दिल्ली विधानसभा चुनावों में अरविंद केजरीवाल ताबड़तोड़ बैटिंग कर रहे हैं. एक तरफ रोज़ाना अलग-अलग इलाकों में लोगों से मिलने का सिलसिला जारी है. दूसरी तरफ केंद्र सरकार को अलग-अलग मुद्दों और खास तौर पर कानून व्यवस्था की हालत पर घेरने का मौका नहीं चूक रहे. इसके साथ ही पार्टी ने 31 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा भी कर दी है. ताज़ातरीन नाम 20 सीटों पर आए हैं. चौंकाने वाली बात ये है कि सभी 20 सीटों पर वो उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ेंगे, जिन्होंने उन सीटों पर आम आदमी पार्टी से 5 साल पहले चुनाव लड़ा था. कुछ सीटों में प्रत्याशियों का फेरबदल है तो ज्यादातर सीटों पर चेहरे पूरी तरह बदल दिए गए.
एंटी-इनकंबेंसी का डर या फिर नई रणनीति-
वो कहते हैं ना कि विरोधी को उसी की चल से मात दी जाती है. उम्मीदवार बदलने की ये रणनीति कुछ ना कुछ नरेंद्र मोदी युग के बीजेपी वाली रणनीति की तरह ही है. बीजेपी ने कई सारे राज्यों में इस प्रयोग का सफल इस्तेमाल किया है कि मौजूदा उम्मीदवारों को बदल कर उनके खिलाफ गुस्से को कम या पूरी तरह खत्म कर दो. आम आदमी पार्टी के कई विधायक चौथी बार चुनाव लड़ेंगे. इसलिए धीरे-धीरे उनके खिलाफ नाराज़गी आम लोगों से लेकर कार्यकर्ताओं में भी साफ तौर पर देखी जा सकती है. आम आदमी पार्टी की पहली लिस्ट जहां बाहर से आए नेताओं को एडजस्ट करने की तरकीब मालूम पड़ रही थी, वहीं दूसरी लिस्ट में केजरीवाल ने विधायकों के खिलाफ लोकल एंटी-इनकंबेंसी को निशाना बनाया है और कोशिश की है कि जिन MLA के खिलाफ रिपोर्ट फेवरेबल नहीं हैं. उनका पत्ता काट दिया जाए. अगर दूसरी तरह से इसे देखें तो ये साफ दिख रहा है कि आम आदमी पार्टी भी ये मान रही है कि दो बार 60 से ऊपर सीटें जीतने के बाद इस बार तो एंटी-इनकंबेंसी का डर उसे भी सता रहा है. अगर ऐसा नहीं होता, तो इतने थोक स्तर पर उम्मीदवारों की फेरबदल नहीं होती.
मनीष सिसोदिया को जंगपुरा भेजने का मतलब क्या?
मनीष सिसोदिया आम आदमी पार्टी के बड़े नेताओं में शुमार हैं. पिछली बार शुरुआती कई राउंड में पीछे चलने के बाद मनीष किसी तरह लगभग 3 हजार वोटों से पटपड़गंज की सीट निकाल पाए थे. पटपड़गंज की डेमोग्राफी ऐसी है कि वहां उत्तराखंड और पूर्वांचली वोटरों की तादाद सबसे अधिक है. बीजेपी उसी रवि नेगी को यहां से उम्मीदवार बना सकती है, जिसने पिछले चुनाव में सिसोदिया के लिए राह मुश्किल कर दी थी. इसलिए इस बार अवध ओझा जैसे पूर्वांचली को वहां से मैदान में लाकर बीजेपी के गणित को गड़बड़ाने की है. जंगपुरा सीट मनीष सिसोदिया के लिए इसलिए अनुकूल मानी जा रही है, क्योंकि एक तरफ निजामुद्दीन बस्ती और दरियागंज जैसे अल्पसंख्यक बहुल इलाके हैं, वहीं भोगल जैसे इलाके सिख बहुल हैं। वहीं सराय काले खां और किलोकरी जैसे गांव भी हैं. इस तरह की मिक्स्ड आबादी में मनीष सिसोदिया इस सीट को सुरक्षित मान रहे हैं.
और कितने होंगे बदलाव, बाकी नामों का ऐलान कब-
अब तक आम आदमी पार्टी लगभग 40 प्रतिशत से अधिक प्रत्याशियों की घोषणा कर चुकी है. वो भी तब जबकि अभी चुनावों की घोषणा में लगभग 1 महीने का वक्त बचा है. ऐसे में इन फटाफट ऐलानों के पीछे एक बड़ी वज़ह ये भी है कि नए चेहरों को तैयारी का मौका ज़्यादा मिले. साथ ही जहां मौजूदा विधायकों के टिकट काटे गए हैं, उनकी बगावत पर या तो बातचीत करके रोक लगा दी जाए या फिर वो खिलाफ हों भी तो चुनाव घोषणा से पहले उनकी नाराज़गी का काउंटर ढूंढने का पूरा वक्त पार्टी और उम्मीदवारों के पास हो. इसलिए आम आदमी पार्टी सूत्रों की मानें तो पहले उन सीटों पर नाम तय किए गए, जहां बदलाव करना ज़रूरी था और ना करने की हालत में नुकसान होने की आशंका थी. यानि कड़वा घूंट पहले पीने का फैसला लिया गया। पार्टी में अंदरखाने ये राय है कि अब जो 39 सीटें बचीं हैं, उनमें बड़े स्तर पर बदलाव शायद ही हो और वहां स्टेटस को यानि यथा स्थिति बहाल रखी जाए. लेकिन इसका मतलब ये भी है कि ऐसी सीटों पर आम आदमी पार्टी उम्मीदवारों के नाम का ऐलान करने की जल्दी भी नहीं करेगी और कोशिश ये की जाएगी कि विरोधी अपने पत्ते पहले खोलें.
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