination) कर दी गई. उस वक्त राजीव गांधी एक चुनावी सभा को संबोधित कर रहे थे. जिसमें लिबरेशन टाइगर ऑफ तमिल ईलम (LTTE) ने उनकी हत्या कर दी थी. देश राष्ट्र शोक में डूब गया था और और सम्मान के प्रतीक के रूप में शेष चुनाव के दिनों को जून के मध्य तक के लिए स्थगित कर दिया गया. राजीव गांधी के असामयिक निधन से राजनीतिक परिदृश्य में सदमे की लहर दौड़ गई, जिससे पूरे चुनाव का रुख बदल गया.

राजीव गांधी की हत्या के बाद के दुख के बीच, चुनाव के नतीजों से त्रिशंकु संसद का पता चला. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 232 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, जबकि भाजपा 120 सीटों के साथ काफी पीछे रही. जनता दल केवल 59 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर खिसक गया. इस चुनावी गतिरोध के बीच 21 जून 1991 को कांग्रेस के नरसिम्हा राव ने देश के नए प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली.

पी.वी. नरसिम्हा राव देश के सर्वोच्च पद पर आसीन हुए और भारत में शासन के एक नए युग की शुरुआत हुई. प्रधानमंत्री के रूप में पी.वी. नरसिम्हा राव की नियुक्ति परंपरा से हटकर थी, क्योंकि वह नेतृत्व की कमान संभालने वाले नेहरू-गांधी परिवार के बाहर से दूसरे कांग्रेस नेता बन गए. 

1991 के चुनाव में त्रासदी और उथल-पुथल की पृष्ठभूमि में, राष्ट्र अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग करने और आगे का रास्ता तय करने के लिए एक साथ आया था. ये चुनाव भारतीय मतदाताओं की अदम्य भावना और लोकतांत्रिक संस्थानों की स्थायी ताकत की याद दिलाती है.