लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) की घोषणा से पहले इलेक्टोरल बॉन्ड (electoral bonds) की वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को अहम फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना (electoral bonds scheme) को असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि नागरिकों को यह जानने का अधिकार है कि सरकार के पास पैसा कहां से आता है और कहां जाता है.
कोर्ट ने माना कि गुमनाम चुनावी बॉन्ड सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन हैं. इतना ही नहीं चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड के अलावा भी काले धन को रोकने के दूसरे तरीके हैं. राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले फंड के बारे में मतदाताओं को जानने का अधिकार है.
इलेक्टोरल बॉन्ड की गोपनीयता को लेकर कही ये बात
सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने वाले बैंक SBI से इसपर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने को कहा है. कोर्ट ने कहा- "इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम (Electoral bonds scheme) अनुच्छेद 19(1)(a) का उल्लंघन है और असंवैधानिक (unconstitutional) है. कंपनी अधिनियम (Companies Act) में संशोधन असंवैधानिक है. इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने वाले बैंक को इसपर तत्काल रोक लगानी होगी."
कोर्ट की संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड की गोपनीयता जानने के अधिकार के खिलाफ है. राजनीतिक दलों को फंडिंग के बारे में जानकारी होने से लोगों के लिए अपना मताधिकार इस्तेमाल करने में स्पष्टता मिलती है. काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सूचना के अधिकार का उल्लंघन करना उचित नहीं है. ऐसे में संविधान इस मामले में आंखें बंद नहीं रख सकता है, केवल इस आधार पर कि इसका गलत उपयोग हो सकता है.
दरअसल, लोकसभा चुनावों से पहले ये फैसला काफी अहम है. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने पिछले साल 31 अक्टूबर से नियमित सुनवाई शुरू की थी. कोर्ट ने तीन दिन लगातार इस मामले पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (Chief Justice of India DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने की थी. इस संविधान पीठ में सीजेआई के साथ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा थे.
सुनवाई के दौरान दी दलीलें
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ओर से दलीलें दी थीं. कोर्ट ने 31 अक्टूबर से दो नवंबर तक सभी पक्षों को गंभीरता से सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चुनावी बॉन्ड योजना के साथ एक दिक्कत यह है कि यह चयनात्मक गुमनामी और चयनात्मक गोपनीयता देती है. इसकी जानकारी स्टेट बैंक (State Bank of India) के पास उपलब्ध रहती है और उन तक कानून प्रवर्तन एजेंसियां भी पहुंच सकती हैं.
योजना का मकसद काले धन को खत्म करना
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि इस योजना के साथ ऐसी परेशानियां रहेंगी. अगर यह सभी राजनीतिक दलों को समान अवसर मुहैया नहीं कराएगी. इससे योजना को लेकर अस्पष्टता की स्थिति बनी रहेगी. कोर्ट ने यह भी कहा कि योजना का मकसद काले धन को समाप्त करने का बताया गया है. कोर्ट ने कहा था कि यह प्रशंसनीय भी है लेकिन सवाल यह भी है कि क्या इससे 100% मकसद पूरा हो रहा है?
2018 में लाई गई थी योजना
इस योजना को सरकार ने दो जनवरी 2018 को अधिसूचित किया था. इसके मुताबिक, चुनावी बॉन्ड को भारत के किसी भी नागरिक या देश में स्थापित इकाई खरीद सकती है. कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बॉन्ड खरीद सकता है. जन प्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत ऐसे राजनीतिक दल चुनावी बॉन्ड स्वीकार करने के पात्र हैं. शर्त बस यही है कि उन्हें लोकसभा या विधानसभा के पिछले चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत वोट मिले हों.
चुनावी बॉन्ड को किसी पात्र राजनीतिक दल द्वारा केवल अधिकृत बैंक के खाते के माध्यम से भुनाया जाएगा. बॉन्ड खरीदने के पखवाड़े भर के भीतर संबंधित पार्टी को उसे अपने रजिस्टर्ड बैंक खाते में जमा करने की अनिवार्यता है. अगर पार्टी इसमें विफल रहती है तो बॉन्ड निरर्थक और निष्प्रभावी यानी रद्द हो जाएगा.
(संजय शर्मा की रिपोर्ट)