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UP Lok Sabha Election Phase 6 and Phase 7: दोस्ती का इम्तिहान! यूपी में आखिरी 2 फेज में NDA के सहयोगी दलों के भरोसे BJP... Anupriya Patel, Sanjay Nishad और Om Prakash Rajbhar कर पाएंगे कमाल?

UP Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव में 5 चरणों की वोटिंग हो चुकी है. अब सिर्फ दो फेज की वोटिंग बाकी है. उत्तर प्रदेश में इन दो फेज में NDA में BJP के सहयोगी दलों की परीक्षा होनी है. पूर्वांचल में अपना दल (Apna Dal), एसबीएसपी (SBSP) और निषाद पार्टी (NISHAD Party) की अच्छी-खासी पकड़ है. चुनाव के इन दो चरणों में अनुप्रिया पटेल, ओमप्रकाश राजभर और संजय निषाद की अपने सजातीय वोटों पर पकड़ पता चलेगी. इन नेताओं के सजातीय वोटर कई सीटों पर निर्णायक भूमिका में हैं.

PM Modi, CM Yogi and Others NDA Leader PM Modi, CM Yogi and Others NDA Leader

लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) में अंतिम दौर में होने वाले दो चरणों में बीजेपी और उसके सहयोगियों के बीच दोस्ती का 'इम्तिहान' भी होगा. पूर्वांचल में इन सीटों पर एनडीए गठबंधन की सहयोगी अपना दल, एसबीएसपी और निषाद पार्टी के नेताओं के प्रभाव की परीक्षा होनी है. साथ ही इन सीटों पर ये भी साबित होगा कि क्षेत्रीय क्षत्रपों की अपने सजातीय वोटों पर कितनी पकड़ है? ये बात इसीलिए अहम है, क्योंकि कई बार बीजेपी के साथ इन दलों के नेताओं के रिश्ते नरम-गरम भी रहे हैं. लेकिन जाति विशेष में प्रभाव रखने वाले इन दलों को भी उन्हीं क्षेत्रों में सीटें दी गई हैं.

सहयोगी दलों की परीक्षा
लोकसभा चुनाव के अंतिम 2 फेज उत्तर प्रदेश में बीजेपी के लिये 'दोस्ती के इम्तिहान' के साथ ही अपने सहयोगियों की शक्ति की पहचान करने के लिहाज से भी अहम है. साल 2014 से एनडीए गठबंधन के भरोसेमंद साथी अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल हों या अपने बयानों से सुर्ख़ियों में रहने वाले ओम प्रकाश राजभर हों या संजय निषाद जैसे सहयोगी या फिर पार्टी में दोबारा लौटे और पहली परीक्षा में फेल होने पर भी मंत्री बनाए गए दारा सिंह चौहान हों, सबकी परीक्षा छठे और सातवें दौर में ही होनी है.

लोकसभा चुनाव के अंतिम 2 फेज में यूपी में इलाहाबाद, फूलपुर, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, अम्बेडकरनगर , श्रावस्ती, बस्ती, संतकबीरनगर, डुमरियागंज, लालगंज, आज़मगढ़, जौनपुर, मछलीशहर और भदोही में 25 अप्रैल को वोटिंग है. जबकि वाराणसी, ग़ाज़ीपुर, बलिया, चंदौली, राबर्ट्सगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, महाराजगंज, मिर्ज़ापुर, घोसी और सलेमपुर में 1 जून को वोट डाले जाने हैं. इनमें से ज़्यादातर वो सीटें हैं, जिनके नतीजे बीजेपी के अपने सहयोगियों के साथ तालमेल को बताएंगे. साथ ही ये भी पता चलेगा कि ये दल अपने समाज के वोट बीजेपी को ट्रांसफ़र कर पाते हैं या नहीं.

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कुर्मी वोटर तय करेंगे अनुप्रिया का प्रभाव
साल 2014 से सहयोगी रहे अपना दल (एस) के साथ बीजेपी के रिश्ते अन्य सहयोगियों के मुकाबले सहज रहे हैं. अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल मंत्री होने के नाते बीजेपी के मंचों पर भी सबसे ज्यादा दिखाई पड़ती हैं. 14 मई को प्रधानमंत्री के नामांकन में एनडीए ने ताकत दिखाई थी. उसमें अनुप्रिया पटेल भी शामिल थीं. जिन सीटों पर मतदान होना है, उनमें करीब 12 सीटों पर कुर्मी मतदाता प्रभावी हैं.

पिछले चुनावों में अगर वोटिंग पैटर्न की बात करें तो कुर्मी वोटरों ने किसी एक साथ नहीं दिया है. विधानसभा चुनाव में सिराथु सीट से यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ चुनाव जीतने वाली अनुप्रिया पटेल की बहन पल्लवी पटेल की जीत इसी ओर संकेत करती है. उधर, कौशाम्बी, मिर्ज़ापुर जैसी सीटों पर कुर्मी बिरादरी ने अपना दल(एस) और बीजेपी को वोट किया था. ऐसे में अनुप्रिया पटेल की अपनी सीट मिर्जापुर के साथ ही अपना दल के खाते में गई दूसरी सीट राबर्ट्सगंज के अलावा फूलपुर, बस्ती, प्रतापगढ़ में भी अनुप्रिया के करिश्मे और कुर्मी वोटरों पर प्रभाव की परीक्षा है.

राजभर-निषाद की भी परीक्षा
एनडीए गठबंधन में कभी पास, कभी दूर की स्थिति में रहने वाले एसबीएसपी के ओम् प्रकाश राजभर के अपने सजातीय वोटों पर पकड़ की परीक्षा भी इन दो चरणों में होगी. राजभर मतदाता घोसी, लालगंज (सु), आजमगढ़, गाजीपुर में निर्णायक हैं. तमाम अंतर्विरोध और लंबे इंतजार के बाद इन्हीं मतों को साधने के लिए बीजेपी ने ओम प्रकाश राजभर को मंत्री बनाया और भारी भरकम विभाग भी दिया है. इसी के तहत एसबीएसपी ने घोसी से ओम प्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर को प्रत्याशी बनाया है.

हालांकि समाजवादी पार्टी के राजीव राय की मज़बूत स्थिति को देखते हुए कहा जा रहा है कि इस सीट पर राजभर को चुनौती मिल रही है. पिछले दिनों राजभर-बीजेपी की 'दोस्ती' का संदेश देने के लिए डिप्टी सीएम ने अरविंद राजभर को बीजेपी के कार्यकर्ताओं के सामने नतमस्तक कर दिया था. लेकिन राजभर के कंधों पर दूसरे जिलों में भी राजभर वोटों को साधने की जिम्मेदारी है. साथ ही इस बात की परीक्षा भी है कि एनडीए गठबंधन का सहयोगी होने के नाते एसबीएसपी ने क्या योगदान किया?

बीजेपी के सहयोगी और योगी सरकार में मंत्री निषाद पार्टी के प्रमुख डॉ. संजय निषाद के बेटे को BJP अपने ही सिंबल पर संतकबीरनगर से चुनाव लड़ा रही है. निषाद वोटों को देखते हुए ही बीजेपी विधानसभा में निषाद पार्टी के लिए सीट छोड़ती रही है. जातियों में बंटे इस चुनाव में अब संजय निषाद का इम्तिहान होगा कि किस तरह से वो निषाद मतों को अपने दोस्त बीजेपी के पक्ष में करते हैं, इसकी भी परख होगी.

पूर्वांचल में नोनिया समाज के मतदाताओं की संख्या 3% से अधिक है. जिसे देखते हुए बीजेपी ने पार्टी से बाहर गए और फिर वापस आए दारा सिंह चौहान को चुनाव हारने के बाद भी मंत्री बनाया है. बीजेपी के इस फैसले की भी परीक्षा होनी है. फिलहाल गठबंधन की सीटों पर वोटों को साधने के लिए और दोस्ती को मज़बूत करने के लिए प्रधानमंत्री की जनसभा इस सीटों पर होने वाली है.

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