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Gujarat Elections 2022: पत्रकारिता से लेकर वकालत तक, रिकॉर्ड जीत से लेकर KHAM समीकरण तक के लिए Madhav Singh Solanki की कहानी जानिए

Gujarat Assembly Elections 2022: माधव सिंह सोलंकी 4 बार गुजरात के मुख्यमंत्री रहे. नरेंद्र मोदी के बाद सबसे ज्यादा वक्त तक सूबे का मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड भी सोलंकी के नाम है. साल 1985 विधानसभा चुनाव में सोलंकी की अगुवाई में कांग्रेस ने 149 सीटों पर जीत दर्ज की थी. गुजरात में ये अब तक की किसी एक पार्टी की सबसे बड़ी जीत है.

माधव सिंह सोलंकी (फोटो: इंडिया टुडे) माधव सिंह सोलंकी (फोटो: इंडिया टुडे)
हाइलाइट्स
  • गुजरात के 4 बार मुख्यमंत्री रहे माधव सिंह सोलंकी

  • KHAM समीकरण के लिए जाने जाते हैं सोलंकी

गुजरात में जातीय समीकरणों को साधने वाले राजनीतिज्ञों की बात होगी तो सबसे पहला नाम मावध सिंह सोलंकी का आएगा. सोलंकी ने गुजरात की सियासत में पहली बार नया प्रयोग किया और KHAM समीकरण के जरिए सूबे की राजनीति ही बदल दी. उनके इस प्रयोग की वजह से कांग्रेस को प्रचंड बहुमत मिला. 5 साल तक कांग्रेस ने एकछत्र राज किया. चलिए आपको गुजरात की सियासत के बड़े खिलाड़ी माधव सिंह सोलंकी की कहानी बताते हैं.

पढ़ाई-लिखाई में अव्वल रहे सोलंकी-
माधव सिंह सोलंकी का जन्म 30 जुलाई 1927 को भरूच के पिलुदरा गांव में हुआ था. वो एक साधारण क्षत्रिय परिवार में पैदा हुए थे. उनका परिवार आर्थिक तौर पर कुछ खास समृद्ध नहीं था. उनकी पढ़ाई-लिखाई भी स्थानीय स्तर पर ही हुई. पढ़ाई में वो अव्वल थे. जब सोलंकी बड़े हुए तो इंदुलाल याज्ञनिक के संपर्क में आए. इंदुलाल गुजरात राज्य बनाने के लिए आंदोलन चलाया था. याज्ञनिक सोलंकी की पढ़ाई में रूचि से काफी प्रभावित थे और उनकी मदद से माधव सिंह सोलंकी ने अपनी पढ़ाई पूरी की.

पत्रकारिता के साथ की वकालत-
उन दिनों इंदुलाल याज्ञनिक 'ग्राम विकास' नाम से एक पत्रिका निकालते थे. पढ़ाई पूरी करने के बाद माधव सिंह सोलंकी उस पत्रिका से जुड़ गए और एडिटिंग का काम करने लगे. लेकिन आर्थिक तंगी का भार पत्रिका नहीं झेल पाई और जल्द ही बंद हो गई. इसके बाद सोलंकी बेरोजगार हो गए. सोलंकी को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा. लेकिन जल्द ही इनको गुजरात समाचार में नौकरी मिल गई. लेकिन इससे होने वाली इनकम से परिवार का पेट भरना मुश्किल हो रहा था. इसलिए सोलंकी ने फैसला किया कि वो वकालत की पढ़ाई करेंगे, ताकि परिवार की जरूरतों को पूरा किया जा सके. उन्होंने वकालत की पढ़ाई शुरू कर दी.

सोलंकी की सियासत में इंट्री-
सोलंकी की राजनीति में कोई रूचि नहीं थी. उन दिनों गुजरात भी बॉम्बे प्रेसिडेंसी का हिस्सा था. बॉम्बे प्रेसिडेंसी के कांग्रेस उप मुख्यमंत्री बाबू जशभाई पटेल थे. जशभाई पटेल ने सोलंकी को राजनीति में आने के लिए कहा. लेकिन सोलंकी ने उनको कोई जवाब नहीं दिया. भले ही सोलंकी सियासत में नहीं आना चाहते थे. लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था. साल 1957 में बॉम्बे प्रेसिडेंसी में चुनाव को लेकर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की बैठक चल रही थी. इसमें उम्मीदवारों का चयन होना था. जब उम्मीदवारों के नाम का ऐलान हुआ तो उसमें माधव सिंह सोलंकी का नाम भी था. सोलंकी को उम्मीदवार बनने की जानकारी अखबार से मिली. सोलंकी दक्षिण भोड़साड़ सीट से चुनाव जीत गए. सोलंकी साल 1957 से 1960 तक बॉम्बे प्रेसिडेंसी की विधानसभा के सदस्य रहे.

गुजरात राज्य का गठन और सोलंकी-
गुजरात राज्य का गठन किया गया. साल 1960 में गुजरात राज्य में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए. इसमें सोलंकी की जीत हुई. माधव सिंह सोलंकी साल 1968 तक लगातार विधानसभा के सदस्य रहे. साल 1962 में उनको रेवन्यू मिनिस्टर बनाया गया. इसके बाद भी सोलंकी लगातार मंत्री बनते रहे.

पहली बार CM बने सोलंकी-
माधव सिंह सोलंकी पहली बार 24 दिसंबर 1976 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. लेकिन उनका ये कार्यकाल ज्यादा वक्त तक नहीं रह पाया. 10 अप्रैल 1977 को उनको अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. सोलंकी के मुख्यमंत्री बनने के पीछे अलग ही कहानी है. साल 1977 की शुरुआत में जनता मोर्चा की सरकार थी और बाबू जशभाई पटेल मुख्यमंत्री थे. जशभाई पटेल की सरकार चिमनभाई पटेल के विधायकों के समर्थन से चल रही थी. लेकिन सियासी दांव-पेंच का ऐसा दौर चला कि चिमनभाई पटेल कांग्रेस के साथ आ खड़े हुए और गुजरात में एक बार फिर कांग्रेस की सरकार बनी और उसके मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंकी बनी.

इमरजेंसी के बाद इलेक्शन में कांग्रेस की हार-
इंदिरा गांधी की सरकार देश में आपातकाल खत्म करने का फैसला किया. इसके बाद देश में चुनाव हुए और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने. इसके बाद गुजरात में एक बार फिर सियासी समीकरण बदलने लगे. चिमनभाई पटेल ने एक बार फिर पाला बदला और 10 अप्रैल 1977 को माधव सिंह सोलंकी की सरकार गिर गई. इस बार गुजरात में जनता दल की सरकार बनी. बाबू जशभाई पटेल एक बार फिर मुख्यमंत्री बने. जशभाई पटेल ने 11 अप्रैल को सीएम पद की शपथ ली और 17 फरवरी 1980 तक इस पद पर बने रहे.

सोलंकी का KHAM समीकरण-
साल 1980 में गुजरात में विधानसभा चुनाव हुए. कांग्रेस को जिताने की जिम्मेदारी माधव सिंह सोलंकी पर थी. इस बार सोलंकी ने नया सियासी दांव चला. सोलंकी इस बार KHAM समीकरण लेकर चुनाव रण में उतरे. KHAM एक तरह की सियासी जातीय गोलबंदी थी. इस समीकरण में क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुसलमान वोटर्स को गोलबंद करना था. जिसमें सोलंकी कामयाब भी हुए और जब चुनावी नतीजे आए तो सूबे में कांग्रेस ने सबको धूल चटा दी थी. कांग्रेस को 141 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. जबकि विरोधी दल को सिर्फ 8 सीटें मिली थीं. इस जीत का सेहरा माधव सिंह सोलंकी के सिर बंधा. 

फिर सीएम बने सोलंकी-
सूबे में प्रचंड जीत के बाद 7 जून 1980 को माधव सिंह सोलंकी ने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. सोलंकी की सरकार की चर्चा इसलिए सबसे ज्यादा था कि उनके मंत्रिमंडल में एक भी सवर्ण नेता नहीं था. इतना ही नहीं, सोलंकी की सरकार ने साल 1981 में एक बड़ा फैसला किया. सरकार ने गुजरात में 82 जातियों को रोजगार और शिक्षा में 10 फीसदी का आरक्षण दे दिया. इसके बाद गुजरात में हंगामा खड़ा हो गया. इसके बावजूद सोलंकी ने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया.

राणे कमीशन को लागू करने का फैसला-
माधव सिंह सोलंकी की सरकार ने सिर्फ आरक्षण लागू ही नहीं किया. उन्होंने साल 1985 में चुनाव से पहले एक और बड़ा फैसला किया. इस बार सीएम सोलंकी ने राणे कमीशन की सिफारिशों को राज्य में लागू कर दिया. राणे कमीशन के मुताबिक पिछड़ी जातियों को आरक्षण की सीमा 28 फीसदी कर दी गई और इसमें 82 जातियों की जगह 104 जातियों को शामिल कर लिया गया. इसको लेकर गुजरात में खूब विरोध प्रदर्शन हुए.

1985 इलेक्शन में सोलंकी ने तोड़ा रिकॉर्ड-
राणे कमीशन के विरोध के बीच ही विधानसभा चुनाव का ऐलान हो गया. इंदिरा गांधी की हत्या और सोलंकी की KHAM समीकरण के सहारे कांग्रेस ने इस चुनाव में रिकॉर्ड बना दिया. कांग्रेस ने 149 सीटों पर जीत दर्ज की. गुजरात में इतनी बड़ी जीत आज तक किसी पार्टी को नहीं मिली है. 11 मार्च 1985 को माधव सिंह सोलंकी तीसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने.

सूबे में दंगे और सोलंकी का इस्तीफा-
जब तीसरी बार माधव सिंह सोलंकी सीएम बने. उसके बाद गुजरात में आरक्षण विरोधी आंदोलन तेज हो गया. सूबे में हिंसा होने लगी. सोलंकी को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. 6 जुलाई 1985 को सोलंकी ने पद से इस्तीफा दे दिया.

चौथी बार सीएम बने सोलंकी-
माधव सिंह सोलंकी 3 साल तक विदेश घूमते रहे और जब वापस देश आए तो राजीव गांधी ने उनको योजना मंत्री बना दिया. जब केंद्र में राजीव गांधी की सरकार चली गई तो कांग्रेस खुद को राज्यों में मजबूत करने में जुट गई. इस कड़ी में गुजरात में भी मुख्यमंत्री बदल दिया गया. माधव सिंह सोलंकी को चौथी बार मुख्यमंत्री बनाया गया. 10 दिसंबर 1989 को सोलंकी ने सीएम पद की शपथ ली और 83 दिन बाद 4 मार्च 1990 तक इस पद पर बने रहे. 

केंद्र में मंत्री बने सोलंकी-
साल 1991 में केंद्र में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार बनी तो सोलंकी को विदेश मंत्री बनाया गया. लेकिन बोफोर्स घोटाले में एक बयान के चलते उनको पद से हटा दिया गया. 
94 साल की उम्र में माधव सिंह सोलंकी का निधन हो गया. उनके बेटे भरत सिंह सोलंकी सियासत में सक्रिय हैं. भरत सिंह सोलंकी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं. भरत सिंह विधायक और सांसद भी रहे हैं.

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