
दिल्ली में सभी पार्टियां जमकर प्रचार (Delhi Elections 2025) कर रही हैं. इस बार कांग्रेस भी अकेले चुनाव में दम भर रही है. कांग्रेस के पास दिल्ली (Delhi Congress) में कोई बड़ा चेहरा नहीं है. कांग्रेस दिल्ली में खोई हुई जमीन को वापस पाने की तलाश में है.
कभी दिल्ली में कांग्रेस का एकछत्र राज हुआ करता था. कांग्रेस ने इसी दिल्ली में लगातार तीन विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Election) जीते. तब कांग्रेस के पास दिल्ली में एक ताकतवर महिला का चेहरा था. शीला दीक्षित (Sheila Dixit) कांग्रेस की एक बड़ी नेता थीं.
शीला दीक्षित के दिल्ली में चुनाव लड़ने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. शीला दीक्षित एक फोन कॉल की वजह से दिल्ली की राजनीति में आईं. आखिर उस फोन कॉल में क्या था और किसका कॉल था? आइए दिल्ली का ये सियासी किस्सा जानते हैं.
कांग्रेस की हार
राजीव गांधी की मौत के बाद कांग्रेस की कमान नरसिम्हा राव (P. V. Narasimha Rao) के पास चली जाती है. इस दौरान सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) राजनीति से दूर रहीं. इस दौरान शीला दीक्षित सोनिया गांधी से मिलने भी जाती थीं. सोनिया गांधी राजीव गांधी फाउंडेशन का काम में लगी हुई थीं.
1996 के लोकसभा चुनाव में शीला दीक्षित उन्नाव से चुनाव लड़ी. उस चुनाव में शीला दीक्षित और कांग्रेस दोनों को हार का सामना करना पड़ा. 1996 के चुनाव में कांग्रेस की सिर्फ 122 सीटें आईं. केन्द्र में यूनाइटेड फ्रंट वाली सरकार बनी.
सोनिया गांधी की एंट्री
1997 में सोनिया गांधी ने राजनीति में आने का मन बना लिया. कलकत्ता में कांग्रेस के पूर्ण सत्र में सोनिया गांधी ने कांग्रेस की सदस्यता ले ली. धीरे-धीरे सीताराम केसरी (Sitaram Kesri) की कांग्रेस सोनिया गांधी की कांग्रेस में शिफ्ट हो गई.
दो साल में केन्द्र सरकार की हालत डामाडोल रही. पहले अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) 16 दिन के लिए प्रधानमंत्री बने. फिर देवगौड़ा और इन्द्र कुमार गुजराल ने प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली. आखिर में साल 1998 में देश में लोकसभा चुनाव की घोषणा हो गई.
एक फोन कॉल
लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी कांग्रेस की स्टार प्रचारक बनीं. 1998 में ही एक रोज आधी रात को शीला दीक्षित को एक फोन कॉल आया. फोन की दूसरी तरफ सोनिया गांधी थीं. सोनिया गांधी ने शीला दीक्षित को लोकसभा चुनाव में पूर्वी दिल्ली से चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया.
शीला दीक्षित अपने ऑटोबायोग्राफी माई सिटीजन माई लाइफ में लिखती हैं- सोनिया गांधी के प्रस्ताव में मैं धीरे-से बुदबुदाई, मैं पूर्वी दिल्ली को अच्छे से नहीं जानती. उसके बाद शीला दीक्षित ने कहा, मुझे आपका प्रस्ताव स्वीकार है.
शीला की हार
शीला दीक्षित ने आखिरी समय पर नामांकन किया. प्रचार के लिए शीला दीक्षित को दो हफ्ते का ही समय मिला. शीला दीक्षित अपनी किताब में बताती हैं कि वो चुनाव में विरोधी से तो लड़ ही रही थीं. इसके अलावा संगठन के नेताओं से भी जूझना पड़ रहा था.
जब नतीजे आए तो शीला दीक्षित को हार का सामना करना पड़ा. शीला दीक्षित चुनाव में 45 हजार के अंतर से हार गईं. केन्द्र में भी कांग्रेस ज्यादा सीटें नहीं जीत पाई. केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में सरकार बनी. शीला दीक्षित दिल्ली में पहला चुनाव तो हार गईं लेकिन कुछ महीनों के बाद शीला दीक्षित को दिल्ली कांग्रेस की कमान सौंपी गई.