लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) में 5वें फेज की वोटिंग हो चुकी है. उत्तर प्रदेश में 5वें चरण में किस पार्टी का पलड़ा भारी है? क्या अवध में बीजेपी मुश्किल में घिर गई है? क्या राम मंदिर पर जाति का समीकरण भारी पड़ गया है? क्या दलितों और ओबीसी ने BJP को झटका दे दिया है? क्या रोजगार और संविधान बदलने के मुद्दे ने बीजेपी को बैकफुट पर ला दिया है या बीजेपी उम्मीदवारों के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी बीजेपी को दिन में तारे दिखा रही है?
इन तमाम सवालों के जवाब बीजेपी के रणनीतिकारों के पास नहीं है. बीजेपी के बड़े-बड़े नेता भी सोच में पड़ गए हैं, क्योंकि उन्हें भी नहीं मालूम है कि पांचवें चरण के चुनाव में ऐसा क्या हो गया कि सभी सीटों पर चुनाव कांटे के मुकाबले में तब्दील हो गया है. बीजेपी की कई सीटें तो बुरी तरह से फंस गई है.
रायबरेली और लखनऊ में क्या है स्थिति-
सियासी जानकारों की माने तो रायबरेली और लखनऊ दो ऐसी सीट है, जो कांग्रेस और बीजेपी के लिए सुरक्षित कही जा रही है यानी राहुल गांधी और राजनाथ सिंह के चुनाव को सियासत और चुनाव पर नजर रखने वाले लोग कमोबेश जीता हुआ मान रहे हैं, जबकि अयोध्या जैसी सीट भी बीजेपी के लिए फंस गई है.
गांधी परिवार ने अमेठी और रायबरेली दो सीटों पर अपना पूरा जोर लगाया है. माना जा रहा है कि रायबरेली कांग्रेस के खाते में जा सकती है, जबकि अमेठी में गांधी परिवार के नहीं लड़ने के बावजूद ये सीट कड़े मुकाबले में आ गई है, क्योंकि प्रियंका गांधी ने इसे गांधी परिवार की प्रतिष्ठा की सीट बना दी थी.
अयोध्या पर सस्पेंस-
अयोध्या सीट पर इस बार अखिलेश यादव ने नया प्रयोग किया है और सामान्य सीट होने के बावजूद अखिलेश यादव ने अयोध्या की सबसे बड़ी दलित आबादी रखने वाले पासी बिरादरी से अपने सबसे मजबूत पासी चेहरे को उम्मीदवार बना दिया है. अवधेश पासी छह बार के विधायक, मंत्री और समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से रहे हैं. अवधेश पासी तादाद के लिहाज से अयोध्या की सबसे बड़ी जाति पासी बिरादरी से आते हैं. बीजेपी ने यहां लल्लू सिंह को पर दांव लगाया है. लल्लू सिंह 2 बार से सांसद हैं.
यह वही लल्लू सिंह हैं, जिन्होंने पूरे विपक्ष को संविधान बदलने का मुद्दा थमा दिया था. इन्होंने ही कहा था कि 400 सीट इसलिए चाहिए, क्योंकि मोदी सरकार को संविधान बदलना है. समाजवादी पार्टी से दलित चेहरा आने के बाद एक नारा चल पड़ा है- अयोध्या में ना मथुरा, ना काशी, सिर्फ अवधेश पासी. माना जा रहा है कि दलित उम्मीदवार के पीछे ना सिर्फ दलित जातियां, बल्कि कुर्मी जैसी ओबीसी जातियां भी गोलबंद दिखाई दी हैं. कहा जा रहा है कि राम मंदिर बनने के बावजूद अयोध्या की सीट पर लड़ाई बेहद कांटे की हो गई है. बीजेपी और समाजवादी पार्टी में कौन जीतेगा? यह कहना मुश्किल हो गया है.
कौशांबी की लड़ाई कठिन-
कौशांबी की लड़ाई और भी कठिन है. कौशांबी से बीजेपी ने विनोद सोनकर को उतारा है, जो दलित बिरादरी से आते हैं. उनके खिलाफ समाजवादी पार्टी ने अपने दूसरे सबसे बड़े पासी चेहरे इंद्रजीत सरोज के बेटे पुष्पेंद्र सरोज को मैदान में उतारा है. विनोद सोनकर के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी काफी ज्यादा है, ऊपर से रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भईया ने भी विनोद सोनकर को समर्थन देने से मना कर दिया है. विनोद सोनकर के कई ऐसे वीडियो भी वायरल हुए हैं, जिससे कई जातियां विनोद सोनकर से खफा दिखाई दीं. वोटिंग के दौरान भी लोगों का गुस्सा दिखा माना जा रहा है. ऐसे में ये सीट भी फंसी हुई नजर आ रही है.
बांदा में बेहद कड़ा मुकाबला-
बांदा की सीट पर आरके पटेल के खिलाफ जबरदस्त गुस्सा दिखाई दिया था. आरके पटेल बीजेपी से सांसद हैं और ब्राह्मणों के बड़े तबके में उनके खिलाफ नाराजगी थी. ऐसे में बीएसपी ने एक बड़े ब्राह्मण चेहरे को जब मैदान में उतरा तो चर्चा इस बात की चल पड़ी कि बांदा के ब्राह्मणों ने बीजेपी का साथ छोड़कर हाथी की सवारी कर ली है, कई जातियां आरके पटेल से खफा थीं, ऐसे में इस सीट पर भी बेहद कड़ा मुकाबला माना जा रहा है.
बुंदेलखंड और अवध में भी कड़ा मुकाबला-
बाराबंकी में कांग्रेस ने कद्दावर लीडर पीएल पुनिया के बेटे तनुज पुनिया को मैदान में उतारा है. माना जा रहा है कि बीजेपी के लिए सुरक्षित माने जाने वाली ये सीट भी कांटे की लड़ाई में है, क्योंकि यहां मुसलमान, यादव और दलितों के एक बड़े तबके ने कांग्रेस को वोट किया है.
लखनऊ से सटे मोहनलालगंज की सीट हो या फिर बुंदेलखंड की सभी चारों सीटों झांसी, जालौन हमीरपुर और बांदा हो, इन सभी सीटों पर कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है.
अवध इलाके में बीजेपी ने साल 2019 आम चुनाव में 14 में से 13 सीटों पर जीत हासिल की थी. आखिर ऐसा क्या हुआ कि इस बार करीब सभी सीटों पर कांटे का मुकाबला है.
5वें फेज में फंसती दिखाई दी बीजेपी-
दरअसल कई मजबूत जातियां इस चुनाव में बीजेपी छिटककर इंडिया एलायंस की तरफ जाती हुई देखी गई है. खास करके वह दलित बिरादरी, जो बीजेपी का सबसे मजबूत वोट बैंक हुआ करती थी, वह पासी समाज बीजेपी से छिटककर समाजवादी पार्टी की तरफ जाती दिखाई दी है.
समाजवादी पार्टी में पासी समाज के तीन सबसे बड़े चेहरे अवधेश पासी, इंद्रजीत सरोज और आरके चौधरी को टिकट दिया है. इसका असर भी चुनाव में दिखाई दिया और पासी समाज का समर्थन समाजवादी पार्टी को मिलता दिखाई दिया.
ओबीसी की कुर्मी बिरादरी बीजेपी का सबसे सॉलिड वोट बैंक हुआ करता था. उसमें भी समाजवादी पार्टी ने बड़ी सेंध लगा दी है. समाजवादी पार्टी ने कुर्मी बिरादरी से 10 उम्मीदवार उतारे हैं. जिसका असर कई सीटों पर दिखाई दे रहा है.
आकाश आनंद को बीएसपी के प्रचार से हटाने के बाद से मायावती के वोटरों में एक निराशा का भाव दिखाई दे रहा है. पार्टी के इस कदम के बाद बीएसपी का कोर वोटर जाटव का एक बड़ा हिस्सा टूटकर संविधान बचाने के नाम पर इंडिया गठबंधन के साथ जाता दिखाई दे रहा है.
लोकसभा चुनाव के 5वें फेज में बीजेपी को कई वोट बैंक का एकसाथ नुकसान झेलना पड़ रहा है और यही वह वजह है, जिससे ये माना जा रहा है कि अवध में बीजेपी के लिए राह आसान नहीं है.
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