
Delhi Assembly Election: चुनाव आयोग (Election Commission) ने दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 की तारीखों का ऐलान कर दिया है. इस बार आम आदमी पार्टी (AAP), भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस (Congress) चुनावी मैदान में जोर-शोर से ताल ठोक रही हैं.
तीनों पार्टियां अपनी-अपनी जीत का दावा कर रही हैं. हालांकि इनमें त्रिकोणीय मुकाबले होने के आसार हैं. आइए जानते हैं 2025 के इस चुनाव में प्रत्येक पार्टी के SWOT विश्लेषण यानी ताकत, कमजोरियां, अवसर और खतरों के बारे में.
AAP का SWOT विश्लेषण
दिल्ली विधानसभा चुनावों की तैयारियों में जुटी आम आदमी पार्टी (आप) के सामने दिल्ली में जीत की हैट्रिक बनाने की कठिन चुनौती है.
ताकत
अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में आप के पास एक महत्वपूर्ण ताकत है. निस्संदेह दिल्ली में सबसे प्रमुख राजनीतिक हस्ती के तौर पर केजरीवाल ने एक दशक तक सत्ता पर पकड़ बनाए रखी है. इसका मुख्य कारण बिजली, पानी और बस सब्सिडी जैसी लोकप्रिय योजनाएं हैं, जो मतदाताओं को अच्छी तरह से प्रभावित करती हैं. इन कदमों ने शहरी आबादी के साथ आप के रिश्ते को निस्संदेह काफी मजबूत किया है, जिससे इसकी सत्ता पर पकड़ काफी मजबूत हुई है.
कमजोरियां
हालांकि आप पार्टी कुछ कमजोरियों से जूझ रही है. भ्रष्टाचार के आरोपों ने इसके नेतृत्व पर सवाल खड़ा किया है. खास तौर पर आबकारी नीति के मामले में पार्टी के नेताओं को लगातार आक्षेप झेलने पड़े हैं. विधायकों के खिलाफ नाराजगी के कारण स्थानीय असंतोष भी बढ़ गया है. इसकी वजह से उम्मीदवारों के चयन में बड़े पैमाने पर बदलाव की जरूरत पड़ी है. यमुना की सफाई, पर्याप्त जल आपूर्ति सुनिश्चित करने और स्वच्छता और बुनियादी ढांचे में सुधार जैसे कई महत्वपूर्ण वादों को पूरा करने में आप की विफलता ने इसकी उपलब्धियों को और धुंधला कर दिया है. इसके अलावा शहरी और ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े निवेश में उल्लेखनीय कमी है, जो लोगों में नाराजगी का विषय बना हुआ है.
अवसर
इन चुनौतियों के बावजूद AAP के पास महत्वपूर्ण अवसर हैं. विपक्षी कांग्रेस और भाजपा के लोकल नेतृत्व में कमजोरी के कारण आप के पास लगातार तीसरी बार सत्ता में आने का एक मजबूत रास्ता है. यदि जीत हासिल होती है तो ऐसी जीत से न केवल एक मजबूत क्षेत्रीय ताकत के रूप में उसकी स्थिति मजबूत होगी, बल्कि राष्ट्रीय पटल पर उभरते विपक्ष के रूप में उसकी स्थिति भी मजबूत होगी. लोकसभा चुनावों में बीजेपी की दिल्ली में लगातार जीत के बावजूद विधानसभा चुनावों में बीजेपी को सत्ता से दूर रखने में आप कामयाब रही है.
खतरा
फिर भी, AAP के लिए खतरे बहुत बड़े हैं. भ्रष्टाचार के आरोप पार्टी से ऐसे चिपक गए हैं, जो आम आदमी पार्टी की भ्रष्टाचार विरोधी विश्वसनीयता को कम कर सकता है, क्योंकि पार्टी की शुरुआत ही भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से हुई थी. इसके अलावा मुख्यमंत्री के आवास से संबंधित कथित फिजूलखर्ची जैसे विवाद इसकी छवि के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं. यदि कांग्रेस और भाजपा केजरीवाल की ईमानदार छवि को चुनौती देने में सफल हो जाती है तो यह राष्ट्रीय राजनीति में उनके प्रभाव को काफी हद तक कम कर सकता है.
भाजपा का SWOT विश्लेषण
भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय राजधानी में अपना गढ़ वापस पाने के लिए तगड़ी रणनीति बना रही है. SWOT विश्लेषण से दिल्ली की राजनीति में अपना प्रभुत्व फिर से हासिल करने की उनकी संभावित यात्रा के बारे में जानकारी मिलती है.
ताकत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के मजबूत नेतृत्व में भाजपा चुनाव जीतने वाली एक मजबूत मशीन बन गई है. पिछले लोकसभा चुनावों में चुनौतियों का सामना करने के बावजूद पार्टी ने जुझारूपन दिखाया और हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे राज्य चुनावों में महत्वपूर्ण वापसी की. दिल्ली में भी इसी रणनीति को दोहराने की योजना बनाते हुए भाजपा के पास एक बड़ा नेतृत्व कैडर है, जो हाई-वोल्टेज अभियानों को लगातार आगे बढ़ता है. विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों का चुनावी साथ और संघ परिवार से मजबूत समर्थन की जुगलबंदी उनके आधार को और मजबूत करते हैं.
कमजोरियां
यदि पिछले सालों की बात करें तो भाजपा ने 25 वर्षों से अधिक समय तक दिल्ली में खुद को एक स्थानीय विकल्प के रूप में स्थापित करने के लिए संघर्ष किया है. इसके पीछे एक महत्वपूर्ण कारण स्थानीय नेतृत्व में मजबूती की कमी है. इसके कारण आंतरिक गुटबाजी होती है. भाजपा को अरविंद केजरीवाल की आक्रामक और करिश्माई अभियान से जुड़ी रणनीतियों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करना भी टेढ़ी खीर लगता है, जो आम आदमी पार्टी को विधानसभा चुनाव में फायदा पहुंचता है.
अवसर
हरियाणा और महाराष्ट्र में हाल ही में मिली अप्रत्याशित जीत ने दिल्ली में AAP जैसे चुनाव में मजबूत प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ पिछले हार से आगे बढ़कर जीत हासिल करने का आत्मविश्वास जगाया है. भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण केजरीवाल की पार्टी पर दबाव बढ़ रहा है और कांग्रेस के थोड़ा मजबूत होने से AAP के वोट बैंक में विभाजन की संभावना है, इसलिए भाजपा को दिल्ली में निर्णायक जीत हासिल करने का मौका दिख रहा है. इस जीत से 1993 की जीत की बाद चला आ रहा 32 साल का सूखा खत्म होगा, जो एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मील का पत्थर साबित होगा.
खतरा
यदि भाजपा इस बार भी जीत नहीं पाती है तो दिल्ली में उसकी स्थिति काफी कमजोर हो सकती है. देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी की छवि को भी नुकसान पहुंच सकता है. इस तरह के नतीजों से राज्य स्तर के कई अहम चेहरे गुमनामी में खो सकते हैं. साथ ही सीएम चेहरे को आगे बढ़ाए बिना पीएम मोदी के प्रभाव पर निर्भर रहने की केंद्रीय नेतृत्व की रणनीति को भी झटका लगेगा.
कांग्रेस SWOT विश्लेषण
कांग्रेस इस चुनाव में खुद को एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पाती है. इसकी ताकत, कमजोरियां, अवसर और खतरों का विश्लेषण करने पर पार्टी के लिए एक मिश्रित तस्वीर सामने आती है.
ताकत
हाल ही में मिली असफलताओं के बावजूद कांग्रेस में अभी भी कई प्रमुख नेता हैं, जिनमें से कई किसी दौर में काफी प्रभावशाली हुआ करते थे और जिनकी जन-सम्पर्क क्षमता बहुत ज़्यादा थी. पार्टी ने कई वर्गों में खास तौर पर मुसलमानों और दलितों के बीच फिर से अपनी पकड़ बनानी शुरू कर दी है. इसका श्रेय कुछ हद तक राहुल गांधी जैसे नेताओं को दिया जा सकता है, जिन्होंने संविधान और अल्पसंख्यक मुद्दों को आक्रामक तरीके से आगे बढ़ाया है.
कमजोरियां
पार्टी का संगठनात्मक ढांचा काफी हद तक बिखर चुका है. 15 साल तक दिल्ली पर राज करने के बाद कांग्रेस के पास पहले की तरह अपना स्थानीय नेतृत्व नहीं है. आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी जैसी प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में कांग्रेस चुनावी मोमेंटम पैदा करने के लिए संघर्ष करती नजर आती है. अधिकांश क्षेत्रों में इसकी उपस्थिति नगण्य है.
अवसर
पिछले विधानसभा चुनावों में 2020 में 5% से कम वोट और 2015 और 2020 में शून्य सीटें मिलने के कारण कांग्रेस के पास खोने के लिए बहुत कुछ नहीं है और पाने के लिए बहुत कुछ है. दिल्ली में AAP सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी भावनाएं और राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के प्रति असंतोष को साथ मिलाकर कांग्रेस के पास अपनी खोई जमीन हासिल करने का एक बड़ा मौका है. अल्पसंख्यक और दलित मतदाताओं को रणनीतिक रूप से ध्यान में रखकर कांग्रेस इन वर्गों को अपने समर्थन का आधार फिर से बना सकती है.
खतरा
फिर भी चुनौतियां बड़ी हैं. दिल्ली नगर निगम (एमसीडी), विधानसभा और लोकसभा चुनावों सहित हाल के चुनावों में पार्टी लगभग खत्म हो गई है. आखिरी सफलता 2009 के लोकसभा चुनावों में मिली थी. इसलिए एक और बड़ी हार पार्टी को बहुत नीचे ले जा सकती है, जिससे जल्द ही पार्टी संगठन को फिर से जीवंत करना लगभग असंभव हो जाएगा.