गुजरात में एक तरफ बीजेपी ने सबसे बड़ी जीत का इतिहास रच दिया तो दूसरी तरफ कांग्रेस ने पार्टी के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी हार का रिकॉर्ड बना दिया. कांग्रेस साल 2022 के चुनाव में सिर्फ 17 सीटों पर जीत दर्ज कर सकी है. गुजरात के चुनावी इतिहास में कांग्रेस ने कभी भी इतनी कम सीटें नहीं जीती है. सूबे में कांग्रेस की सबसे बड़ी हार की कई वजहें हैं. जिसमें पीएम मोदी के कद का कोई नेता कांग्रेस के पास नहीं होना, नेताओं का पार्टी छोड़ने से नहीं रोक पाना और राहुल गांधी का जोरशोर से प्रचार नहीं करना भी शामिल है.
इतिहास की सबसे बड़ी हार की तरफ कांग्रेस-
पीएम मोदी के गढ़ में कांग्रेस को अपने इतिहास की सबसे बड़ी हार मिली है. कांग्रेस सिर्फ 17 सीटें जीत सकी है. इससे पहले कांग्रेस को सबसे कम सीटें साल 1990 के विधानसभा चुनाव में मिली थी. उस चुनाव में कांग्रेस ने 33 सीटों पर जीत दर्ज की थी. इसके बाद से लगातार चुनाव-दर-चुनाव कांग्रेस की सीटें बढ़ती गई. साल 2017 में कांग्रेस ने 77 सीटों पर जीत दर्ज की थी और इस बार कांग्रेस को सत्ता पाने की उम्मीद थी. लेकिन इस बार कांग्रेस को सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा है. इस हार के कई कारण हो सकते हैं. चलिए आपको कुछ कारणों के बार में बताते हैं.
पीएम मोदी के कद का नेता नहीं-
गुजरात में कांग्रेस का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन है. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह कांग्रेस के पास पीएम मोदी के कद का कोई बड़ा नेता नहीं होना है. जिसका नुकसान चुनाव में पार्टी को उठाना पड़ा. पीएम मोदी के कद के सामने कांग्रेस के सारे नेता बौने साबित हुए. पार्टी ने मल्लिकार्जुन खड़गे को प्रचार के लिए भेजा. लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष पीएम मोदी की तरह प्रभावी भाषण, लोगों से कनेक्शन और लोगों में भरोसा कायम करने में नहीं कर पाए. राहुल गांधी, सोनिया गांधी, अशोक गहलोत जैसे बड़े नेता जरूर कांग्रेस के पास हैं. लेकिन इन्होंने गुजरात चुनाव में ज्यादा बड़ी भूमिका नहीं निभाई.
राहुल गांधी की प्रचार से दूरी-
कांग्रेस के दिग्गज नेत राहुल गांधी ने खुद को गुजरात में चुनाव प्रचार से दूर रखा. राहुल गांधी ने प्रचार के नाम पर एक दिन में सिर्फ 2 सभाएं की. इसके बाद से वो भारत जोड़ो यात्रा में व्यस्त रहे. पार्टी का सबसे बड़ा नेता होने के बावजूद प्रचार के लिए समय नहीं दे पाने का खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा. प्रचार में राहुल गांधी के नहीं होने से कांग्रेस के कोर वोटर हतोत्साहित हो गए. चुनाव प्रचार में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष का इंटरेस्ट नहीं लेने से कार्यकर्ताओं को लगने लगा कि पार्टी ने बिना लड़े ही हार मान ली है. सब मिलाकर कहा जा सकता है कि चुनाव में राहुल गांधी की गैर-मौजूदगी से पार्टी को बड़ा नुकसान हुआ.
नेताओं का पार्टी छोड़ने से नहीं रोक पाना-
साल 2017 विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद लगने लगा था कि कांग्रेस अगले चुनाव में बीजेपी को कड़ी टक्कर देगी. लेकिन जब 2022 विधानसभा चुनावों का ऐलान हुआ तो कांग्रेस पार्टी कमजोर नजर आने लगी थी. कांग्रेस के कई नेता पार्टी छोड़कर चले गए. कांग्रेस के बड़े नेता और पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल ने पार्टी का दामन छोड़ दिया और बीजेपी में शामिल हो गए. कांग्रेस के बड़े आदिवासी नेता मोहन्सिन रथवा और हिमांशु व्यास ने भी पार्टी का साथ छोड़ दिया. इस तरह से नेताओं का पार्टी से दूर जाना चुनाव में भारी पड़ा. कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट गया और जब नतीजे आए तो पार्टी को सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा.
प्रचार के दौरान कार्यकर्ताओं में उत्साह नहीं-
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस मैदान में थी. नेता जीत के दावे भी कर रहे थे. लेकिन प्रचार के दौरान कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह नजर नहीं आ रहा था. कांग्रेस एक पार्टी की तरह चुनाव प्रचार में कभी नजर नहीं आई. बड़े नेताओं की प्रचार से दूरी, महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर सरकार को घेर नहीं पाना भी पार्टी के लिए मुसीबत बन गया. पार्टी कार्यकर्ताओं को लगने लगा कि कांग्रेस चुनाव में कहीं नहीं है. ऐसे में कार्यकर्ता हतोत्साहित हो गए और प्रचार में उनकी रूचि कम हो गई. जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा.
मल्लिकार्जुन खड़गे का 'रावण' बयान-
जब चुनाव प्रचार में कांग्रेस पार्टी पिछड़ने लगी तो पार्टी ने अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को कार्यकर्ताओं में जान फूंकने के लिए गुजरात भेजा. लेकिन खड़गे पार्टी कार्यकर्ताओं को उत्साहित तो नहीं कर पाए, लेकिन पार्टी के लिए मुसीबत जरूर खड़ी कर दी. खड़गे ने पीएम मोदी को लेकर रावण वाला बयान दे दिया. जिसके बाद इसपर सियासी घमासान शुरू हो गया. बीजेपी ने पीएम मोदी के अपमान का आरोप कांग्रेस पर लगाया. चुनाव प्रचार में बेरोजगारी और महंगाई के बजाय रावम का बयान मुद्दा बन गया.
AAP की काट नहीं खोज पाई कांग्रेस-
साल 2017 के चुनाव के बाद कांग्रेस विपक्ष की भूमिका में थी. लेकिन इस बार चुनाव में आम आदमी पार्टी एक बड़ी ताकत बनकर उभरी है. कांग्रेस पार्टी AAP के प्रभाव को नहीं रोक पाई. आम आदमी पार्टी ने करीब 13 फीसदी वोट हासिल किए हैं. पार्टी ने कांग्रेस के वोट बैंक मे सीधा सेंध लगाया है. वोट बैंक के बिखराव की वजह से कांग्रेस को सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा है.
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