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पूर्वांचल के इन जिलों में क्यों नहीं चला BJP का जादू, जानिए

पूर्वांचल की कई सीटों पर समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन पिछली बार की तुलना में काफी अच्छा रहा और करीब ढाई गुनी सीटों पर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों ने जीत का स्वाद चखा.

सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर

यूपी विधानसभा चुनाव के रिजल्ट आ चुके हैं और एक बार फिर उत्तर प्रदेश में बीजेपी की वापसी हो गयी है. लेकिन यूपी के पूर्वांचल जिसे बीजेपी का गढ़ माना जाता रहा है, वहां इस बार अलग सियासी हवा बहती नजर आई. यहां पर समाजवादी पार्टी के गठबंधन ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी है.  एक तरह जहां पूर्वांचल की सबसे चर्चित सीट मानी जाने वाली वाराणसी की 8 विधानसभा सीटों पर बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच कांटे की टक्‍कर देखने को मिली, तो वहीं वाराणासी के पड़ोसी जिले आजमगढ़ और गाजीपुर  में बीजेपी का परफॉर्मेंस खराब  नजर आया. आजमगढ़, अंबेडकरनगर, मऊ, और गाजीपुर में सपा ने अपनी सियासी पैठ मजबूत की तो वहीं बीजेपी की सियासी जमीन पुर्वांचल के इन ईलाकों से खिसकती नजर आई.  आईये नजर डालते हैं उन वजहों पर जिन्हें  बीजेपी को इन सीटों पर हार की वजहें माना जा रहा है. 

मुस्लिम मतों का एकजुट ध्रुवीकरण, यादव मतों की वजह से पिछड़ी बीजेपी
 
राजनीतिक जानकारों की मानें तो पूर्वांचल में सपा को कामयाबी मिलने की वजह मुस्लिम मतों का एकजुट ध्रुवीकरण, और यादव मतों का साथ आना है. आजमगढ़ जिले की जातीय गणित की बात करें यहां 24 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता, 26 प्रतिशत यादव और 20 प्रतिशत दलित वोटर हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में जब PM मोदी और BJP की लहर पीक पर थी तब भी यहां से बीजेपी को सिर्फ एक सीट मिल सकी थी. बाकी पांच सीटें सपा के खाते में और 4 सीटें बहुजन समाज पार्टी (BSP) के हिस्से आई थीं.

बीजेपी के खिलाफ गया जातीय समीकरण

जानकार बताते हैं कि 2017 में भी इस इलाके में बीजेपी का सुभासपा यानी ओमप्रकाश राजभर की पार्टी से गठबंधन था.  अगर 2017 के नतीजों को देखें तो सुभासपा की वजह से गाजीपुर में बीजेपी को सीट मिली.  लेकिन इस दफा उनके हटने के बाद बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा है.  इस दफा के चुनाव में बीजेपी और सपा गठबंधन के बीच कांटे की टक्कर रही. जातीय समीकरणों को ध्यान में रखकर लोगों ने मतदान भी किया और जातीय वर्ग को साधने में बीजेपी कहीं ना कहीं नाकाम रही.  अगर जहूराबाद की बात करें तो सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर को एक लाख से ज्यादा मत मिले जबकि उनके प्रतिद्वंदी बीजेपी के कालीचरण राजभर को 68 हजार वोट हासिल हुआ और हार जीत का अंतर 30 हजार मतों से ज्यादा था. 

पूर्वांचल में पुराने साथियों का छूटना

2017 के विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल फतह करने के लिए बीजेपी  ने एक नए फॉर्मूले को अपनाया.  बीजेपी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में उन छोटे राजनीतिक दलों के साथ में गठबंधन किया, जिनका अपना जातिगत वोटबैंक है.  इसी फॉर्मूले का फायदा बीजेपी को मिला और बीजेपी को 2017 के विधानसभा चुनाव में 28 जिलों की 170 सीटों में से 115 सीटें मिली थीं. यह नंबर सच में करिश्माई थे.  लेकिन, इस आंकड़े को अकेले बीजेपी ने अपने दम पर हासिल नहीं किया था.  उसकी मदद इन छोटे राजनीतिक दलों से जुड़े उनके जातिगत वोटबैंक ने की थी. इस चुनाव में जातिगत वोटबैंक वाले -राजनीतिक दलों का साथ छूट जाना भी पूर्वांचल में बीजेपी की हार का कारण रहा है. 

पूर्वांचल के कुछ जिलों में सपा-बसपा की पकड़ मजबूत

दूसरी तरफ पूर्वांचल के कुछ जिलों में समाजवादी पार्टी (SP) का भी अच्छा खासा असर है .देखा जाए तो  पूर्वांचल ही यूपी की छोटी पार्टियों की भी प्रयोगशाला है और इनमें अपना दल (एस), निषाद पार्टी, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और जनवादी पार्टी शामिल हैं.