विधानसभा चुनाव 2022 का बिगुल बज चुका है. एक तरफ जहां तमाम पार्टियां प्रचार-प्रसार में कोई कसर नहीं छोड़ रहीं, वहीं पहली बार वोट डालने वाली वोटर्स में भी उत्साह है. 14 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनाव में तटीय राज्य गोवा में कुछ अनोखा देखने को मिलेगा. यह राज्य के इतिहास में पहली बार होगा कि मान्यता प्राप्त श्रेणी के तहत ट्रांसजेंडर वोट डालने और अपने संवैधानिक अधिकार का प्रयोग करने में सक्षम होंगे. अधिकारियों द्वारा मान्यता प्राप्त कम से कम नौ ट्रांसजेंडर्स वोट डालेंगे. यह वास्तव में समुदाय के लिए एक ऐतिहासिक पल है.
लेकिन आखिर इस वोटिंग अधिकार का ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए क्या मतलब है? क्या इससे उनकी स्थिति में कोई बदलाव आएगा? क्या इससे समुदाय को पहचान के संकट से उबरने में मदद मिलेगी जोकि एक अनसुलझा मुद्दा बना हुआ है? इन सवालों के जवाब तलाशने के लिए इंडिया टुडे टीवी ने कुछ ट्रांसजेंडरों से मुलाकात की, जिन्हें हाल ही में अपना वोटर आईडी कार्ड मिला है और उनके जीवन और उनकी अपेक्षाओं को समझने की कोशिश की.
मडगांव रेलवे स्टेशन से कुछ किलोमीटर दूर गंदी गलियों में हमें एक ट्रांसजेंडर समूह का घर मिला. एक पुरानी टूटी-फूटी बिल्डिंग में दो कमरों का फ्लैट. ड्राइंग रूम में दो बांस की कुर्सियां और दीवार पर भगवान शिव और पार्वती की फोटो लगी हुई थी. बेड रूम में दो चारपाई और दो आलमारी थी. रसोई में कुछ बर्तन और एक गैस चूल्हा था. कमरा साफ-सुथरा रखा गया था और कहीं भी गंदगी का एक कण नहीं था लेकिन बाहर से दुर्गंध आ रही थी. ये था जरीन, हीना और मोनिका का कमरा.
ट्रांसजेंडर्स को घर देने को तैयार नहीं होते लोग
इस इलाके में घर लेने की वजह पूछने पर ट्रांसजेंडर्स ने बताया, “कोई भी हमें कहीं भी जगह नहीं दे रहा था. उन्हें लगा कि हम खतरनाक लोग हैं और उन पर हमला करेंगे और किराया नहीं देंगे. जहां कुछ लोग सहमत भी हुए तो पड़ोसियों ने यह कहते हुए हंगामा किया कि हम 'छक्का' और यौनकर्मी हैं. लोगों का कहना है कि हम समाज को प्रदूषित करेंगे और उनके बच्चों पर बुरा प्रभाव डालेंगे. हमने समझाने की कोशिश की लेकिन कई महीनों तक सफलता नहीं मिली. आखिरकार मुंबई की एक महिला ने हमें इस जगह पर रहने की इजाजत दी."
भीख के साथ-साथ मिलती है गाली
जरीन, हीना और मोनिका की तिकड़ी सुबह घर से निकल जाती है. मडगांव रेलवे स्टेशन पर भीख मांगते हैं और देर शाम तक ही लौटते हैं. हीना ने बताया, “जब भी कोई ट्रेन स्टेशन पर रुकती है तो हम अंदर जाते हैं और यात्रियों से पैसे मांगते हैं. कुछ लोगों को लगता है कि हमारा आशीर्वाद अच्छा है इसलिए वे हमें पैसे देते हैं, लेकिन कई हमें गाली देते हैं. फिर भी, कई लोग हमें भद्दी बातें कहते हैं और हमें तरह-तरह के नामों से चिढ़ाते हैं.” मोनिका का कहना है कि सबसे बड़ा अफसोस इस बात का है कि लोगों को इस बात की कोई समझ नहीं है कि ट्रांसजेंडर कौन हैं. जरीन ने बताया कि दुकान-मालिकों और स्टॉल मालिकों को यह समझाने में हमें बहुत समय लगा कि हम चोर नहीं हैं.
कमियां कहां हैं?
जिन लोगों ने ट्रांसजेंडर्स के उत्थान और पहचान के लिए काम किया है, उन्हें लगता है कि हमारा सिस्टम समुदाय की बुनियादी जरूरतों को भी समझने में विफल है. जो लोग शर्म या मारपीट के कारण घर से बाहर निकलते हैं, उनके लिए आश्रयगृह या कहीं सिर छुपाने के लिए भी जगह नहीं है.
ट्रांसजेंडर्स के लिए नहीं हैं शेल्टर होम
जुलियाना लोहार गोवा में एक एनजीओ Arz के लिए काम कर रही हैं. वह कहती हैं, “ट्रांसजेंडर्स के लिए आश्रयगृहों की कमी एक बड़ा मुद्दा है. न केवल आश्रयगृह की स्थापना बल्कि उनके लिए सुविधाएं भी महत्वपूर्ण हैं. इन लोगों को शेल्टर होम में जगह देनी चाहिए जहां वे सहज महसूस कर सकें. इसके अलावा उन्हें काउंसिलिंग की जरूरत है." जुलियाना कहती हैं कि ट्रांसजेंडर्स के अंदर बहुत सारा गुस्सा होता है, उनके मुद्दों को हल करने की जरूरत होती है और उन्हें धैर्यपूर्वक सुनने की भी आवश्यकता होती है. उनके लिए ट्रॉमा थेरेपी और कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी की जरूरत होती है. इतना ही नहीं उन्हें एक मेडिकल टीम, काउंसलर, थेरेपिस्ट, सामाजिक कार्यकर्ताओं की जरूरत है, स्त्री रोग विशेषज्ञ की भी जरूरत है.
ट्रांसजेंडर्स को मिली पहचान
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रांसजेंडर समुदाय को ऐसे माहौल की जरूरत है जहां वे सशक्त हों और उन्हें खुद निर्णय लेने का मौका मिले. राज्य को सामाजिक कल्याण योजनाओं के साथ आने की जरूरत है जहां पीड़ितों की देखभाल की जाती है. विशेषज्ञों का कहना है कि एक मॉडल तैयार करने की जरूरत है जहां राज्य को आगे आना होगा. इसे सीएसआर पहल के रूप में नहीं माना जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कि सेक्स वर्कर्स को राशन, आधार कार्ड मुहैया कराया जाए, हमने राज्य सरकार के साथ काम करना शुरू किया और देखा कि ट्रांसजेंडर अपने दस्तावेज कैसे बनवा सकते हैं. इससे ही उन्हें पहचान हासिल करने में मदद मिलती है. वोट देने में सक्षम होने से ज्यादा वोट देने के अधिकार के साथ, ट्रांसजेंडर समुदाय को उनकी पहचान की घोषणा करने वाला एक दस्तावेज मिल रहा है. उन्हें अब राशन कार्ड बनवाने की जरूरत है ताकि वे रियायती दरों पर सुविधा का लाभ उठा सकें.
पहली बार वोट डालेंगे ट्रांसजेंडर्स
दक्षिण गोवा की जिला कलेक्टर रुचिका कटियार ने कहा, “चार-पांच महीने पहले जब हमने चुनाव की तैयारी शुरू की थी, तो हमने महसूस किया कि कोई भी अन्य लिंग के रूप में नामांकित नहीं था. फिर हमने ट्रांसजेंडर्स के लिए काम करने वाले एनजीओ को बुलाया और उनके साथ मीटिंग की और फिर वर्कशॉप की. ट्रांसजेंडर्स ने तब फॉर्म पर हस्ताक्षर किए और उनके आईडी कार्ड के लिए फॉर्म भी भरे गए थे.” उन्होंने कहा कि यह प्रशासन के लिए सौभाग्य की बात है कि हम ट्रांसजेंडर्स को भी शामिल करके इन चुनावों को समावेशी बनाने में सफल रहे हैं.
गोवा में मुख्य निर्वाचन कार्यालय का कहना है कि नौ नामांकन एक अच्छी शुरुआत है और कम से कम सौ मामलों की पहचान की गई है. जल्द ही उचित प्रक्रिया के तहत सभी का नामांकन किया जाएगा. जो लोग आर्थिक रूप से संपन्न होते हैं, उनके पास इतने मुद्दे नहीं होते हैं और परिवार उन्हें स्वीकार करते हैं. पढ़े-लिखे लोगों के पास स्किल होती है, लेकिन गरीबों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में सरकार को समावेशी सामाजिक विकास के साधनों पर ध्यान देने की आवश्यकता है.
(पंकज उपाध्याय की रिपोर्ट)