उत्तर प्रदेश में 2022 के चुनाव का आज नतीज़ा आ चुका है. BJP के लिए नाक और प्रतिष्ठा की सीट रही कैराना में बीजेपी हार गई है. जाटलैंड की इस सीट को जिताने और यहाँ से राजनीति के समीकरण को तय करने के लिए देश के गृह मंत्री अमित शाह भी पहुंचे थे. यहाँ से हिन्दू पलायन का मुद्दा भी उठाया गया. उसके बावजूद भी बीजेपी की प्रत्याशी मृगांका सिंह नहीं जीत पाई.
कैराना सीट से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी नाहिद हसन ने जेल में रहते हुए जीत दर्ज की. इस जीत को दिलाने के लिए समाजवादी पार्टी ने कैराना में पूरा दारोमदार विदेश से पढ़ें उनकी बहन इकरा हसन को दे रखा था. नाहिद हसन ने बीजेपी की मृगांका सिंह को 26,000 से ज्यादा वोटों से परास्त किया. इकरा हसन ने आजतक से बातचीत में कहा कि, "कैराना की जनता ने इस बार फिर बीजेपी को जवाब दिया है, कि पलायन कोई मुद्दा नहीं रहा है. इसके लिए बीजेपी के बड़े-बड़े नेताओं ने झूठ फैलाने की कोशिश की है. जीत इस बार सच्चाई की हुई है."
इसके साथ ही इकरा हसन ने आजतक से बातचीत में यह भी कहा कि जिस तरीके से कैराना की जनता ने बीजेपी को जवाब दिया. वैसे में हम यह कह सकते हैं कि प्रदेश के मुख्यमंत्री जो कह रहे थे कि गर्मी- सर्दी और गर्मियों में शिमला का एहसास कराना वह किसी संवैधानिक पद पर रहते हुए व्यक्ति के द्वारा कहा जाना ठीक नहीं होता है. कैराना की जनता ने हमे जीत देकर उल्टा उनको एहसास करा दिया है.
जाटलैंड के कुछ जिलों में क्या जाट-मुस्लिम फैक्टर कामयाब रहा!
रिजल्ट और चुनाव परिणाम के बाद पश्चिमी यूपी के कुछ जिलों में मुस्लिम जाट और किसान कंबिनेशन कामयाब दिखता पड़ रहा है. यही वजह है कि पूरे प्रदेश में प्रचंड जीत हासिल करने वाली बीजेपी को कैराना के नज़दीक शामली जिले की तीनों सीटें गवानी पड़ी. एक वर्ग ऐसा भी है जो ये मानता है कि पहले चरण के चुनाव में आने वाली जाट लैंड की कुछ सीटों पर जाट मुस्लिम फैक्टर कामयाब रहा. क्योंकि शामली, बागपत मुजफ्फरनगर के कई ऐसे इलाके है. जो सीधे-सीधे 27 प्रतिशत मुसलमान और 17 फीसदी जाट वाले फैक्टर का दबदबा रखते हैं. यानी दोनों मिलाकर 44 प्रतिशत वोट हो जाता है और इस 44% वोट का एक अलग मायने ही रहता है शामली के साथ-साथ जो इससे जुड़े हुए दूसरे जिले जैसे मुजफ्फरनगर, यहां पर जाट और मुस्लिम फैक्टर देखने को मिला. जिसका परिणाम यह हुआ कि यहां से 6 विधानसभा सीटों में 4 पर गठबंधन प्रत्याशी की जीत दर्ज हुई तो BJP ने यहाँ 2 सीटों पर अपना परचम लहराया.
2013 में मुजफ्फरनगर के दंगे के बाद जाटलैंड के कई जिलों में भगवा लहराया था. 2017 चुनाव की बात करें तो मुजफ्फरनगर आरएलडी के लिए बड़ा झटका साबित हुआ था. इससे सामाजिक विभाजन पैदा हुआ और रालोद का पारंपरिक जाट वोट BJP में शिफ्ट हो गया. इसके चलते 2014 के लोकसभा चुनाव में रालोद के उस समय प्रमुख रहे अजीत सिंह और उनके बेटे अपनी सीट तक नहीं बचा पाए और चुनाव हार गए. वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में रालोद को मात्र एक सीट से ही संतोष करना पड़ा था. पर इस बार जाट जोकि जो कि परंपरागत तौर पर खेती करने वाले माने जाते हैं वह पुराने जाट और मुस्लिम फैक्टर कुछ ही हद तक सही साधने में कामयाब हुआ तो, पर चुनाव में वह जीत आरएलडी और सपा गठबंधन को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट लैंड में नहीं दिला पाई. हालांकि 2017 में जिस 1 सीट से आरएलडी को समझौता करना पड़ा था उसमें काफी बढ़ोतरी शामली, मुजफ्फरनगर बागपत के साथ-साथ दूसरे जिलों के चुनाव में हुआ है.